Thursday, 21 November 2024  |   जनता जनार्दन को बुकमार्क बनाएं
आपका स्वागत [लॉग इन ] / [पंजीकरण]   
 

पुण्यतिथि पर विशेष: प्रभात की पहली किरण से..प्रभाष जी

गौरव अवस्थी , Nov 08, 2023, 11:52 am IST
Keywords: Prabhas   Adipurush   Prabhash Joshi   News   Entertenment   News For World   प्रभात की पहली किरण  
फ़ॉन्ट साइज :
पुण्यतिथि पर विशेष: प्रभात की पहली किरण से..प्रभाष जी
प्रभाष जोशी जी आज होते तो 85 वें वर्ष में प्रवेश कर रहे होते। 11 बरस हो गए आज ही के दिन काल के क्रूर हाथों में  विरल-सरल सहज-स्वभाव के प्रभाष जी को हम सबसे  छीन लिया। प्रभाष जी हिंदी के ऐसे श्रेष्ठ पत्रकार थे, जिनका नाम भारतीय भाषा के देश के श्रेष्ठ 10 पत्रकारों में गिना जाता है।

बात याद आती है, महाप्रयाण के 2 वर्ष पहले वर्ष 2007 में रायबरेली आगमन की। हम सबने आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी युग प्रेरक सम्मान उन्हें समर्पित करने का संकल्प लिया। इस संकल्प को "सिद्ध" प्रभाष जी ने रायबरेली पधार कर किया था। लखनऊ एयरपोर्ट पर हम लोग उन्हें लेने गए। "मालवा के  मान" माने जाने वाले प्रभाष जी इनसाइक्लोपीडिया तो थे ही। चलती फिरती पाठशाला भी थे।

आमतौर पर  आचार्य द्विवेदी स्मृति दिवस में पधारने वाले अतिथियों  को रिसीव  करने हम  कार्यों की व्यस्तता के चलते लखनऊ नहीं जा पाते  लेकिन  प्रभाष जी के नाम और काम के प्रभाव में  उस दिन  हम ही  उन्हें रिसीव करने एयरपोर्ट गए। एयरपोर्ट पर बाहर निकलते ही उनका आशीर्वाद ग्रहण किया और रायबरेली की यात्रा प्रारंभ हो गई। प्रभाष जी के साथ वह यात्रा हमारे ज्ञान का वर्धन और नाम की नई व्याख्या करने वाली साबित हुई। प्रभाष जी ने सामान्य बातचीत में इतिहास के उस पक्ष को बताना शुरू किया, जिसे हम अपनी अल्पबुद्धि से कभी महसूस ही नहीं कर सकते थे। अवध के इस अंचल में अधिकांश गांवों के नाम के आगे "गंज" या "खेड़ा" लगा होता है। बातों-बातों में ही प्रभाष जी ने साफ किया के गंज मुसलमान शासकों के बसाए हुए हैं और खेड़ा मराठा शासकों के राज्य विस्तार के प्रतीक हैं।

इतिहास, साहित्य और पत्रकारिता की बातें करते-करते वह हमारे नाम पर आए। बहुत ही सहज तरीके से उन्होंने कहा कि अगर मालवे में होते तो आपके नाम का उच्चारण गौरव नहीं "गऊ-रब" होता। अपने नाम की नई व्याख्या सुनकर मन प्रफुल्लित हुआ। अभी तक तो गौरव नाम की व्याख्या गर्व से ही सुनता-पढ़ता आया था। कई विशिष्ट जनों की शुभ और मंगलकामनाएं भी इस नाम के अनुरूप प्राप्त होती रही हैं । इन शुभकामनाओं से मन ही मन गर्व की अनुभूति भी.. लेकिन प्रभाष जी से मिली नई व्याख्या ने मन में कुछ नए भाव ही पैदा किए। प्रभाष जी यही थे। हमेशा नया सोचने और करने वाले। प्रभात की पहली किरण से.. पत्रकारिता और समाज के  सूर्य की तरह  न जाने कितने वर्ग, धर्म, जाति, संप्रदाय और गरीबों-शोषितों में उन्होंने रोशनी बिखेरी। रायबरेली की वह यात्रा हम ही नहीं हमारे तमाम मित्रों और आचार्य द्विवेदी के अनुयायियों के लिए आज भी यादगार है।

