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सुरंग में 400 से ज्यादा घंटे 41 मजदूरों ने कैसे बिताए?

सुरंग में 400 से ज्यादा घंटे 41 मजदूरों ने कैसे बिताए? उत्तराखंड की सिल्कयारा सुरंग की घुप अंधियारी में 41 मजदूरों के 400 से ज्यादा घंटे कैसे बीते होंगे? परिजनों से दूर सुरंग के कुछ किलोमीटर के दायरे में 'कैद' मजदूरों ने 16 दिन काटने के लिए क्या किया? सुरंग हादसे से जुड़े ये कुछ ऐसे सवाल हैं जो आपके भी मन में घूम रहे होंगे. मजदूरों ने सुरंग से बाहर निकलने की आस कभी मरने नहीं दी, यही कारण है कि वे जिंदा हैं. उनकी इच्छाशक्ति प्रबल थी और इसका ही नतीजा है कि वे आज सुरंग से आजाद होकर खुली हवा में फिर सांस लेंगे. आइये आपको बताते हैं मजदूरों ने सुरंग में इतना लंबा वक्त कैसे बिताया और क्या-क्या किया? 

सुरंग में फंसने के बाद मजदूरों के सामने सिर्फ अंधेरा था. उन्हें कुछ नहीं दिख रहा था. समय बीतने के साथ बचाव अभियान शुरू हुआ और सुरंग में फंसे मजदूरों का संघर्ष भी. मजदूर समझ चुके थे कि बाहर जाने का रास्ता खोजने में लंबा वक्त लगेगा. इस स्थिति का सामना करने के लिए मजदूरों ने अपनी इच्छाशक्ति मजबूत की और समय बिताने के लिए उपाय खोजने में जुट गए. सुरंग के अंदर उन्होंने मनोरंजन का साधन भी खोज लिया.

मजदूरों ने 'चोर-पुलिस' के खेल से लेकर तीन पत्ती और रम्मी में खुद को व्यस्त रखा. धीरे-धीरे सुरंग उनके लिए खेल का मैदान बन गई. वे सुरंग के से बाहर आने के लिए उस्तुक तो थे लेकिन अपना धीरज नहीं खोया. सुरंग में नियमित सैर, योग, प्रशासन की मदद से परिजनों के साथ बातचीत 41 मजदूरों के लिए संजीवनी का काम की. इस दिनचर्या के साथ मजदूरों ने खुद को शारीरिक और मानसिक रूप से फिट रखा.

गनीमत यह रही कि सुरंग में फंसे मजदूरों से संचार का माध्यम पूरी तरह से नहीं टूटा. 6 इंच की पाइप मजदूरों के लिए लाइफलाइन की तरह थी. इस पाइप के माध्यम से अधिकारियों ने मजदूरों को मोबाइल फोन और बोर्ड गेम उपलब्ध कराया. और तो और मजदूरों को खैनी की खेप भी भेजी गई. सुरंग में फंसे मजूदरों का पूरा ख्याल भी रखा गया. मनोचिकित्सक लगातार उनके संपर्क में थे. मनोचिकित्सक ने मजदूरों को योग का सुझाव दिया और मनोबल बनाए रखने के लिए लगातार बातचीत करते रहे.

सबसे जरूरी था मजदूरों के लिए सुरंग में खाना पहुंचाना. इस काम को भी 6 इंच की पाइप ने आसान बना दिया. इन 16 दिनों में मजदूरों को पाइप के जरिये केले, सेब के टुकड़े, दलिया और खिचड़ी समेत खाने के कई आइटम भेजे गए. सबसे बड़ी बात यह कि सौभाग्य से पानी के लिए मजदूरों के पास सुरंग के अंदर ही प्राकृतिक जल स्रोत मौजूद था.
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