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13 साल की रेप पीड़िता को 7 महीने की प्रेग्नेंसी में मिली अबॉर्शन की अनुमति

13 साल की रेप पीड़िता को 7 महीने की प्रेग्नेंसी में मिली अबॉर्शन की अनुमति

जयपुर: राजस्थान हाईकोर्ट की जयपुर बेंच ने 13 वर्षीय दुष्कर्म पीड़िता को 27 सप्ताह और 6 दिन (लगभग 7 महीने) की गर्भावस्था में गर्भपात (अबॉर्शन) की अनुमति दे दी है. न्यायमूर्ति सुदेश बंसल की पीठ ने यह फैसला सुनाते हुए कहा कि पीड़िता को जबरन प्रसव के लिए बाध्य करना उसके मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य पर दीर्घकालिक प्रभाव डाल सकता है.

मानसिक और सामाजिक प्रभाव को ध्यान में रखते हुए फैसला

कोर्ट ने स्पष्ट किया कि इस मामले में मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी (MTP) एक्ट 1971 के तहत गर्भावस्था को जारी रखना पीड़िता के मानसिक स्वास्थ्य के लिए नुकसानदेह हो सकता है. इसलिए, महिला चिकित्सालय सांगानेर (जयपुर) को निर्देश दिया गया है कि वह विशेषज्ञों के मेडिकल बोर्ड के माध्यम से अबॉर्शन की प्रक्रिया सुनिश्चित करे.

भ्रूण के भविष्य को लेकर भी दिशा-निर्देश

कोर्ट ने यह भी कहा कि यदि गर्भपात के दौरान भ्रूण जीवित पाया जाता है, तो उसे सभी आवश्यक चिकित्सा सुविधाएं प्रदान की जाएंगी और राज्य सरकार के खर्चे पर उसका पालन-पोषण किया जाएगा. यदि भ्रूण मृत होता है, तो उसकी डीएनए जांच के लिए टिशू सुरक्षित रखे जाएंगे.

माता-पिता की सहमति और कानूनी प्रक्रिया

पीड़िता के माता-पिता गर्भपात के पक्ष में थे और उन्होंने इसे लेकर अदालत से अपील की थी. इस पर न्यायालय ने मेडिकल एक्सपर्ट्स की रिपोर्ट का अवलोकन किया, जिसमें बताया गया कि गर्भपात में उच्च जोखिम तो है, लेकिन इसे किया जा सकता है. कोर्ट ने इस आधार पर पीड़िता की मानसिक और शारीरिक भलाई को प्राथमिकता देते हुए अबॉर्शन की अनुमति दी.

गर्भपात संबंधी कानूनी स्थिति

भारत में मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी (MTP) एक्ट 1971 के तहत कुछ विशेष परिस्थितियों में 24 हफ्ते तक के गर्भ को गिराने की अनुमति दी जाती है. लेकिन 24 हफ्ते से अधिक गर्भावस्था के मामले में कोर्ट की मंजूरी आवश्यक होती है.

MTP एक्ट के प्रमुख प्रावधान:

  • शादीशुदा महिलाओं, रेप पीड़िताओं, दिव्यांग महिलाओं और नाबालिग लड़कियों को 24 हफ्ते तक गर्भपात की अनुमति है.
  • 24 हफ्ते के बाद गर्भपात कराने के लिए मेडिकल बोर्ड की सिफारिश और न्यायालय की अनुमति जरूरी होती है.
  • वर्ष 2020 में संशोधित कानून के अनुसार, अब गर्भपात की प्रक्रिया को अधिक सुरक्षित और न्यायसंगत बनाया गया है.

महिलाओं के अधिकारों पर अदालत की चिंता

राजस्थान हाईकोर्ट ने दिसंबर 2024 में एक अन्य मामले की सुनवाई के दौरान यह टिप्पणी की थी कि रेप पीड़िताओं को उनके अधिकारों के बारे में पर्याप्त जानकारी नहीं दी जाती. खासतौर पर नाबालिग पीड़िताओं को पुलिस और संबंधित एजेंसियां उनके विकल्पों के बारे में जागरूक नहीं करतीं, जिससे वे अक्सर सामाजिक दबाव में अवांछित गर्भधारण को जारी रखने के लिए मजबूर हो जाती हैं.

हाईकोर्ट ने यह भी संकेत दिया कि भविष्य में इस संबंध में विस्तृत दिशा-निर्देश जारी किए जाएंगे, ताकि दुष्कर्म पीड़िताओं को उचित कानूनी और चिकित्सीय सहायता प्रदान की जा सके.

न्यायालय का संतुलित दृष्टिकोण

राजस्थान हाईकोर्ट का यह फैसला मानवीय दृष्टिकोण को ध्यान में रखते हुए दिया गया है, जो एक दुष्कर्म पीड़िता के मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य के प्रति संवेदनशीलता को दर्शाता है. यह निर्णय महिला अधिकारों और चिकित्सा-नैतिकता के बीच संतुलन स्थापित करने का एक महत्वपूर्ण उदाहरण बन सकता है.

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