अन्ना आन्दोलन की कामयाबी से घबराई सरकार मीडिया मैनेज में जुटी
जनता जनार्दन संवाददाता ,
Aug 21, 2011, 15:06 pm IST
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नई दिल्ली: प्रख्यात गांधी वादी अन्ना हजारे के आन्दोलन को मिल रहे अथाह जन समर्थन से घबराई सरकार ने इसके लिए मीडिया खासकर न्यूज चैनलों को दोषी ठहराते हुए अब मीडिया में अपने रसूख का इस्तेमाल करते हुए इस तबके को भी बांटने की कोशिश शुरू कर दी है. सरकार के मैनेजरों ने यही कोशिश अन्ना के खिलाफ कुछ एन जी ओ को खड़ा कर किया है. इसके अलावा बौद्धिकों में भी सत्ता की मलाई चाट रहे बाहरी तबके को भी लोगों को बरगलाने और अफवाह फ़ैलाने की जिम्मेदारी दी गई है.
कुछ मीडिया चैनलों पर दबाव बनाकर बाकायदा ऐसी बहस कराई जा रही है, जिससे लगे की अन्ना का समर्थन हवाई है, पहले इस आन्दोलन को शहरी करार दिया गया था, बाद में मध्यवर्ग का, उसके बाद एनजीओ का, फिर बाहरी इशारे पर, फिर आरएसएस का, अमरीका का और अब मीडिया , खासकर हिन्दी मीडिया का बताया जा रहा है. कुछ समाचार एजेंसियों ने एक्सपर्ट की राय बता कर उन पत्रकारों या स्तंभकारों के बयान छपे हैं, जो घोषित , अघोषित तौर पर सरकार से लाभ उठाते रहे हैं. कुछ तो सरकारी भोपूं के तौर पर भी स्थापित हैं. ऐसे ही लोगों में से कुछ ने सामाजिक कार्यकर्ता अन्ना हजारे के भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन की कवरेज में मीडिया, खासतौर से टेलीविजन की भूमिका पर चल रही बहस के बीच विशेषज्ञों ने अधिक संतुलन और निष्पक्षता की जरूरत पर बल दिया है तथा पक्षपातपूर्ण एवं सनसनीखेज रपटों से बचने की जरूरत बताई है। समाचार पत्र 'द हिंदू' के सम्पादक सिद्धार्थ वरदराजन ने कहा, "अन्ना हजारे के आंदोलन की कवरेज में अधिक संतुलन और निष्पक्षता की जरूरत है। मीडिया अन्ना टीम की और अन्ना के सहयोगियों के अनुचित बयानों की आलोचना नहीं कर रहा है।" सूचना एवं प्रसारण मंत्री अम्बिका सोनी ने अन्ना हजारे की उस टिप्पणी की आलोचना की है, जिसमें उन्होंने कहा था कि मीडिया और उनके समर्थक उनके परिवार की तरह है और उन्होंने मीडिया द्वारा आंदोलन को मिली हवा पर आश्चर्य जताया। वरदराजन ने अन्ना हजारे की उस मांग को अनुचित करार दिया, जिसमें उन्होंने लोकपाल विधेयक को 31 अगस्त तक पारित करने की सरकार से मांग की है। वरदराजन ने कहा कि इससे संसदीय प्रक्रिया कमजोर होती है। उन्होंने कहा, "एक स्थायी समिति विधेयक का परीक्षण कर रही है। संवैधानिक प्रक्रिया अन्ना के आंदोलन के साथ-साथ चल सकती है।" वरदराजन ने कहा, "इलेक्ट्रॉनिक मीडिया द्वारा अन्ना पक्ष को जिस तरह बढ़ावा दिया जा रहा है, उससे मैं परेशान हूं। लेकिन प्रिंट मीडिया को भी इस मुद्दे पर आत्मनिरीक्षण की जरूरत है।" याद रहे कभी अपनी निष्पक्षता के लिए मशहूर रहे 'द हिंदू' अखबार के पूर्व ब्यूरो चीफ इस समय प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के मीडिया सलाहकार हैं और इस समूह को अपने पारिवारिक विवादों के चलते परिवार से बाहर का संपादक चुनना पड़ा और यह समूह कभी भी अपने विवाद के हल के लिए सरकारी पैरवी की गुहार लगा सकता है. वरिष्ठ पत्रकार प्रेमशंकर झा ने भी समान विचार व्यक्त किया। उन्होंने कहा कि समाचार और विश्लेषण के बीच अधिक संतुलन की आवश्यकता है। झा ने कहा, "टीवी पर विश्लेषण जब राजनीतिक दलों के प्रतिनिधियों के बीच की लड़ाई बन गई है, ऐसे में आप इससे क्या परोस रहे हैं।" झा के अनुसार, कवरेज के मामले में प्रिंट मीडिया, इलेक्ट्रॉनिक मीडिया की बनिस्पत अधिक संतुलित है। झा सरकार के पक्षधर समझे जाने वाले बिड़ला समूह के अखबार 'हिंदुस्तान टाइम्स' के वरिष्ठ स्तंभकार हैं. टिप्पणीकार संजय हजारिका ने टेलीविजन की भूमिका पर विशेष ध्यान आकर्षित करते हुए कहा कि राजनीतिज्ञों और उद्योगपतियों के साथ मीडिया की सांठगांठ की जांच होनी चाहिए। 'न्यूयार्क टाइम्स' में काम कर चुके हजारिका ने कहा, "जनता की नाराजगी सीधे राजनीतिज्ञों से है। अब उद्योगपतियों, मीडिया और राजनीतिज्ञों के गठजोड़ पर ध्यान दिया जाना चाहिए।" हजारिका ने कहा कि अतीत में हुए इसी तरह के आंदोलनों का कोई असर नहीं हुआ। उन्होंने कहा, "न तो मीडिया प्रक्रिया का ख्याल कर रही है और न तो इसके पास खुला दिमाग ही है।" वरिष्ठ पत्रकार भास्कर रॉय ने कहा, "यदि मीडिया आरोप लगा रहा है, तो दूसरे पक्ष को भी अपना पक्ष रखने का मौका देना चाहिए। जमीनी सच्चाई बताते समय मीडिया को जिम्मेदारी के साथ काम करना चाहिए।" हालांकि हिंदी समाचार पत्र 'दैनिक भास्कर' के समूह सम्पादक श्रवण गर्ग ने कहा, "हजारे के आंदोलन का कवरेज न तो अंतर्राष्ट्रीय है, न सुनियोजित ही।" गर्ग ने कहा, "कल यदि कोई दूसरा बड़ा आयोजन शुरू हो गया, तो मीडिया इस तरफ से आंखें बद कर लेगी। मीडिया मात्र जनता की मांग पूरी कर रहा है। जनता की भावना भ्रष्टाचार के खिलाफ है, जो मीडिया में दिखाई दे रही है।" इस मसले पर समाचार चैनल आईबीएन 7 के प्रबंध संपादक आशुतोष का कहना है की मीडिया वही दिखा रहा है, जो सच है. देश का आम आदमी, नौजवान, यहां तक की बच्चा बूढ़ा भी अन्ना हजारे के साथ है, उनके आन्दोलन को समर्थन दे रहा है, ऐसे में हम इसकी अनदेखी कैसे कर सकते हैं. मीडिया की कवरेज किसी के खिलाफ या पक्ष में नहीं, बल्कि सच के साथ है. |
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