महिला आरक्षण: भारत की राजनीति में "देह राजनीति" से प्रवेश
अमित मौर्या ,
Oct 20, 2018, 18:25 pm IST
Keywords: Article Womens Womens Article Amit Maurya Editor Gunj Uthi Ranbheri Editor
महिलाओं को राजनीति में आरक्षण चाहिए .-- क्यों ? कैसा ? आखिर यह करना क्या चाहती हैं ? देश के लिए कुछ करने के लिए आरक्षण की जरूरत नहीं जहाँ जिसे आरक्षण चाहिए उसे राष्ट्र भक्षण के लिए आरक्षण चाहिए राष्ट्र संरक्षण के लिए आरक्षण कोई नहीं माँगता .
जो राजनीति में सफल है बस वो फाइलों पर हस्ताक्षर के लिए है चाहे प्रधान,ब्लाक प्रमुख,जिला पंचायत अध्यक्ष ,विधायक,सांसद या मंत्री सब कार्य इन सबके पतिदेव ही करते है. कितनी महिलायें हैं जो देश राजनीति के कारण आज राजनीतिक पटल पर पर हैं और कितनी देह राजनीति के कारण राजनीतिक मलाई चाट रही हैं ?---सभी जानते हैं .यह पश्चिमी देशों का फैलाया मिथक है कि एशिया और मुख्यतः भारतीय उपमहाद्वीप में महिलाओं की दुर्दशा है जबकि सच यह है कि दुनियाँ की सर्वाधिक महिला नेता एशिया में ही हुईं हैं इजराइल की गोल्डा मायर,श्रीलंका की भंडारानायिके, म्यांमार की आन सां सूकी, मलेशिया की मेघावती सुकार्णोपुत्री,बंगलादेश की खालिदा जिया और शेख हसीना, पाकिस्तान की बेनजीर भुट्टो,भारत की इंदिरा गाँधी विश्व राजनीति की महत्वपूर्ण नेता रही हैं . इसके समान्तर सच यह भी है कि विश्व में सर्वाधिक वैश्याएँ भी एशिया और उसके भी भारतीय उपमहाद्वीप से हैं . भारतीय वर्तमान संसद को देखें --लोकसभा अध्यक्ष महिला, विपक्ष की सबसे ताकतवर भी महिला कुछ समय पहले राष्ट्रपति भी महिला थीं .और इस नेतृत्व के बाद महिला की दशा दिशा यह कि विश्व में बालवैश्याओं में हर सातवीं बाल वैश्या भारत की बेटी है . वर्तमान भारत में जहाँ-जहाँ महिला मुख्यमंत्री हैं वहाँ -वहाँ विश्व के सबसे बड़े वैश्यालय हैं . ममता बनर्जी का कोलकाता, शीला दीक्षित की दिल्ली और जयललिता की चेन्नई इसके प्रमाण हैं कि राजनीतिक नेतृत्व से महिला की दुर्दशा नहीं सुधरने वाली ... धर्मेन्द्र के साथ "पानी में जले मोरा गोरा बदन ...पानी में", गाते गाते कब और क्या गुल खिला कर जय ललिता आज पानी से भरे समुद्र तटीय प्रांत की महान नेता हैं यह सर्वविदित है .सतीप्रथा के संस्कारों के सतत विरोध की सनद जयप्रदा की दैहिक दैविक भौतिक जरूरतें पूरी करते करते अमर सिंह पस्त हो चुके हैं सोनियाँएँ , मेनकाएँ , अम्बिकाएं स्मृतियाएँ सुष्मायें और अन्य तमाम अपने दौर की विष कन्याएं "देश राजनीति" से नहीं "देह राजनीति" से एन्ट्री कर हमारी राजनीति के स्खलित चरित्र का चिन्ताजनक कारण बनी ही चुकी हैं . चंडीगढ़ की हिना फ़ना हो चुकीं है . किसी सोनिया , स्मृति को क्या पता खुले में शौच जाने को अभिशिप्त महिला की ग़मगीन गरिमा का सच ...उसे संसद नहीं शौचालय चाहिए . शौचालय बन तो रहे है लेकिन अधिकम कागज पर ही आकड़ो की बाजीगरी हो रही है आज देश का लेटेस्ट फैशन जानना हो तो किसी भी राजनीतिक दल के कार्यालय चले जाईये वहाँ कुछ क्या, बहुत कुछ कर गुजरने का जज्वा लिए विभिन्न आकार प्रकार की कई नगर बधू और पिनकोड बधू तक मिल जाएँगी जिनकी छठा बता रही होगी कई वह देश के लिए बहुत कुछ ही नहीं सब कुछ करने पर आमादा है बशर्ते ... आरक्षण समाज सेवा की लगन के आधार पर नहीं लिंग के आधार पर चाहिए लिंग के आधार पर अनुकम्पा पुरुष को कापुरुष या शिखन्डी बनने, महिला को वैश्या बनने और हिजड़े को नेग मिलने की हद तक अपमान के पंकिलतल तक डुबो देता है ...फिर भी अगर लिंग आधारित आरक्षण की दरकार है तो पुरुषों को 33 % , महिलाओं को 33 %, हिजड़ों को 33 % और शेष बचे 01 % में बौबी डार्लिंग, रेणुका चौधरी, विस्मृति ईरानी ,सनी लियोनी राखी सावंत सरीखी लिंगेतर प्रतिभाओं को समायोजित कर देना चाहिए |
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