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एडल्ट्स में तेजी से बढ़ रही ये बेहद गंभीर बीमारी

जनता जनार्दन संवाददाता , Oct 14, 2024, 18:29 pm IST
Keywords: Attention-Deficit   Hyperactivity Disorder   हाइपरएक्टिविटी डिसऑर्डर  
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एडल्ट्स में तेजी से बढ़ रही ये बेहद गंभीर बीमारी आज के भागते दौर में ज्यादातर लोग अपनी हेल्थ को नजरअंदाज कर देते हैं. आलम यह है कि बीमारी पूरी तरह से जकड़ लेती है और हम इसके बारे में गंभीर नहीं होते. ऐसी ही एक बीमारी है अटेंशन डेफिसिट/हाइपरएक्टिविटी डिसऑर्डर (ADHD), जो वयस्कों में आम हो चुकी है. चिंता की बात यह है कि इससे ग्रसित ज्यादातर लोग इसका इलाज नहीं करा रहे. क्योंकि वे बीमारी को समझ ही नहीं पा रहे. आइये आपको  बताते हैं वयस्कों में तेजी से उभर रही इस समस्या के बारे में.

सोशल मीडिया से अब गिने-चुने लोग ही अछूते होंगे. फेसबुक, इंस्टाग्राम, व्हाट्सऐप जैसे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म आज लोगों की जरूरत बन गए हैं. लोगों को इसकी लत लग चुकी है. अब हम आपको जो बताने जा रहे हैं वह बेहद चौंकाने वाली हकीकत है. हम अपने स्वास्थ्य से जुड़ी समस्याओं का निदान भी सोशल मीडिया पर ही खोज रहे हैं. यही कारण है कि एक चौथाई वयस्कों को सोशल मीडिया की वजह से अटेंशन डेफिसिट/हाइपरएक्टिविटी डिसऑर्डर (ADHD) होने का संदेह है.

एडीएचडी को आमतौर पर बचपन की बीमारी माना जाता है. एक नई स्टडी में सामने आया है कि अमेरिका में चार में से एक या 25 प्रतिशत वयस्कों को संदेह है कि उन्हें यह बीमारी हो सकती है. लेकिन इसका निदान नहीं किया गया है. स्टडी में पता चला है कि अमेरिका में हर चार में से एक वयस्क (25 प्रतिशत) को अटेंशन डेफिसिट/हाइपरएक्टिविटी डिसऑर्डर हो सकता है. इससे भी ज्यादा चौंकाने वाली बात यह है कि ये लोग उन्हें अपनी जद में ले चुकी बीमारी से अनजान हैं. यह स्टडी 1,000 अमेरिकी वयस्कों के राष्ट्रीय सर्वेक्षण पर आधारित है.
चिंता की बात यह है कि सर्वे में शामिल केवल 13 प्रतिशत लोगों ने अपने संदेह को डॉक्टर के साथ शेयर किया. स्थिति यह दर्शाती है कि बहुत से लोग अपनी चिंताओं को डॉक्टर के साथ शेयर करने में हिचकिचा रहे हैं. आत्म-निदान का यह चलन गलत इलाज का कारण बन सकता है. जिससे समस्या और बढ़ सकती है. 

ओहायो स्टेट यूनिवर्सिटी में मनोविज्ञान के सहायक प्रोफेसर जस्टिन बार्टेरियन ने बताया कि चिंता, अवसाद और ADHD - ये सभी एक जैसे दिख सकते हैं, लेकिन गलत इलाज स्थिति को और बिगाड़ सकता है. सर्वे में शामिल 18 से 44 साल के अनुमानित 4.4 प्रतिशत लोग ADHD से प्रभावित हैं.

बार्टेरियन बताते हैं कि कई लोगों को तब इस विकार का पता चलता है जब वे बड़े होते हैं. खासकर जब उनके बच्चे इस विकार से परेशान होते हैं, तो माता-पिता महसूस करते हैं कि उन्हें भी इसी तरह की समस्याएं हैं. यह एक आनुवांशिक यानी जेनेटिक विकार है. स्टडी में यह भी पाया गया कि युवा वयस्कों में ADHD के अनडायग्नोज़्ड होने के चांस अधिक है. इसका कारण यह हो सकता है कि वे सोशल मीडिया पर अधिक सक्रिय हैं और वहां पर इस विषय पर चर्चा करने वाले वीडियो और जानकारी को देखते हैं. 

बार्टेरियन ने कहा कि सोशल मीडिया वीडियो जागरूकता बढ़ाने में मददगार हो सकते हैं, लेकिन सही उपचार और उचित निदान के लिए किसी मनोवैज्ञानिक, मनोचिकित्सक या चिकित्सक से सलाह लेना बहुत महत्वपूर्ण है. ADHD के लक्षणों के प्रति जागरूकता बढ़ रही है, लेकिन सही निदान और उपचार के लिए पेशेवर मदद लेना जरूरी है. आत्म-निदान से बचना चाहिए, क्योंकि सही जानकारी और उपचार से ही लोग अपनी समस्याओं का सही समाधान पा सकते हैं.
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