सबरीमाला मंदिर में सभी उम्र की महिलाओं को प्रवेश की अनुमति: उच्चतम न्यायालय
जनता जनार्दन संवाददाता ,
Sep 28, 2018, 18:42 pm IST
Keywords: Sabarimala temple Supreme Court Ayyappa temple Sabarimala Women entry Hindu women rights उच्चतम न्यायालय सबरीमाला अय्यप्पा स्वामी मंदिर महिलाओं को प्रवेश सबरीमाला मंदिर
नई दिल्लीः उच्चतम न्यायालय ने शुक्रवार को अपने फैसले के माध्यम से केरल के सबरीमाला स्थित अय्यप्पा स्वामी मंदिर में सभी उम्र की महिलाओं के प्रवेश का रास्ता साफ कर दिया।
प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय पीठ ने 4:1 के बहुमत के फैसले में कहा कि मंदिर में महिलाओं को प्रवेश से रोकना लैंगिक आधार पर भेदभाव है और यह परिपाटी हिन्दू महिलाओं के अधिकारों का उल्लंघन करती है। प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि धर्म मूलत: जीवन शैली है जो जिंदगी को ईश्वर से मिलाती है। न्यायमूर्ति आर. एफ. नरीमन और न्यायमूर्ति डी. वाई. चन्द्रचूड़ ने प्रधान न्यायाधीश तथा न्यायमूर्ति ए. एम.खानविलकर के फैसले से सहमति व्यक्त की जबकि न्यायमूर्ति इन्दु मल्होत्रा का फैसला बहुमत के विपरीत है। संविधान पीठ में एक मात्र महिला न्यायाधीश न्यायमूर्ति इन्दु मल्होत्रा ने कहा कि देश में पंथनिरपेक्ष माहौल बनाये रखने के लिये गहराई तक धार्मिक आस्थाओं से जुड़े विषयों के साथ छेड़छाड़ नहीं की जानी चाहिए। न्यायमूर्ति मल्होत्रा का मानना था कि ‘सती’ जैसी सामाजिक कुरीतियों से इतर यह तय करना अदालत का काम नहीं है कि कौन सी धार्मिक परंपराएं खत्म की जाएं। न्यायमूर्ति मल्होत्रा ने कहा कि समानता के अधिकार का भगवान अय्यप्पा के श्रद्धालुओं के पूजा करने के अधिकार के साथ टकराव हो रहा है। उन्होंने कहा कि इस मामले में मुद्दा सिर्फ सबरीमाला तक सीमित नहीं है। इसका अन्य धर्म स्थलों पर भी दूरगामी प्रभाव होगा। पांच सदस्यीय पीठ ने चार अलग-अलग फैसले लिखे। पीठ ने केरल के सबरीमाला स्थित भगवान अय्यप्पा मंदिर में रजस्वला आयु वर्ग की महिलाओं के प्रवेश पर प्रतिबंध को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर ये फैसले सुनाये। प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि भक्ति में भेदभाव नहीं किया जा सकता है और पितृसत्तात्मक धारणा को आस्था में समानता के साथ खिलवाड़ करने की अनुमति नहीं दी जा सकती है। उन्होंने कहा कि भगवान अय्यप्पा को मानने वाले किसी दूसरे सम्प्रदाय/धर्म के नहीं हैं। प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि 10-50 आयु वर्ग की महिलाओं को मंदिर में प्रवेश से प्रतिबंधित करने की परिपाटी को आवश्यक धार्मिक परंपरा नहीं माना जा सकता और केरल का कानून महिलाओं को शारीरिक/जैविक प्रक्रिया के आधार पर महिलाओं को अधिकारों से वंचित करता है। न्यायमूर्ति नरीमन ने कहा कि 10-50 वर्ष आयु वर्ग की महिलाओं को प्रतिबंधित करने की सबरीमला मंदिर की परिपाटी का संविधान के अनुच्छेद 25 और 26 समर्थन नहीं करते हैं। अपने फैसले में न्यायमूर्ति नरीमन ने कहा कि महिलाओं को प्रवेश से रोकना अनुच्छेद 25(प्रावधान 1) का उल्लंघन है और वह केरल हिन्दू सार्वजनिक धर्मस्थल (प्रवेश अनुमति) नियम के प्रावधान 3(बी) को निरस्त करते हैं। न्यायमूर्ति चन्द्रचूड़ ने कहा कि महिलाओं को पूजा करने के अधिकार से वंचित करने धर्म को ढाल की तरह इस्तेमाल नहीं किया जा सकता है और यह मानवीय गरिमा के विरूद्ध है। उन्होंने कहा कि गैर-धार्मिक कारणों से महिलाओं को प्रतिबंधित किया गया है और यह सदियों से जारी भेदभाव का साया है। |
क्या आप कोरोना संकट में केंद्र व राज्य सरकारों की कोशिशों से संतुष्ट हैं? |
|
हां
|
|
नहीं
|
|
बताना मुश्किल
|
|
|