कौमी एकता की अनूठी मिसाल हैं मुस्तकीम
जनता जनार्दन संवाददाता ,
Aug 22, 2011, 17:23 pm IST
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मिर्जापुर: हम सभी अपने- अपने धर्म को मानने वाले शायद सिर्फ अपने रीति रिवाजों का पालन करते है लेकिन एक इंसान ऐसे भी है जो र्पांचों वक्त नमाज और नियिमत रूप से रोजे रखने वाले उत्तर प्रदेश में मिर्जापुर जिले के मोहम्मद मुस्तकीम अहमद हिन्दू समुदाय के कार्यक्रमों में देवी भजन और रामचरित मानस का पाठ कर कौमी एकता की अनोखी मिसाल पेश कर रहे हैं। मिर्जापुर जिले के भटौली गांव के निवासी मुस्तकीम पिछले 20 वर्षो से मंदिरों में देवी गीत के कार्यक्रम और रामचरित मानस का संगीतमय पाठ कर रहे हैं। होरमोनियम की धुन पर मुस्तकीम को रामायण की चौपाईयां गाते सुनकर लोग उनकी तारीफ करने से खुद को नहीं रोक पाते। 40 वर्षीय मुस्तकीम कहते हैं,"कण-कण में भगवान तो क्या हिंदू और क्या मुसलमान। जब हम सब एक हैं तो इबादत हो या पूजा..ईश्वर को याद करना ही सबसे बड़ा धर्म है, चाहे वह किसी भी रूप में हो। मैं पिछले करीब 15 वर्षो से हर साल नवरात्रि के अवसर पर मशहूर विन्ध्याचल मंदिर में लगातार नौ दिन देवी का भजन कीर्तन करता हूं।" एक मुस्लिम होकर देवी गीत गाने और रामचरित मानस का पाठ करने का विरोध भी उन्हें झेलना पड़ा। कई रिश्तेदारों और मित्रों ने तो इसी कारण उनसे रिश्ता भी तोड़ लिया। मुस्तकीम कहते हैं, "मुझे इससे कोई फर्क नहीं पड़ता क्योंकि मेरा परिवार हमेशा से मेरा समर्थन करता आ रहा है। मेरा मानना है जब हम सब एक हैं तो अपने आप को जाति और धर्म के बंधन में बांधना उचित नहीं है। मुस्तकीम याद करते हुए कहते हैं, "जब मैं 15 वर्ष का था तब मेरे गांव के दुर्गा मंदिर में भजन का कार्यक्रम करने एक मंडली आई थी। मंडली के देवी गीतों ने मुझे इतना प्रभावित किया कि मैं ओर आकृष्ट हो गया। मुस्तकीम ने गायन के साथ-साथ हारमोनियम, वायलिन और बांसुरी जैसे वाद्ययंत्रों को भी बजाना सीख लिया।" मेरी गायकी और भजनों से प्रसन्न होकर धीरे-धीरे लोग देवी मां के जगराता, रामचरित मानस जैसे अन्य धार्मिक कार्यक्रमों के लिए उन्हें बुलाने लगे।" |
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