सायमा ने हौंसले से पाई जीने की राह
जनता जनार्दन संवाददाता ,
Dec 03, 2011, 13:03 pm IST
Keywords: Disability Malnutrition Saima Mohammed Hussain AWNL Jableepora Education Act Jammu and Kashmir विकलांगता कुपोषण सायमा मोहम्मद हुसैन एचडब्ल्यूएनएल जाबलीपोरा शिक्षा का अधिकार अधिनियम जम्मू एव कश्मीर
जम्मू एवं कश्मीर: सायमा 15 साल की है। पांच साल की उम्र में ही उसने अपनी आंखों की रोशनी खो दी थी। समझा जाता है कि ऐसा विटामिन 'ए', आयरन तथा फॉलिक एसिड की कमी के कारण हुआ। दरअसल, बिजली विभाग में मजदूर के तौर पर काम करने वाले उसके पिता मोहम्मद हुसैन अपनी 3300 रुपये प्रतिमाह की पगार में सायमा सहित सात लोगों का गुजारा ही बड़ी मुश्किल से कर पाते हैं। फिर खानपान में विटामिन आदि का खयाल कौन रखे।
कुपोषण की वजह से विकलांगता कोई असामान्य बात नहीं है। जम्मू एव कश्मीर सरकार के आंकड़ों के अनुसार, राज्य में पांच साल तक की उम्र के करीब 34.5 प्रतिशत बच्चे कुपोषण से पीड़ित हैं। जनगणना 2001 के आंकड़ों के अनुसार जम्मू एवं कश्मीर में तीन लाख से ज्यादा लोग किसी न किसी प्रकार की विकलांगता से प्रभावित हैं। जीवन निर्वाह के लिए उपलब्ध न्यूनतम साधनों के बीच सायमा को घर में ही विशेष देखभाल मुहैया कराना सपने जैसा था। लेकिन विकलांगता के बावजूद शिक्षा प्राप्त करने की उसकी उत्कंठा बनी रही। नौ साल की उम्र में उसने सरकारी स्कूल में दाखिला लिया। लेकिन दूसरी कक्षा में ही उसने पढ़ाई छोड़ दी, क्योंकि वह अन्य बच्चों तथा शिक्षकों के साथ तालमेल नहीं बिठा पा रही थी। स्कूल में कुछ समय बिताने के बावजूद सायमा न तो पढ़ना जान पाई, न लिखना और न ही अक्षरों को पहचान पाई। शिक्षकों को भी नेत्रहीन बच्चों को पढ़ाने के लिए विशेष प्रशिक्षण नहीं मिला था, इसलिए उन्होंने भी सायमा को न तो कक्षा की परिचर्चाओं में शामिल किया और न ही खेल या अन्य गतिविधियों में। इन सबसे आहत होकर उसने स्कूल छोड़ दिया। लेकिन अपनी दो बड़ी बहनों को स्कूल जाते देखना और स्वयं छोटे भाई के साथ घर में रहना उसके लिए बेहद मुश्किल था। इस बीच, फरवरी 2007 में उसके लिए उम्मीद की किरण नजर आई। गैर-सरकारी संगठन 'चाइल्ड राइट्स एंड यू (क्राइ)' के सहयोगी संगठन 'एचडब्ल्यूएनएल' ने जाबलीपोरा में ऐसे बच्चों के माता-पिता को जागरूक करने के लिए शिविर आयोजित किया। यहां उन्हें हेल्पलाइन स्कूल के बारे में पता चला, जहां सायमा का दाखिला कराया गया। उसकी वास्तविक शिक्षा यहीं से शुरू हुई। ब्रेल लिपि की मदद से उसे पढ़ना, लिखना सिखाया गया। साथ ही संगीत, हस्तकला तथा खेल आदि का प्रशिक्षण भी दिया गया। आज सायमा आत्मविश्वास से भरपूर लड़की है और छड़ी की मदद से अपनी मंजिल तक खुद पहुंचती है। वह ऐसे बच्चों व अभिभावकों के लिए आदर्श है। क्राई की मुख्य कार्यकारी अधिकारी पूजा मारवाह के अनुसार संयुक्त राष्ट्र बाल अधिकार कन्वेंशन पर हस्ताक्षर के बाद भारत में अब सभी बच्चों को समान अधिकार उपलब्ध करवाने की हमारी प्रतिबद्धता है और इसके लिए अब जरूरत प्रभावी कानून बनाने की है। उन्होंने कहा, विकलांगों के अधिकारों से सम्बधित प्रस्तावित विधयेक के मसौदे और शिक्षा का अधिकार अधिनियम में प्रस्तावति संशोधन के मसौदे को इस दिशा में एक सही कदम माना जा सकता है। उन्होंने कहा कि यह सुनिश्चित करना होगा कि विकलांगों को अधिकार दिलवाने से सम्बंधित विधेयक के प्रावधान ठोस परिणाम सुनश्चित करें। गौरतलब है कि सरकारी आंकड़ों के अनुसार भारत की दो फीसदी से ज्यादा आबादी किसी न किसी प्रकार की विकलांगता से प्रभावित है। इस चुनौती का सामना करने वालों में बच्चों और महिलाओं की अच्छी खासी संख्या है और वे इससे संभवत: तुलनात्मक रूप से कहीं अधिक प्रभावित भी होते हैं। |
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