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मंदिर-मस्जिद पर कोई नया मुकदमा नहीं

जनता जनार्दन संवाददाता , Dec 12, 2024, 17:34 pm IST
Keywords: Supreme Court    Bulldozer Justice   Demolished   Senior Advocate Dushyant Dave   Viswanathan   सुप्रीम कोर्ट ने प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट  
फ़ॉन्ट साइज :
मंदिर-मस्जिद पर कोई नया मुकदमा नहीं सुप्रीम कोर्ट ने प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट (1991) से जुड़े मामलों को लेकर बड़ा फैसला सुनाया है. अदालत ने स्पष्ट किया है कि जब तक इस कानून को लेकर शीर्ष अदालत में मामला पेंडिंग है, तब तक कोई भी नया मुकदमा देश की किसी भी अदालत में दर्ज नहीं किया जाएगा.

मुख्य न्यायाधीश (CJI) की अध्यक्षता वाली बेंच ने यह जानकारी दी कि वर्तमान में धार्मिक स्थलों से संबंधित 18 मुकदमे देशभर में अदालतों में लंबित हैं. सीजेआई ने इस संदर्भ में कोर्ट का रुख स्पष्ट करते हुए कहा कि जब तक सुप्रीम कोर्ट इन मामलों पर कोई निर्णय नहीं देता, तब तक नया मुकदमा दायर नहीं होगा.

सुनवाई के दौरान मुस्लिम पक्ष ने यह अपील की कि अभी जो मामले लंबित हैं, उन पर भी रोक लगाई जाए. बेंच के सदस्य जस्टिस के वी विश्वनाथन ने इस पर सहमति व्यक्त करते हुए कहा कि ऐसे मामलों पर रोक लगाना आवश्यक है ताकि कोई विवाद न बढ़े.

प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट 1991, जो धार्मिक स्थलों की स्थिति को 15 अगस्त 1947 की स्थिति में बनाए रखने का प्रावधान करता है, हाल के वर्षों में विवाद का विषय बना हुआ है. इसके तहत किसी भी धार्मिक स्थल की स्थिति में बदलाव को अवैध घोषित किया गया है.

कुछ समूहों का कहना है कि इस कानून में बदलाव करना जरूरी है क्योंकि यह हिंदू, जैन, बौद्ध और सिख समुदायों को उनके धार्मिक स्थलों को पुनर्स्थापित करने के अधिकार से वंचित करता है. वहीं, कांग्रेस सहित कई विपक्षी दलों ने इस कानून को भारत के धर्मनिरपेक्ष ताने-बाने को बनाए रखने के लिए आवश्यक बताया है. उनका मानना है कि इस कानून में बदलाव से सामाजिक सद्भावना बिगड़ सकती है.

मार्च 2021 में तत्कालीन सीजेआई एस.ए. बोबडे की अध्यक्षता वाली बेंच ने इस एक्ट की कुछ धाराओं को चुनौती देने वाली याचिका पर केंद्र सरकार से जवाब मांगा था. यह याचिका वकील अश्विनी उपाध्याय द्वारा दायर की गई थी, जिसमें दावा किया गया था कि यह कानून "सार्वजनिक व्यवस्था" के नाम पर बनाया गया है, जो राज्य का विषय है.

सुप्रीम कोर्ट ने यह फैसला सामाजिक सद्भाव और शांति बनाए रखने के उद्देश्य से लिया है. कोर्ट का कहना है कि इस दौरान किसी भी नए मामले के दर्ज होने से विवाद बढ़ सकता है, जिससे राष्ट्रीय एकता और धर्मनिरपेक्षता पर असर पड़ सकता है.


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