साहित्य अकादेमी का साहित्योत्सव 2021 संपन्न
जनता जनार्दन संवाददाता ,
Mar 14, 2021, 17:38 pm IST
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दिल्ली: साहित्य अकादेमी द्वारा आयोजित किए जा रहे ‘साहित्योत्सव 2021’ के अंतिम दिन अनुवाद पुरस्कार 2019 से पुरस्कृत अनुवादकों ने अपने रचनात्मक अनुभव साझा किए। इस अनुवाद सम्मिलन की अध्यक्षता साहित्य अकादेमी के उपाध्यक्ष माधव कौशिक ने की.
सर्वप्रथम असमिया में पुरस्कृत नव कुमार सन्दिकै ने अपना वक्तव्य प्रस्तुत करते हुए कहा कि संस्कृत कृति ‘राजतरंगिणी’ के कालजयी विषय ने उन्हें इसका अनुवाद असमिया लोगों के बीच लाने के लिए प्रेरित किया। तपन बंद्योपाध्याय, जो कि स्वयं प्रख्यात बाङ्ला कथाकार है ने कहा कि अच्छा समय व्यतीत करने के लिए वे अनुवाद कार्य करते हैं, लेकिन बड़ी गंभीरता के साथ
हिंदी में पुरस्कृत आलोक गुप्त ने कहा कि भारत की बहुभाषिकता और बहुसांस्कृतिकता एक वरदान है और इस विरासत का सही परिचय कराना हम अनुवादकों का सबसे बड़ा दायित्व है। उन्होंने बताया कि जिस रचना के अनुवाद के लिए मुझे अकादेमी ने पुरस्कृत किया है, वह गुजराती का वृहद उपन्यास ‘सरस्वतीचंद्र’ (चार खंडों में) 2000 पृष्ठों का उपन्यास है। यह उस समय की रचना है जब भारतीय भाषाओं में इतने व्यापक फलक पर कोई उपन्यास नहीं लिखा गया था। कन्नड के लिए पुरस्कृत विट्ठलराव टी. गायकवाड ने कन्नड और मराठी में अनुवाद की पूरी परंपरा का विस्तार से उल्लेख किया। कश्मीरी के लिए पुरस्कृत रत्न लाल जौहर ने अपने अनुवादक होने का श्रेय साहित्य अकादेमी द्वारा समय-समय पर आयोजित की जाने वाली अनुवाद कार्यशालाओं को दिया।
कोंकणी के लिए पुरस्कत जयंती नायक ने अपने वक्तव्य में कहा कि ‘जिं़दगीनामा’ उपन्यास, प्रसिद्ध हिंदी साहित्यकार कृष्णा सोबती जी की एक महत्त्वपूर्ण तथा विलक्षण कृति है। उसमें जीवन का हर पहलू है। कहने को तो यह पंजाब के जीवन, इतिहास एवं संस्कृति की पृष्ठभूमि में रचित उपन्यास है, लेकिन सही मायने में यह पूरे भारतवर्ष का मौखिक इतिहास है। मैथिली के लिए पुरस्कृत केदार कानन ने अपने वक्तव्य में कहा कि मैथिली में अन्य भारतीय भाषाओं की तरह ही साहित्य सृजन की लंबी परंपरा रही है। अनुवाद कार्य कठिन है। कठिन इस अर्थ में कि जब तक आप रचना और रचनाकार के मानस और प्रकृति में डूब नहीं जाते, रम नहीं जाते, आप अच्छा सृजनात्मक अनुवाद नहीं कर पाएँगे। यह चुनौती भरा काम है, लेकिन इससे मुठभेड़ करना ही पड़ता है, तभी तो अनुवाद को रचनाओं का पुनर्सृजन माना जाता है।
