अग्निवेश: शांत हो जाना वैचारिक अग्नि की एक सम्मोहक लपट का
त्रिभुवन ,
Sep 12, 2020, 18:02 pm IST
Keywords: स्वामी अग्निवेश त्रिभुवन वरिष्ठ पत्रकार सोशल मीडिया लेख फेसबुक लेख आर्य समाज Swami Agnivesh Senior Journalist Social Media Article Tribhuvan Senior Journalist News Aaryasamaz
अग्निवेश एक अलग तरह के साधु और एक विलक्षण तरह कर सामाजिक नेता थे। उनके व्यक्तित्व में सम्मोहन और उनकी भाषा में एक आज था। वे विवादास्पद भी थे। वे विवादों को निमंत्रित भी करते थे। लेकिन सच में वे मुक्तिवादी और साम्यकामी थे। उनकी उपस्थिति विरोधियों को परेशान करती थी। वे जिज़ समय जीवन के आख़िरी क्षणों में थे, तब कथित हिंदुत्ववादी लोगों ने उन पर अपमानजनक हमला किया। वृद्धों और साधुओं के प्रति सदैव करुणा और दयाशील सनातन धर्म में ऐसा भी संभव है, यह कल्पना से परे है। लेकिन इस दौर में हर असंभव संभव है। अग्निवेश का अपना आर्यसमाज आज दयानन्द सरस्वती के दर्शन से परे भटकता हुआ शीर्षासन मुद्रा में है और पाखंडों का रणसिंघा फूँक रहे जड़मूर्तिपूजकों की उंगली थामे खड़ा है। उसका तेज, तर्क और आज प्रभाहीन है।
वैदिक धर्म एक इंद्रधनुष सा रहा है। दयानंद सरस्वती ने एक नई जीवनदृष्टि से उसे निखारा और अंधेरे में भटकते देश को एक नवजागरण की चेतना दी। भारतभूमि को यूरोप के मार्टिन लूथर का पुनर्जागरण एक नई लौ के साथ दिया। उसे उन्होंने लपट बनाया। इसी लपट की कुछ रश्मियाँ लेकर अग्निवेश सामाजिक परिवर्तन के अभियान में उतरे। देश में सती कांड की जब अनुगूँज हुई तो अग्निवेश बहुत प्रभावी आंदोलनकारी के रूप में उभरे। उन्होंने दलितों के मंदिर प्रवेश का अभियान चलाया तो आर्यसमाजी उन पर टूट पड़े! जड़ मूर्तिपूजा के समर्थन में हमारा साधु कैसे हो सकता है! समय व्यतीत होता गया और ये बहादुर साधु तो जड़ के विरुद्ध ही रहा। सचेतन रहा। और आर्यसमाज का एक बड़ा वर्ग अचेतन होकर जड़मूर्तिपूजकों की जमात में जाकर बैठ गया। उस अयोध्या में, जहाँ दयानंद सरस्वती ने तीन महीने मंदिरों, मूर्तियों और सभी धर्मों के पाखंड के विरुद्ध अनवरत अलख जगाई और गरजते-बरसते विवेकपूर्ण मानवतावादी भारत की कल्पना करते रहे। एक अच्छी और ख़ूबसूरत दुनिया की।
मैं एक आर्यसमाजी पिता का विद्रोही और नास्तिक पुत्र था। लेकिन आर्यसमाज के कुछ साधु मुझे बहुत अच्छे लगते थे। इनमें अग्निवेश भी एक थे। मैं दसवीं कक्षा से ही उन्हें पत्र लिखने लगा था। उनके जवाब भी आते। पहली बार दिल्ली गया तो जिन दो-तीन लोगों से मिलने की इच्छा थी, उनमें एक अग्निवेश ही थे। उनके और उनके बारे में लिखे लेखों की मेरे पास पूरी फाइल थी। वे इतना अच्छा और स्पष्ट बोलते थे कि मन हर्षित होता था। लेकिन जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल के एक घटनाक्रम को लेकर उनके एक लेख ने मेरा उनसे मोहभंग कर दिया। जयपुर की जानीमानी लेखक लवलीन और कुछ अन्य महिलाओं और राजस्थानी के साहित्यकारों के साथ नमिता गोखले के एक बहुत अप्रिय और दुर्व्यवहार के एक