होली की पूजा में करें ये 3 आरतियां, मनोकामनाएं होंगी पूरी
जनता जनार्दन संवाददाता ,
Mar 23, 2024, 17:47 pm IST
Keywords: Narsingh Aarti Lyrics in Hindi Radha Rani Aarti Lyrics in Hindi Holika Dahan Puja पूर्णिमा तिथि पर होलिका दहन
हर फाल्गुन महीने की पूर्णिमा तिथि पर होलिका दहन किया जाता है. इस दिन शुभ मुहूर्त में लोग कई तरह-तरह की पूजा करते हैं. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार होली के दिन भगवान नरसिंह, राधा रानी और भगवान श्रीकृष्ण की आरती करने से मनोकामनाएं पूरी होती हैं और सुख-समृद्धि का वास होता है. आप ये आरती होलिका दहन के दिन शुभ मुहूर्त में कर सकते हैं.
आरती राधा जी की कीजै -2 कृष्ण संग जो करे निवासा, कृष्ण करें जिन पर विश्वासा, आरति वृषभानु लली की कीजै।। आरती राधा जी की कीजै -2 कृष्ण चन्द्र की करी सहाई, मुंह में आनि रूप दिखाई, उसी शक्ति की आरती कीजै।। आरती राधा जी की कीजै -2 नन्द पुत्र से प्रीति बढाई, जमुना तट पर रास रचाई, आरती रास रचाई की कीजै।। आरती राधा जी की कीजै -2 प्रेम राह जिसने बतलाई, निर्गुण भक्ति नही अपनाई, आरती ! श्री ! जी की कीजै।। आरती राधा जी की कीजै -2 दुनिया की जो रक्षा करती, भक्तजनों के दुख सब हरती, आरती दु:ख हरणी जी की कीजै।। आरती राधा जी की कीजै -2 कृष्ण चन्द्र ने प्रेम बढाया, विपिन बीच में रास रचाया, आरती कृष्ण प्रिया की कीजै।। आरती राधा जी की कीजै -2 दुनिया की जो जननि कहावे, निज पुत्रों की धीर बंधावे, आरती जगत मात की कीजै।। आरती राधा जी की कीजै -2 निज पुत्रों के काज संवारे, आरती गायक के कष्ट निवारे, आरती विश्वमात की कीजै।। आरती राधा जी की कीजै -2
नरसिंह भगवान की आरती (Narsingh Aarti Lyrics in Hindi) ओम जय नरसिंह हरे, प्रभु जय नरसिंह हरे। स्तंभ फाड़ प्रभु प्रकटे, स्तंभ फाड़ प्रभु प्रकटे, जनका ताप हरे॥ ओम जय नरसिंह हरे तुम हो दिन दयाला, भक्तन हितकारी, प्रभु भक्तन हितकारी। अद्भुत रूप बनाकर, अद्भुत रूप बनाकर, प्रकटे भय हारी॥ ओम जय नरसिंह हरे सबके ह्रदय विदारण, दुस्यु जियो मारी, प्रभु दुस्यु जियो मारी। दास जान आपनायो, दास जान आपनायो, जनपर कृपा करी॥ ओम जय नरसिंह हरे ब्रह्मा करत आरती, माला पहिनावे, प्रभु माला पहिनावे। शिवजी जय जय कहकर, पुष्पन बरसावे॥ ओम जय नरसिंह हरे
आरती कुंजबिहारी की, श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की ॥ आरती कुंजबिहारी की, श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की ॥ गले में बैजंती माला, बजावै मुरली मधुर बाला । श्रवण में कुण्डल झलकाला, नंद के आनंद नंदलाला । गगन सम अंग कांति काली, राधिका चमक रही आली । लतन में ठाढ़े बनमाली भ्रमर सी अलक, कस्तूरी तिलक, चंद्र सी झलक, ललित छवि श्यामा प्यारी की, श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की ॥ ॥ आरती कुंजबिहारी की...॥ कनकमय मोर मुकुट बिलसै, देवता दरसन को तरसैं । गगन सों सुमन रासि बरसै । बजे मुरचंग, मधुर मिरदंग, ग्वालिन संग, अतुल रति गोप कुमारी की, श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की ॥ ॥ आरती कुंजबिहारी की...॥ जहां ते प्रकट भई गंगा, सकल मन हारिणि श्री गंगा । स्मरन ते होत मोह भंगा बसी शिव सीस, जटा के बीच, हरै अघ कीच, चरन छवि श्रीबनवारी की, श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की ॥ ॥ आरती कुंजबिहारी की...॥ चमकती उज्ज्वल तट रेनू, बज रही वृंदावन बेनू । चहुं दिसि गोपि ग्वाल धेनू हंसत मृदु मंद, चांदनी चंद, कटत भव फंद, टेर सुन दीन दुखारी की, श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की ॥ ॥ आरती कुंजबिहारी की...॥ |
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