Thursday, 19 September 2024  |   जनता जनार्दन को बुकमार्क बनाएं
आपका स्वागत [लॉग इन ] / [पंजीकरण]   
 

दिल दहला देगी इस मेडल विनर की कहानी

जनता जनार्दन संवाददाता , Sep 04, 2024, 18:58 pm IST
Keywords: Paralympic 2024   मेहनत और लगन   दीप्ति जीवंजी  
फ़ॉन्ट साइज :
दिल दहला देगी इस मेडल विनर की कहानी मेहनत और लगन, इन 2 चीजों से किसी भी व्यक्ति के जीवन की काया पलट हो जाती है. फिर चाहे कोई मानसिक तौर पर कमजोर हो या फिर शारीरिक तौर पर. इसका सबसे बड़ा उदाहरण साबित हुई दीप्ति जीवंजी. भले ही इस नाम से कुछ लोग अनजान हों, तो हम आपको बता दें ये वो दीप्ति जीवंजी हैं जिन्होंने पैरालिंपिक में मेडल जीतकर खिल्ली उड़ाने वालों के मुंह पर तमाचा जड़ दिया है. इस एथलीट की जीवनी सुनकर हर कोई भावुक हो जाएगा. उनकी मां ने रूंधे गले से दीप्ति के सफर को बयां किया.दीप्ति ने 3 सितंबर को महिलाओं के 400 मीटर T20 वर्ग में ब्रॉन्ज मेडल जीतकर पेरिस में देश का परचम लहरा दिया. जिसके बाद वे इस प्रतिस्पर्धा में पैरालंपिक पदक जीतने वाली पहली बौद्धिक रूप से कमजोर भारतीय एथलीट बन गईं हैं. बेटी की इस उपलब्धि ने मानों मां की सालों से थकी आंखों को सुकून दे दिया हो. दीप्ति का यहां तक पहुंचने का सफर आसान नहीं था. जब उन्हें उनके पड़ोसियों, रिश्तेदारों और गांव वालों के सपोर्ट की जरूरत थी तब उन्हें सिर्फ शरीर की बनावट के चलते आलोचनाओं के गहरे घाव मिले. 

दीप्ति की मां बताती हैं कि उनका जन्म सूर्यग्रहण के दिन हुआ था, जिसका प्रभाव दीप्ति पर पड़ा और वे बौद्धिक रूप से कमजोर थीं. गांव के लोग उन्हें 'पिछी कोठी' इसे आसान भाषा में समझें तो 'मेंटल मंकी' कहकर बुलाने लगे. इसका गहरा प्रभाव दीप्ति पर देखने को मिलता था और वे अकेले में रोया करती थीं. इतना ही नहीं, उनकी मां को कई लोगों ने उन्हें पागल बताकर अनाथालय भेजने की तक सलाह दे डाली. लेकिन बोलने वालों को क्या पता था कि एक दौर आएगा जब दीप्ति उन्हीं लोगों को मुंह छिपाने के लिए मजबूर कर देंगी. 

दीप्ति जीवंजी के शरीर की बनावट बाकी लोगों से काफी अलग थी. बचपन से ही उनका सिर सामान्य बच्चों की तुलना में काफी छोटा था. वहीं, नाक और होंठों का आकार भी काफी अलग था. जिसके चलते उन्हें गांव के लोग'पिछी कोठी' कहकर परेशान करते थे. लेकिन आज वे दीप्ति के कसीदे पढ़ रहे हैं. 

दीप्ति का घर वारंगल जिले के कल्लेडा गांव में है. दीप्ति के मां जीवंजी धनलक्ष्मी बताती हैं कि उनके घर की स्थिति काफी खराब थी. उनके ससुर के निधन के बाद हालात खराब होते गए. जिसके चलते दीप्ति के पिता जीवंजी यादगिरी को कुछ खेत भी बेचने पढ़ गए. लेकिन आज दीप्ति ने अपनी बनावट को रोढ़ा न बनाते हुए सभी की थकी आंखों को सुकून दे दिया है. 
वोट दें

क्या आप कोरोना संकट में केंद्र व राज्य सरकारों की कोशिशों से संतुष्ट हैं?

हां
नहीं
बताना मुश्किल