भारतीय प्रवासी सम्मेलन का पाखंड
जनता जनार्दन संवाददाता ,
Jan 17, 2012, 15:19 pm IST
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भारतीय प्रवासी सम्मेलन अटल बिहारी बाजपेयी की अनर्गल कविता है जिसका अर्थ एक दषक वाद भी किसी की समझ में नहीं आया । असल में भारतीय संस्कारो की सबसे बड़ी फजीहत यह है कि वे अतीत के मोह बंधन से छूटना ही नहीं चाहते हैं। आज भी यदि सरकारी विज्ञापनों पर गौर करें तो कोई भी विज्ञापन गांधी जी की तस्वीर के बिना प्रसारित नहीं किया जाता मानों यह जो कुछ हो रहा है उसमें गांधी जी की सहमति है। जबकि उनका कहीं से कुछ लेना देना नहीं होता। कुछ चाटुकार अधिकारी तो गांधी जी के साथ स्व.इंदिरा गांधी की तस्वीर भी लगा देते है। कोई सोचने की जहमत उठाना नहीं चाहता कि आज की सरकारी योजना में इन महापुरुषों का क्या लेना देना है? और कुछ चाटुकार तो इतने तेज होते हैं कि विज्ञापन में राजीव गांधी की तस्वीर भी लगा देते हैं। और उसमें कभी कभी तो स्व. लगाना भी भूल जाते है। ऐसे में तय करना आसान नहीं होता कि कौन नेता जीवित है और किस की मौत हो गई है। इसलिए अब चूंकि यह आयोजन राजग की सरकार ने 2001 में प्रारंभ किया था जिसका मुख्य उद्देष्य देष में एक और मेला लगाना था तो कांग्रेस सरकार कैसे पीछे रहती? उसने भी इस प्रकार का मेला लगाना षुरु कर दिया है। इसका एक हैरत अंगेज दृष्य राजस्थान में प्रवासी भारतीय के सम्मान में आयोजित एक मेले में देखने को मिला।
राधेश्याम तिवारी
लेखक राधेश्याम तिवारी हिन्दी व अग्रेज़ी के वरिष्ठतम स्तंभकार, पत्रकार व संपादकों में से एक हैं। देश की लगभग सभी पत्र-पत्रिकाओं में आपके लेख निरंतर प्रकाशित होते रहते हैं। फेस एन फैक्ट्स के आप स्थाई स्तंभकार हैं।
ये लेख उन्होंने अपने जीवनकाल में हमारे लिए लिखे थे. दुर्भाग्य से वह साल २०१७ में असमय हमारे बीच से चल बसे
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