नसीरुद्दीन शाह की अंग्रेज़ी आत्मकथा के मराठी अनुवाद के लिए पुरस्कृत सई परांजपे ने कहा कि नसीर के लेखन में जो ताज़गी और सच्चाई थी उसने मुझे बेहद प्रभावित किया। जहाँ कठिनाई हुई मैंने उनके साथ विचार-विमर्श कर उसे समझा और सुधारा। संस्कृत के लिए पुरस्कृत प्रेमशङ्कर शर्मा ने बताया कि विज्ञान का विद्यार्थी होते हुए भी उनकी रुचि धर्म, साहित्य और दर्शन में थी, जो कालांतर में संस्कृत प्रेम में परिवर्तित हुई।
ओड़िआ में पुरस्कृत अजय कुमार पटनायक ने अपने वक्तव्य में कहा कि अंतराष्ट्रीय स्तर पर देश-विदेश के बीच संपर्क सेतु स्थापन में अनुवाद की गुरुत्वपूर्ण भूमिका रही है। न केवल साहित्य और संस्कृति, बल्कि विभिन्न आविष्कार, धर्म, विज्ञान, चिकित्सा, राजनीति, व्यापार, शिक्षा, प्रौद्योगिकी आदि प्रत्येक क्षेत्र में भाव विनिमय हेतु समग्र विश्व का कल्याण हो सका है। अनूदित ग्रंथ जहाँ मौलिक ग्रंथ का अनुभव ला देता है, उसे सफल अनुवाद माना जाता है। उन्होंने इच्छा व्यक्त की कि नई पीढ़ी के लिए निरंतर उच्चस्तरीय अनुवाद प्रशिक्षण की व्यवस्था की जाए जिसमें अनुवाद की बारीकियों, भाषिक संवेदनाओं एवं स्वरूपों पर गहन चर्चा हो। राजस्थानी में पुरस्कृत देव कोठारी ने कहा कि ‘‘चारु वसंता’’ कन्नड भाषा के ख्यातनाम लेखक नाडोज प्रो. हम्पा नागराजय्या का जनमुखी और समाजमुखी लोक महाकाव्य है। मैंने इसे पढ़ तथा यह पाया कि इसके रोचक कथानक, भाषायी वैभव तथा सांस्कृतिक एवं सामाजिक सम्प्रेषण की इसमें तथ्यात्मक एवं प्रवाहमयी अभिव्यक्ति हुई है। इस तरह के कथानक से मैं काफ़ी प्रभावित हुआ और इसका अनुवाद कर मुझे काफ़ी आत्मीय संतोष हुआ है। संताली, नेपाली एवं तमिळ अनुवादकों ने भी अपने विचार साझा किए।
सिंधी में पुरस्कृत ढोलन राही ने अपने वक्तव्य में कहा कि अनुवाद कर्म अत्यंत ज़िम्मेदारी भरा दुष्कर कार्य है। एक तरह से परकाया प्रवेश कर एक नई कायाकृति के सृजन जैसा या किसी इमारत को तोड़कर उसके मलबे से किसी नई इमारत के पुनर्निर्माण सरीखा यह कार्य होता है। तेलुगु में पुरस्कृत पी. सत्यवती ने कहा कि मुझे अंग्रेज़ी से अनुवाद करते समय लेखक द्वारा प्रयुक्त की जाने वाली संबंध सूचक शब्दावली से कई मुश्किलें हुईं, ख़ासतौर पर अंकल और कज़िन के भारतीय रिश्तों को समझाने के लिए। उर्दू में पुरस्कृत असलम मिर्ज़ा ने कहा अनुवाद पाठकों के लिए ही नहीं बल्कि सृजनात्मक लेखकों के लिए भी नए द्वार खोलते हैं।
साहित्य अकादेमी के उपाध्यक्ष माधव कौशिक ने कहा कि अनुवादक विभिन्न देशी-विदेशी संस्कृतियों को मिलाने का काम कर रहे हैं और आने वाला दशक अनुवादकों का ही होगा। संचार माध्यमों और तकनीक के व्यापक प्रसार के कारण अनुवाद आने वाले समय में सबसे महत्त्वपूर्ण तो रहेगा ही बल्कि उसे अंतराष्ट्रीय स्तर पर पहचान भी प्राप्त होगी। अंत में, साहित्य अकादेमी के सचिव के. श्रीनिवासराव ने सभी के प्रति धन्यवाद ज्ञापन किया । |
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