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नई नीति को लेकर उद्दोग जगत उत्साहित
जनता जनार्दन संवाददाता ,
Oct 30, 2011, 18:12 pm IST
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![]() देश की पहली विनिर्माण नीति को तैयार करने में दो वर्ष लगे हैं। यह नीति निवेश को बहुप्रतीक्षित प्रोत्साहन देने के लिए राजकोषीय प्रोत्साहन के साथ औद्योगिक उत्पादन और विश्वस्तरीय विनिर्माण को बढ़ावा देना चाहती है। इसके साथ ही इस नीति में यह भी निहित है कि किसी भी विनिर्माण इकाई को 70 कानूनों का पालन करना होगा और हर वर्ष 100 रिटर्न दाखिल करने होंगे, जो उन युवाओं को हतोत्साहित करेगी, जो उद्यमी की भूमिका निभाने से पहले से घबराते हैं। देश की जीडीपी लगभग 14 खरब रुपये है। इन बाधाओं को सुलझाने के सरकार के इरादों को देखते हुए उद्योग जगत महसूस करता है कि इन मुद्दों को सम्पूर्णता में लेने का समय आ गया है, ताकि युवाओं को अपनी क्षमता सम्भावना से नीचे के काम स्वीकार करने के लिए मजबूर न होना पड़े और वे आर्थिक गतिविधि को बढ़ाने में योगदान कर सकें। प्राइस वाटरहाउस कूपर्स के कार्यकारी निदेशक संजीव कृष्णन ने आईएएनएस से कहा, "यह एक सकारात्मक कदम है, लेकिन बहुत कुछ इसके क्रियान्वयन पर निर्भर करेगा। सबसे बड़ी चुनौती अपने आप में नीति नहीं है, बल्कि इसका क्रियान्वयन है।" कृष्णन ने कहा, "व्यापारिक मनोबल को बढ़ावा देने के लिए नीति का प्रभावी क्रियान्वयन जरूरी है, क्योंकि नीतिगत अकर्मण्यता और कई सारे स्कैंडल व घोटालों के कारण हाल के दिनों में व्यापारिक मनोबल काफी नीचे आया है।" नई नीति की मुख्य बात राष्ट्रीय निवेश और विनिर्माण क्षेत्र व निवेश क्षेत्र तैयार करना है, जो स्वायत्तशासी व स्वतंत्र टाउनशिप होंगे, जिन्हें निजी क्षेत्र की साझेदारी में विकसित किया जाएगा। इस मद्देनजर पहले ही इस तरह की सात परियोजनाएं मंजूर की जा चुकी हैं, जो दिल्ली-मुम्बई औद्योगिक गलियारे के तहत आती हैं। इस गलियारे से महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, गुजरात, राजस्थान, हरियाणा, और उत्तर प्रदेश सम्बद्ध हैं। फेडरेशन ऑफ इंडियन चैम्बर्स ऑफ कामर्स एंड इंडस्ट्री (फिक्की) के महासचिव राजीव कुमार ने कहा, "हम अच्छे स्तर की अर्थव्यवस्था और वैश्विक प्रतिस्पर्धा हासिल करने के लिए विशाल राष्ट्रीय निवेश और विनिर्माण क्षेत्र विकसित किए जाने के प्रस्ताव का स्वागत करते हैं।" कुमार ने कहा, "चूंकि इन क्षेत्रों में स्वनियमन पर जोर दिया गया है, लिहाजा इससे विनिर्माण इकाइयों पर अनुपालन का बोझा काफी कम होगा।" |
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