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नेहरू-गांधी परिवार के तीसरे सदस्य हैं राहुल जिन्हें गंवानी पड़ी अपनी संसद सदस्यता

नेहरू-गांधी परिवार के तीसरे सदस्य हैं राहुल जिन्हें गंवानी पड़ी अपनी संसद सदस्यता

राहुल नेहरू-गांधी परिवार के तीसरे सदस्य हैं, जिनको अपनी संसद सदस्यता गंवानी पड़ी है. इसके पहले उनकी दादी इंदिरा गांधी और उनकी मां सोनिया गांधी को भी अपनी लोकसभा सदस्यता गंवानी पड़ी थी.

वर्ष 2004 में सोनिया गांधी यूपी की रायबरेली सीट से लोकसभा सांसद चुनी गई थीं.  वह सरकार में किसी पद पर नहीं थीं. लेकिन उस वक्त उन्हे राष्ट्रीय सलाहकार परिषद का चेयरमैन बनाया गया था.

सोनिया ने दिया लोकसभा सदस्यता से इस्तीफा
विपक्ष ने इसे लाभ का पद बताते हुए राष्ट्रपति से उनकी संसद सदस्यता खारिज करने की मांग की. लाभ के पद को लेकर इससे पहले जया बच्चन की सदस्यता रद्द की जा चुकी थी. ऐसे में दबाव बढ़ता देख,  वर्ष 2006 में उन्होंने खुद ही लोकसभा की सदस्यता से अपना इस्तीफ़ा दे दिया था. हालांकि बाद में सोनिया रायबरेली से दोबारा चुनाव लड़कर फिर सांसद बन गई थीं

हम आपको राहुल गांधी की दादी इंदिरा गांधी से जुड़ी एक पुरानी घटना के बारे में भी बताएंगे. इस घटना के बाद जो स्थितियां पैदा हुईं, वो आज भी भारत के इतिहास में काले धब्बे की तरह याद की जाती हैं.

इंदिरा के खिलाफ राजनारायण पहुंचे कोर्ट
वर्ष 1971 के लोकसभा चुनाव में इंदिरा गांधी यूपी की रायबरेली सीट से चुनाव जीत कर प्रधानमंत्री बनी थीं. उन्होंने संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी के राज नारायण को रिकॉर्ड 11 लाख वोटों से हराया था. लेकिन राज नारायण उनकी इस जीत के खिलाफ इलाहाबाद हाईकोर्ट पहुंच गए. उन्होंने इंदिरा गांधी पर चुनाव जीतने के लिए गलत तरीके अपनाने और पीएम रहते हुए अपने पद के गलत इस्तेमाल का आरोप लगाया था.

इस मामले की सुनवाई के बाद इलाहाबाद हाईकोर्ट के जज जस्टिस जगमोहन लाल सिन्हा इस नतीजे पर पहुंचे कि इंदिरा गांधी ने वाकई चुनाव जीतने के लिए अनैतिक तरीकों का इस्तेमाल किया था.

इसके बाद 12 जून 1975 को एक ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए उन्होंने इंदिरा गांधी का चुनाव रद्द कर दिया. और अगले 6 वर्षों तक उनके चुनाव लड़ने पर भी रोक लगा दी. ठीक इसी दिन यानी 12 जून को ही गुजरात विधानसभा में भी कांग्रेस की करारी हार हुई.

इंदिरा गांधी ने की आपातकाल की घोषणा
इस दोहरे झटके से इंदिरा गांधी बौखला गईं. अब तक विपक्ष भी उनके इस्तीफे की मांग शुरू कर चुका था. तभी 25 जून 1975 की रात इंदिरा गांधी ने देश में आपातकाल लागू करने का ऐलान कर दिया.

इंदिरा गांधी ने उस रात आकाशवाणी में देश के नाम अपने संबोधन में कहा था, 'भाइयो और बहनो, राष्ट्रपति जी ने आपातकाल की घोषणा की है. लेकिन आपको इससे भयभीत होने की कोई ज़रूरत नहीं है.’

एमरजेंसी के दौरान जनता के सभी मौलिक अधिकारों को स्थगित कर दिया गया था और सरकार विरोधी भाषणों और किसी भी प्रकार के प्रदर्शन पर पूर्ण प्रतिबंध लगा दिया गया था. जय प्रकाश समेत विपक्ष के ज्यादातर नेताओं को मीसा कानून के तहत जेलों में बंद कर दिया गया.

संविधान में कई संशोधन कर दिए गए,  जिनके अनुसार-

-लोकसभा-विधानसभा के लिए चुनाव की जरूरत नहीं थी.

-मीडिया और अख़बारों की आज़ादी ख़त्म हो गई और प्रेस पर सेंसरशिप लागू कर दी गई.

-यही नहीं सरकार के पास किसी भी कानून को पास करने की असीमित शक्ति मिल गई.

आपातकाल का ये दौरा 19 महीने तक चला. आखिरकार वर्ष 1977 में इंदिरा गांधी ने दोबारा लोकसभा चुनाव कराने का ऐलान किया. लेकिन इन चुनावों में कांग्रेस की जबरदस्त हार हुई और इंदिरा गांधी रायबरेली से, जबकि संजय गांधी अमेठी से अपना चुनाव भी हार गए थे और मोरार जी देसाई की अगुवाई में जनता पार्टी के रूप में पहली बार गैर कांग्रेसी सरकार बनी.

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