जिन्ना तो पाकिस्तान चले गए, अपनी एक खास चीज छोड़ गए

जनता जनार्दन संवाददाता , Apr 21, 2025, 10:30 am IST
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जिन्ना तो पाकिस्तान चले गए, अपनी एक खास चीज छोड़ गए

मुंबई के मालाबार हिल की शांत, हरियाली से घिरी सड़कों के बीच एक बंगला है — जो वक्त की मार झेलता, इतिहास के पन्नों में दबा, अब फिर से चर्चा में है. यह वही बंगला है जिसे पाकिस्तान के संस्थापक मोहम्मद अली जिन्ना ने 1936 में अपने लिए बनवाया था. कभी आलीशान, अब खंडहर होता जा रहा 'जिन्ना हाउस', भारत की आज़ादी और विभाजन की एक मूक गवाह की तरह खड़ा है.

अब इस बंगले को फिर से जीवंत करने की तैयारी है — लेकिन इस बार इसके किरदार बदले हुए होंगे. इसे एक राजनयिक केंद्र (Diplomatic Enclave) के तौर पर पुनर्जीवित करने की योजना पर काम हो रहा है. मुंबई हेरिटेज कंजर्वेशन कमेटी (MHCC) ने पहले ही इसके पुनरुद्धार को हरी झंडी दे दी थी, और अब विदेश मंत्रालय की औपचारिक मंजूरी का इंतज़ार है.

आलीशान अतीत और जर्जर वर्तमान

2.5 एकड़ में फैला यह बंगला किसी ज़माने में जिन्ना की निजी पसंद से बना था. इसे मशहूर आर्ट डेको आर्किटेक्ट क्लॉड बैटली ने डिज़ाइन किया था, जो उस वक्त सर जेजे स्कूल ऑफ आर्ट्स के प्रमुख भी थे. आज यह बंगला अपनी उम्र और उपेक्षा की वजह से क्षतिग्रस्त हो चुका है, लेकिन इसके भीतर अब भी एक ऐसा अतीत सांसें लेता है, जिसे नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता.

राजनीतिक इतिहास, भावनाओं और विभाजन का प्रतीक बन चुका यह घर अब सिर्फ ईंट और पत्थर की इमारत नहीं है, यह एक ऐसे युग की निशानी है जिसमें एक राष्ट्र बनता है, एक टूटता है, और लाखों जिंदगियां बदल जाती हैं.

जिन्ना का दिल, बॉम्बे के नाम

भारत के पहले पाक उच्चायुक्त श्री प्रकाश के संस्मरणों में जिन्ना के इस बंगले से जुड़ी भावनाएं दर्ज हैं. उन्होंने कहा था – "मेरा दिल मत तोड़िए... मैंने इसे ईंट-दर-ईंट बनवाया है... आप नहीं जानते मैं बॉम्बे से कितना प्यार करता हूं."

1949 में यह बंगला भारत सरकार ने यूके के डिप्टी हाई कमिश्नर को आवंटित कर दिया था, और बाद में इसे इवैक्यी प्रॉपर्टी के रूप में दर्ज किया गया — यानी वो संपत्ति जिसे उसके मालिक देश विभाजन के बाद छोड़ गए हों.

एक नई पहचान की ओर

सरकारी सूत्रों के मुताबिक, अब इसकी देखरेख CPWD को सौंपी गई है, और सर जेजे कॉलेज ऑफ आर्किटेक्चर इस पूरे पुनरुद्धार प्रोजेक्ट में सलाहकार की भूमिका निभा रहा है. इसके इंटीरियर्स, सीढ़ियां, छत और बगीचे — सभी को संवारा जाएगा, लेकिन इस बात का विशेष ध्यान रखा जाएगा कि इसके हेरिटेज फेब्रिक को कोई नुकसान न पहुंचे.

MHCC को प्रस्तुत योजना के अनुसार, इसका उपयोग अब आवासीय नहीं बल्कि राजनयिक गतिविधियों और सांस्कृतिक कार्यक्रमों के लिए होगा. इसे हैदराबाद हाउस की तर्ज़ पर विकसित किया जाएगा — यानी एक ऐसा स्थान जहां इतिहास, संस्कृति और अंतरराष्ट्रीय कूटनीति एकसाथ सांस ले सकें.

दीना वाडिया की कानूनी लड़ाई और अधूरी उम्मीदें

2007 में जिन्ना की बेटी दीना वाडिया ने इस बंगले पर मालिकाना हक के लिए कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था. उनके निधन के बाद यह याचिका उनके बेटे नुस्ली वाडिया ने जारी रखी, लेकिन चूंकि यह संपत्ति इवैक्यी कैटेगरी में आती है, अदालत ने इसे सरकार के स्वामित्व में माना.

भारत की विरासत, भारत की कहानी

इस ऐतिहासिक इमारत को अब सिर्फ एक नाम या व्यक्तित्व से जोड़कर देखना नाइंसाफी होगी. यह बंगला अब भारत की स्वतंत्रता, विभाजन और पुनर्निर्माण की कहानी कहेगा — वो कहानी जिसमें जज़्बात भी हैं, संघर्ष भी और उम्मीदें भी.

अब जब यह बंगला एक नए स्वरूप में सामने आने वाला है, यह देखना दिलचस्प होगा कि सरकार इसे किस तरह राष्ट्रीय स्मृति और सांस्कृतिक विरासत का हिस्सा बनाती है.

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