टिप्पणी: आम आदमी को "आम" की तरह चूस रहे है मोदी जी !
अमित मौर्य ,
Feb 04, 2019, 10:06 am IST
Keywords: आम आदमी को "आम" की तरह चूस रहे है मोदी जी मुग़ल कालीन जुमला है "कत्ले आम" यानी यहाँ भी आम आदमी का ही क़त्ल होता था ...अंग्रेजों के समय भी आम आदमी ही गुलाम था ...नेहरू से लेकर मोदी तक कभी भी आम आदमी की खैर नहीं रही ...आजादी के बाद से अब तक हर साल बजट लाखों करोड़ों की योजनाओं के बाद भी निम्न वर्ग आज भी वही खड़ा है जहाँ वो पहले खड़ा था किसान आज भी वैसे ही परेशान है जैसे पहले भी परेशान था लेकिन हुक्मरानों के चेहरों पर बेशर्मो की तरह मुस्कान है मध्य वर्ग के लोग लोन पर मकान या कार
आम आदमी को "आम" की तरह चूस रहे है मोदी जी मुग़ल कालीन जुमला है "कत्ले आम" यानी यहाँ भी आम आदमी का ही क़त्ल होता था ...अंग्रेजों के समय भी आम आदमी ही गुलाम था ...नेहरू से लेकर मोदी तक कभी भी आम आदमी की खैर नहीं रही ...आजादी के बाद से अब तक हर साल बजट लाखों करोड़ों की योजनाओं के बाद भी निम्न वर्ग आज भी वही खड़ा है जहाँ वो पहले खड़ा था किसान आज भी वैसे ही परेशान है जैसे पहले भी परेशान था लेकिन हुक्मरानों के चेहरों पर बेशर्मो की तरह मुस्कान है मध्य वर्ग के लोग लोन पर मकान या कार खरीदने के लिए आवश्यकता पड़ने पर ही आयकर रिटर्न भरने के लिए अपनी खोपड़ी खपाता है और सच कहूं तो देश के सभी अराजनैतिक व्यक्तियों को अब इन लोक लुभावन बजटों से कोई फर्क नही पड़ने वाला है कितने दुःख की बात है कि जब कोई किसान कर्ज में डूब कर अपने ही खेत के मेड़ के किनारे लगे अपने ही हाथ से सींचे गए पेड़ पर मौत का फंदा लगा कर अपने जीवन को खत्म कर देता है.
हम लोग अक्सर सुबह चाय की चुस्की लेते हुए अपनी बीबियों से चर्चा करते हुए बस कहते रहते है कि देखो आज फिर अखबार में किसान आत्महत्या की खबर छपी है किसी के यहाँ कोई घटना होती है तो वो हमारे लिए बस खबर ही रहती है फिर उसके बाद कि कोई खबर कोई भी खबरनवीस नही लेता की जिसके यहाँ इस तरह की मौते होती है उसका परिवार कैसा है दिनप्रतिदिन हम इंसान से पाषाण बनते जा रहे है कार्टून की दुनिया में आर के लक्ष्मण के "आम आदमी" की हैसियत काक के कार्टूनों में भी नहीं बदली ...आम आदमी पर वामपंथी कविता सुनते ख़ास आदमी ने भी द्वंदात्मक भौतिकवाद दनादन बघारा ...आम आदमी की चिंता में संसद के ख़ास आदमी अक्सर खाँसते हैं बजट समान शिक्षा पर कोई समान चिकित्सा पर कोई बजट नही ..अरे भाई आम आदमी वह है जिसे केरोसीन के तेल का मोल पता हो ...राशन की दूकान की कतार में कातर सा खडा हो ...आलू की कीमत से जो आहात होता हो ...जो बच्चों के साथ खिलोनो की दूकान से कतरा कर निकलता हो ...जो बच्चों को समझाता हो कार बालों को डाईबिटीज़ हो जाती है क्योंकि वह पैदल नहीं चलते ...आम आदमी अंगरेजी नहीं बोलता ...आम आदमी के बच्चे मुनिस्पिल स्कूल में पढ़ते है। वहां टाट -पट्टी पर बैठ कर इमला लिखते हैं ...वह जब कभी रोडवेज़ बस से चलता है ...उसका इनकम टेक्स से उसका कोई वास्ता नहीं होता किन्तु वह इनकम टेक्स अधिकारी से भी उतना ही डरता है जितना और सभी घूसखोर अधिकारियों से डरता है क्योंकि घूस देने पर उसके सपनो का एक कोना तो टूट ही जाता है ... आम आदमी देश की मिट्टी से जुडा होता है वह खेत की मिट्टी देख कर बता देता है कि यह बलुअर है या दोमट आम आदमी मिट्टी देख कर बता देता है इस मिट्टी में कौन सी फसल होगी सरकार के इस बजट से चुनाव में कितने वोट मिलेंगे ये तो भविष्य के गर्भ में है लेकिन ये बात तो तय है कि इस चुसनी बजट से आम आदमी को कोई राहत नही मिलेगी बस एक बार फिर आम आदमी को आम की तरह चूसने की मोदी जी की पूरी तैयारी है |
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