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जम्मू कश्मीर चुनाव में छाया रहा आर्टिकल 370 का मुद्दा

जनता जनार्दन संवाददाता , Oct 09, 2024, 17:57 pm IST
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जम्मू कश्मीर चुनाव में छाया रहा आर्टिकल 370 का मुद्दा

जम्मू कश्मीर विधानसभा चुनाव में शानदार जीत के बाद नेशनल कांफ्रेस, कांग्रेस और सीपीएम गठबंधन सरकार बनाने के करीब है. एनसी नेता और पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला केंद्र शासित प्रदेश जम्मू कश्मीर के पहले मुख्यमंत्री बनने जा रहे हैं. अब चुनाव के दौरान विपक्षी गठबंधन की ओर से सबसे ज्यादा उठाए गए आर्टिकल 370 के मुद्दे पर संभावित सरकारी कदमों को लेकर सवालों का दौर शुरू हो गया है.

 केंद्र में लगातार तीसरी बार सरकार बनाने वाली भाजपा को पूरी कोशिश के बावजूद जम्मू कश्मीर में दूसरी बड़ी पार्टी बनकर ही संतोष करना पड़ा. वहीं, नेशनल कॉन्फ्रेंस, कांग्रेस और माकपा गठबंधन ने बहुमत हासिल कर सरकार बनाने का जनादेश हासिल कर लिया. जम्मू कश्मीर में आर्टिकल 370 रद्द किए जाने, विशेष राज्य का दर्जा खतम करने, लद्दाख को अलग कर दोनों को केंद्रशासित प्रदेश बनाने और नए परिसीमन के बाद हुए इस पहले चुनाव के नतीजे बड़े दूरगामी राजनीतिक संदेश देने वाले हैं.

जम्मू कश्मीर के चुनावी नतीजों के बाद कई सवाल और जवाब भी उभरकर सामने हैं. इनमें 10 साल के लंबे समय बाद फिर से चुनी हुई सरकार की वापसी और चुनाव पूर्व गठबंधन की पूर्ण बहुमत की स्थिर सरकार को लोकतंत्र के लिहाज से कई सवालों का बड़ा जवाब माना जा रहा है. वहीं, तीन चरणों में हुए मतदान के लिए रिकॉर्ड संख्या मतदाताओं का घर से निकलना और शांतिपूर्ण वोट डालने को भी दुनिया भर में बहुत सकारात्मक नजरिए से देखा जा रहा है.

 चुनावी नतीजे में जोड़-तोड़ की आशंकाओं को भी धूमिल कर दिया. हालांकि, जम्मू और कश्मीर घाटी में क्षेत्रीय स्तर पर मतदान दिखा. मुस्लिम बहुल कश्मीर घाटी ने इस बार भी मुख्यमंत्री की कुर्सी अपने पाले में कर ली. राज्य रहने से केंद्रशासित प्रदेश बनने तक जम्मू कश्मीर में हमेशा घाटी का ही मुख्यमंत्री रहा है. नेशनल कांफ्रेस के अब्दुल्ला परिवार से छह बार मुख्यमंत्री रहे हैं. इस बार भी फारूक अब्दुल्ला ने लगभग दहाड़ कर कहा कि उमर मुख्यमंत्री बनेगा.

बहरहाल, सत्ता में आने वाला नेशनल कांफ्रेस-कांग्रेस-माकपा गठबंधन हो या कश्मीर घाटी की दूसरी स्थानीय सियासी पार्टियां सबने आर्टिकल 370 बहाली के मुद्दे पर विधानसभा चुनाव लड़ा. घाटी में इस नैरेटिव का गहरा असर हुआ. भाजपा आर्टिकल 370 पर अपना पक्ष वहां के लोगों को ठीक से समझा नहीं पाई. न ही केंद्र सरकार के नया कश्मीर नारे को नीचे तक ले जा सकी. लिहाजा, घाटी में उतारे गए उसके सभी उम्मीदवार हार गए. 

भाजपा से जुड़े होने की चर्चा वाले कैंडिडेट भी कश्मीर घाटी में हार गए. पिछली बार भाजपा के साथ गठबंधन करने वाली महबूबा मुफ्ती की पीडीपी भी महज तीन सीटों पर सिमट गई. उनकी बेटी इल्तिजा मुफ्ती अपने परिवार के गढ़ कहे जाने वाले श्रीगुफवारा-बिजबिहारा सीट पर हार गई. वहीं, लोकसभा चुनाव में उमर अब्दुल्ला को हराने वाला और आतंकियों की मदद के आरोप में जेल में बंद इंजीनियर रशीद और प्रतिबंधित संगठन जमात भी कोई असर नहीं दिखा सका.

अब बात करते हैं लोकसभा और राज्यसभा से पास, राष्ट्रपति से मंजूर और सुप्रीम कोर्ट से सही करार दिए जा चुके आर्टिकल 370 रद्द किए जाने से जुड़े सवाल की. चुनाव नतीजे ने दिखाया कि कश्मीर घाटी के मुस्लिम घाटी आर्टिकल 370 को लेकर संवेदनशील हैं. उनका वोट हासिल करने वाली पार्टी और गठबंधन सरकार बना रही है. हालांकि, इस मुद्दे पर नेशनल कांफ्रेस मुखर और कांग्रेस चुप रहने की रणनीति पर अमल कर रही है, लेकिन अब इस चुनावी मुद्दे पर उसका अगला कदम क्या होगा या हो सकता है? 

नेशनल कांफ्रेस ने जम्मू कश्मीर को पूर्ण राज्य का दर्जा और स्वायत्तता दिलाने का वादा किया है. साल 2000 में एनसी ने विधानसभा से स्वायत्तता के लिए प्रस्ताव भी पास किया था. तब प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार ने इस प्रस्ताव को खारिज कर दिया था. अब केंद्र में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार है. केंद्रशासित प्रदेश में उपराज्यपाल प्रभावशाली हैं. वहीं, विधानसभा में 29 सीटों के साथ भाजपा मुख्य विपक्ष बन गया है. इसलिए देखना दिलचस्प होगा कि उमर अब्दुल्ला सरकार आर्टिकल 370 के मुद्दे पर क्या कदम उठाते हैं.
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