याद आता है, उनका वह विनोदी स्वभाव भी, जिसने हमारे जैसे पता नहीं कितनों को अपना दीवाना बना रखा था, है और बना रहेगा.. हमें याद है वसुंधरा गाजियाबाद वाले आवास पर एक बार मिलने जाने का संयोग बना। उस यात्रा में अनुज विनय द्विवेदी भी साथ थे। पहुंचने पर प्रभाष जी ने अपने ही अंदाज में जिस तरह आदरणीय चाची जी (श्रीमती ऊषा जोशी) को आवाज दी थी, वह शब्द आज भी मन में गूंजते रहते हैं-"अरे देखो! तुम्हारे मायके वाले आए हैं" चाची जी कानपुर की हैं और हम मूल रूप से उन्नाव के। कर्मभूमि रायबरेली। इसके पहले वह वर्ष 2005 में अपने गुरु डॉ शिवमंगल सिंह 'सुमन' की आवक्ष प्रतिमा का अनावरण करने भी हम लोगों के अनुरोध पर पधार चुके थे। उन्हें पता था उन्नाव और कानपुर एक है। उनकी वह आवाज और चाची जी का अतिशय प्रेम आज भी भुलाए भूलता नहीं है..।
   
कुछ वर्षों के सानिध्य और फिर उनकी याद में दिल्ली में प्रभाष परंपरा न्यास की ओर से होने वाले आयोजनों में सहभागिता के बाद हम लोगों को असल एहसास हुआ कि प्रभाष जी आखिर थे क्या.. क्योंकि उनकी सहजता से आम आदमी उनके उस विराट व्यक्तित्व का अंदाजा नहीं कर पाता। अंदाज न कर पाने की सामर्थ्य न होने से ही वह सामान्य का सामान्य  ही बना रह जाता है। हमारे आराध्य भगवान राम भी तो सहज और सामान्य की प्रतिमूर्ति थे। प्रभाष जी ऐसे सभी सामान्य जनों और खासकर हम पत्रकारों के एक तरह से "राम" ही थे। सामान्य जन के लिए सोचना, सामान्य जन के लिए करना और सामान्य जन के लिए लड़ना.. यही तो प्रभाष जी की खासियत थी। उनके इसी स्वभाव और कर्म ने उन्हें देश का वरिष्ठ पत्रकार और सामाजिक कार्यकर्ता बनाया।
   
उनकी सहजता इतनी थी कि हम डॉ सुमन की आवक्ष प्रतिमा के अनावरण का अनुरोध उनसे करने गए थे और वह अपने साथ "असली अतिथि" के रूप में डॉ नामवर सिंह को लेकर उन्नाव पधारे। हमें आज भी याद है, उन्नाव की उस यात्रा में भी लखनऊ एयरपोर्ट रिसीव करने हम ही गए थे। पीछे की सीट पर देश के तीन धुरंधर-प्रभाष जोशी जी, डॉ नामवर सिंह जी एवं श्री राम बहादुर राय जी-विराजे थे और थोड़ी देर के "अर्दली" के रूप में मैं अकिंचन।
   
लखनऊ एयरपोर्ट से उन्नाव की उस यात्रा के बीच में डॉ नामवर सिंह ने राय साहब से कहा कि प्रभाष जोशी जी की 75 वीं सालगिरह पहले ही मना ली जाए। उनके मन में यह प्रेरणा ईश्वर की कृपा से ही आई और प्रस्ताव राय साहब के सामने रखा। बात तब आई गई हो जरूर गई थी लेकिन सच यह है कि प्रभाष जी की 75वीं सालगिरह मनाने से हम सब वंचित ही रह गए। उसके पहले ही उन्होंने इस दुनिया से विदा ले ली आज ही के दिन 14 वर्ष पहले।
   
ऐसे प्रभाष जोशी जी की आज पुण्यतिथि है। उनकी स्मृतियों को हम आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी के अनुयाई प्रणाम करते हुए ईश्वर से प्रार्थना करते हैं कि प्रभाष जी के रूप में श्रेष्ठ व्यक्तियों का धरा पर अवतरण होता रहे ताकि सामान्य जनों के हित और हक की लड़ाई कभी मंद न पड़े..
जय पत्रकारिता!! जय प्रभाष!!
वोट दें

क्या आप कोरोना संकट में केंद्र व राज्य सरकारों की कोशिशों से संतुष्ट हैं?

हां
नहीं
बताना मुश्किल