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बांग्लादेश में जमात-ए-इस्लामी के चलते दोबारा तख्तापलट के आसार!

जनता जनार्दन संवाददाता , Sep 07, 2024, 16:43 pm IST
Keywords: Bangladesh Islamist Radicalization   पड़ोसी मुल्क बांग्लादेश  
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बांग्लादेश में जमात-ए-इस्लामी के चलते दोबारा तख्तापलट के आसार! पड़ोसी मुल्क बांग्लादेश की सियासी गुत्थी शेख हसीना के सत्ता और देश दोनों से बाहर होने के एक महीने बाद भी सुलझती नहीं दिख रही है. पश्चिम समर्थक मोहम्मद युनुस के नेतृत्व वाली बांग्लादेश की अंतरिम सरकार और सेना प्रमुख जनरल वाकेर-उज-जमान देश में अल्पसंख्यक हिंदुओं के खिलाफ लंबे समय से जारी हिंसा को रोक सकने और कानून-व्यवस्था को बहाल करने में नाकाम रहे हैं.

इस दौरान बांग्लादेश में कट्टरपंथी इस्लामवादी ताकत जमात-ए-इस्लामी (Jamaat-e-Islam) का तेजी से उभार और यहां तक कि अपने सहयोगी और पूर्व प्रधानमंत्री खालिदा जिया की बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (BNP) के नुकसान की कीमत पर भी ताकत बढ़ाना साफ दिखाई दे रहा है. इसके चलते बांग्लादेश में भी अफगानिस्तान और पाकिस्तान की तरह जल्द ही पूरी तरह इस्लामिक रेडिकलाइजेशन का खतरा बढ़ गया है. महज दो दिन पहले बांग्लादेश में पाकिस्तान की तरह भीड़ ने पुलिस थाने में घुसकर ईशनिंदा के आरोप में एक अल्पसंख्यक हिंदू लड़के मॉब लिंचिंग की कोशिश की.

मिडिल ईस्ट के मुस्लिम ब्रदरहुड जैसे कुख्यात संगठनों से गहरा वैचारिक संबंध रखने वाले कट्टरपंथी इस्लामवादी जमात-ए-इस्लामी का उदय और अल्ट्रा-इस्लामिस्ट हिफाजत-ए-इस्लाम और इस्लामिक स्टेट समर्थक अंसार-उल-बांग्ला टीम के साथ सामरिक तौर पर हाथ मिलाना बांग्लादेश के लोकतांत्रिक चरित्र के लिए गंभीर खतरा पैदा करता है. खुफिया सूचनाओं के मुताबिक, इस्लामवादी ताकतें ही वहां छात्र नेताओं को भी नियंत्रित और प्रभावित कर रहे हैं.

रिपोर्ट्स के अनुसार, बांग्लादेश की सेना और बांग्लादेश में अंतरिम सरकार के प्रमुख के रूप में शपथ लेने वाले नोबेल पुरस्कार विजेता मोहम्मद युनुस दोनों ही अवामी लीग कार्यकर्ताओं और हिंदू विरोधी हिंसा को रोकने में असफल रहे हैं. बांग्लादेश की सेना हिंसा के दोषियों से निपटने को लेकर काफी सुस्त है और केवल मूकदर्शक बनी हुई है. वहीं, युनुस महज शेख हसीना के खिलाफ बयान जारी करने तक ही सिमटे या सिमटा दिए गए लगते हैं.

बांग्लादेश में कट्टरपंथी इस्लामवादी ताकत जमात-ए-इस्लामी के उभार को भारतीय राष्ट्रीय सुरक्षा योजनाकारों ने भी नोट किया है, क्योंकि इसका प्रभाव भारत में भी पड़ सकता है. जमात का जम्मू-कश्मीर और भारत के कुछ हिस्सों में प्रभाव है. 1990 के दशक में, जमात ने भारत में खासकर उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, अविभाजित आंध्र प्रदेश में सिमी (SIMI) को खड़ा किया था. बाद में पाकिस्तान ने इस समूह को इंडियन मुजाहिदीन में तब्दील कर दिया था. 

जमात ने कश्मीर घाटी में पाकिस्तान समर्थक भावना को उभारने और उसे भड़काकर स्थानीय मुस्लिम युवाओं को हथियार उठाने के लिए कट्टरपंथी बनाने में प्रमुख भूमिका निभाई है.

हालांकि, बांग्लादेश की अंतरिम सरकार चुनाव की घोषणा करने की जल्दी में नहीं है, लेकिन एक कमजोर सरकार, इस्लामिक कट्टरपंथ का बढ़ता प्रभाव और गिरती हुई अर्थव्यवस्था राजधानी ढाका के लिए गंभीर आपदा साबित हो सकते हैं. दूसरी ओर, बांग्लादेश से निर्वासित नेता शेख हसीना अभी भी अपनी अचानक हुई विदाई से सामंजस्य नहीं बिठा पाई हैं. लेकिन, अवामी लीग के डरे हुए कार्यकर्ता आने वाले महीनों में फिर से संगठित होकर बीएनपी और इसके मजबूत सहयोगी जमात-ए-इस्लामी को चुनौती दे सकते हैं. 

अंतरिम सरकार के नेता मोहम्मद युनुस भले ही अपने बयानों में शेख हसीना को निशाना बना रहे हैं और सत्ता से बेदखल की गई नेता को भारत से प्रत्यर्पित करने के संकेत दे रहे हैं, लेकिन बांग्लादेश की राजनीति के लिए असली खतरा कट्टरपंथी इस्लामवादियों से आ रहा है. रिपोर्ट्स में कहा गया है कि 5 अगस्त के बाद जमात-ए-इस्लामी ने बीएनपी के नुकसान पर बांग्लादेश में अपनी पकड़ मजबूत कर ली है. बांग्लादेश राजनीतिक रूप से एक बारूद के ढेर पर बैठा है और यह एक साल के भीतर फिर से सियासत में बड़ा विस्फोट हो सकता है.

भारत अपने पड़ोसी बांग्लादेश में हिंदुओं और अवामी लीग कार्यकर्ताओं को लक्षित कर हो रही हिंसा को लेकर चिंतित है, लेकिन वह स्थिति को देखते हुए इंतजार कर रहा है क्योंकि एक अनिर्णायक अंतरिम सरकार के कारण उन युवाओं में असंतोष बढ़ेगा, जिनके सहारे शेख हसीना को सत्ता से बाहर करने का दावा किया जा रहा था. इसके साथ ही, आर्थिक संकट, कपड़ा मिलों और टेक्सटाइल निर्माण इकाइयों के बंद होने से बेरोजगारी और राजनीतिक उथल-पुथल बढ़ रही है. यह आगे चलकर विकराल रूप ले सकता है. 

इसके अलावा बांग्लादेश का बाहरी और आंतरिक कर्ज पहले से ही 100 अरब अमेरिकी डॉलर से ज्यादा हो चुका है. साथ ही चीन की गिद्ध नजर से बांग्लादेश के नए हुक्मरानों का बचना भी काफी मुश्किल टास्क साबित हो रहा है.

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