The Last Hour Review: अच्छी शुरुआत के बाद रोमांच और रफ्तार खो देती है संजय कपूर की वेब सीरीज
जनता जनार्दन संवाददाता ,
May 22, 2021, 18:21 pm IST
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वेबसीरीज द लास्ट आवर (सीजन वन) में पागल-सा दिखने वाला एक किरदार कहता है, ‘हर तरफ मौत है. कल थी. आज है. कल भी रहेगी.’ यह सुनते हुए लगता है कि वह ठीक हमारे वर्तमान की बात कर रहा है. जब चारों तरफ मौत का तांडव हो रहा है. इस कहानी में मौतों का लंबा सिलसिला है. इस सिलसिले के रहस्य भी हैं. इसका नायक मर चुके लोगों की आत्मा से संपर्क कर उनके आखिरी एक घंटे की कहानी उन्हीं की जुबानी सुनता है. अमेजन प्राइम पर रिलीज हुई निर्माता आसिफ कपाड़िया और निर्देशक अमित कुमार की यह ओरीजनल सीरीज रहस्य-रोमांच की परतों से ढंकी है. उत्तर-पूर्व के एक शहर में जहां पांच साल में पांच हत्याएं भी नहीं हुईं, एक के बाद एक हत्याएं होने लगती हैं. वजह...? खलनायक यमू नाडु (रॉबिन तमांग), जो नायक देव (करमा तकपा) की शक्ति को हासिल करना चाहता है. जबकि देव उससे छुप कर यहां-वहां भाग-भाग रहा है. इस बीच एंट्री होती है डीसीपी अरूप सिंह (संजय कपूर) की. जो मुंबई से आया है. उसकी पत्नी (रायमा सेन) ने साल भर पहले आत्महत्या कर ली थी और वह बेटी परी (शायली कृष्ण) के साथ रहता है. परी पिता को लेकर संदेह से भरी और मानसिक रूप से बेहद परेशान है. वह चाहती है कि मां की मौत की सचाई जानने में देव मदद करे. उधर, अरूप सिंह सिलसिलेवार हो रही मौतों को सुलझाने में देव की मदद लेने लगता है. दोनों दोस्त बन जाते हैं. देव मरने वालों की आत्मा से मिलता है और पता लगता है कि उनके जीवन की आखिरी घड़ियों में ऐसा क्या हुआ जो मौत का कारण बना. द लास्ट आवर की कहानी पहले-दूसरे एपिसोड में रोचक ढंग से शुरू होती है और रफ्तार भी पकड़ती है. सिक्किम के लोकेशन और उत्तर-पूर्व के कलाकार इसके दृश्यों को नया रंग देते हैं. लेकिन क्रूर यमू नाडु से भागते नायक की कहानी के बीच जीवन-मृत्यु से परे संसार के रहस्यों वाली यह कहानी जैसे-जैसे आगे बढ़ती है, भटकने लगती है. लेखक-निर्देशक की पकड़ ढीली पड़ जाती है. आप पाते हैं कि अचानक मीडिया में यमू नाडु, खूब सारी हत्याओं और क्षेत्र में लड़कियों के असुरक्षित होने की बातें होने लगी हैं. बार-बार हत्याएं और देव का मृतकों के अतीत में झांकना, दोहराव पैदा करने लगते हैं. अनेक वेबसीरीजों की तरह द लास्ट आवर की भी यही मूल समस्या है कि शुरुआती रोमांच को बरकरार नहीं रख पाती और कहानी बढ़ने के साथ लड़खड़ाने और दिशा भटकने लगती है. अतः बोझिल हो जाती है. पता ही नहीं लग पाता कि लेखक-निर्देशक असल में क्या और किसकी कहानी कहना चाह रहे हैं. द लास्ट आवर शुरुआती घंटों के बाद चमक खो देती है. इसकी औसतन आधे-आधे घंटे से अधिक की आठ कड़ियां बहुत लंबी लगने लगती हैं. पिछले साल संजय कपूर ने द गॉन गेम के साथ ओटीटी पर बढ़िया शुरुआत की थी. लेकिन यहां बड़ा किरदार होने के बावजूद असर नहीं छोड़ पाते. ऐसा लेखकीय-निर्देशकीय कमी का कारण है. शाहना गोस्वामी ने अपना रोल ठीक निभाया है. जबकि लेखन और निर्देशन की पढ़ाई करने वाले ऐक्टर करमा तकपा, रॉबिन तमांग और कश्मीर से आईं शायली कृषेन अपने किरदारों में प्रभावी दिखे हैं. रायमा सेन नाम मात्र के लिए हैं. द लास्ट आवर को खूबसूरती से शूट किया गया है और सिक्किम के लोकेशन आकर्षक हैं. |
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