प्रकरण में वे अचानक कूद पड़े और एकदम साफ झूठ लिख गए कि ऐसा कोई घटनाक्रम हुआ ही नहीं। जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल के दौरान उनके व्यक्तित्व को लेकर मुझे बड़ा धक्का तब लगा जब हरियाणा और पूरे देश में शराबबंदी अभियान का यह योद्धा एक टेबल पर डिनर कर रहा था और चारों तरफ आयोजकों की मुफ़्त परोसी हुई सुवासित मदिरा का लोग आनंद उठा रहे थे! मुझे यह ठीक नहीं लगा। वह परिदृश्य साफ़ बता रहा था कि स्वामी जी के व्यक्तित्व में कई विरोधाभासी तत्त्व विद्यमान हैं।
लेकिन उनमें बुराइयों से लड़ने का बड़ा अद्भुत साहस था। उनके निकट सहयोगी और कालांतर में उनसे अलग हुए कैलाश सत्यार्थी को नोबेल पुरस्कार मिल गया है, लेकिन इसके बावजूद उनकी धमक अग्निवेश जैसी नहीं बन पाई है। अग्निवेश की उपस्थिति धार्मिक कर्मकांडियों, सांप्रदायिकों और रूढ़िवादियों को विचलित करती थी, लेकिन दयानंद सरस्वती के सत्यार्थप्रकाश से प्रभावित और सत्यार्थी उपनाम के बावजूद नोबेल पुरस्कार विजेता में वह सम्मोहन नहीं है, जिसे अग्निवेश ने अपना पर्याय बना लिया था। अन्ना आंदोलन के दौरान जिन दो लोगों की भूमिका महत्वपूर्ण रही और बाद में जिन्हें अरविंद केजरीवाल ने बाहर कर दिया, उनमें अग्निवेश के अलावा योगेंद्र यादव भी थे। योगेंद्र यादव का अपना नैतिक बोध है और इस मामले में वे अग्निवेश से उन्नीस नहीं। लेकिन केजरीवाल जे राजनीतिक मार्ग में ये दोनों बड़ी बाधा थीं। और केजरीवाल ने दोनों को अपने रास्ते से हटाने में कुशलतम कुटिलता का प्रयोग किया और स्वयं को सर्वेसर्वा स्थापित कर लिया। लेकिन अग्निवेश की उपस्थिति यथावत रही। पूर्व प्रधानमंत्री अटलबिहारी वाजपेयी के अंतिम संस्कार के समय और झारखंड में हुए दुर्व्यवहार ने साबित किया कि एक बूढ़े संन्यासी से धर्मांध खेमा कितना विचलित था।
अग्निवेश का जाना उस विवेकवादी साहस का जाना है, जिसकी अंतःप्रेरणा भारतीय वैदिकवाद था। ब्राह्मणवाद से मुक्त भी, स्त्री स्वातन्त्र्य की चेतना में भीगा भी और मानवतावाद की राह गहते हुए प्रकृति संरक्षण की संस्कृति को व्यापक अर्थ में जीता हुआ भी। पृथिवी को माँ और मनुष्य को उसकी संतान घोषित करने वाला जीवन दर्शन। राष्ट्रवादी चेतना से बहुत परे की बात। अग्निवेश ने वैदिक संपत्ति नामक एक पुस्तक भी लिखी, जो उन्होंने स्वयं मुझे दिल्ली में भेंट की थी। आज के दौर में उनका जाना एक बड़ी क्षति है। यातना और अँधेरे में अग्निवेश थोड़ा सा अधिक प्रकाश थे। वे सत्तावादी नहीं थे। उनकी कोई प्रबल चाह नहीं थी। उनके जीने का अंदाज़ उन्हें विलक्षण बनाता है। उनके छोटे-छोटे त्याग उन्हें सम्मोहन देते हैं। लेकिन उनका नाम और काम ऐसा है कि वह उन्हें एक महकते फूल की तरह उपस्थित रखेगा। काश, आर्यसमाज ऐसे कुछ और साधु संन्यासी दे पाता, जो साम्प्रदायिक और जड़तावादी होने से बचकर विज्ञानवाद, विवेकवाद और मानवतावाद की लौ को अपने रक्त से इस तूफ़ान में जलाए रख सकें। |
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