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बदहाल सतपोखरी दुल्हीपुरः जल निकासी की व्यवस्था थी नहीं, एक पोखर है, उसे भी पाट रहे

बदहाल सतपोखरी दुल्हीपुरः जल निकासी की व्यवस्था थी नहीं, एक पोखर है, उसे भी पाट रहे मुग़लसराय: ज़िला चंदौली के मुख्यालय से केवल 2.5 किलोमीटर दूर बुनकरों का एक बड़ा गाँव सतपोखरी दुल्हीपुर है. जहां के लोग वर्षों से जल निकासी न होने की पीड़ा झेल रहे हैं. इस गांव के बारे में आम राय है कि यहां के लोग जानवरों की सी ज़िंदगी गुजारने पर मजबूर हैं.

बताया जाता है इस गांव में औसत उम्र लग्भग 37 से 40 वर्ष है. वहीं इस गांव की जनसंख्या लगभग 30 से 35 हज़ार है. यह और बात है केवल 10 हज़ार लोग ही चुनाव के दिनों में वोट देने का हक़ रखते हैं.

यह गांव आज भी कई बुनियादी ज़रूरतों से वंचित है. कहना गलत नहीं होगा कि जवाहर जायसवाल व मायावती सरकार की मेहरबानी से इस गांव के कुछ कच्चे रास्ते सीसी रोड में बदल चुके हैं, वरना यहां के प्रधान कभी कुछ सोच ही नहीं पाए. सच तो यही है कि इस में दोष केवल आज तक चुने हुए ग्राम प्रधानों का ही नहीं बल्कि गांववासियों का भी है, जो हक़ की लड़ाई लड़ने ही नहीं चाहते. चाहे वह जितनी भी मुसीबत झेल लें.

मजेदार बात यह कि इस गांव का यह हाल तब है, जब यहां का हर चौथा आदमी अपने आप में नेता है, और इस में से काफी लोगों का दावा है कि उनकी पहुंच ऊपर तक है.

गांव के ही कु्छ लोगों का दावा है कि इस गांव में कभी 7 पोखरे हुआ करते थे, पर फिलहाल इन में 6 पोखरी को कौन निगल गया लेखपाल तक को मालूम नहीं. हां एक पोखरा का एक वज़ूद बाकी है, जो मुस्तफाबाद व हरिशंकरपुर के बीचों बीच है. बड़े-बूढ़े बताते हैं यह भी कोई पोखरा नहीं बल्कि सरकारी बंजर जमीन है. कुछ कहते हैं कि यह सरकारी पोखरा है, कोई कहता है 65 नंबर की बंजर जमीन पर सरकारी पोखरा है जिस पर गांव समाज का केस चल रहा है. यानी जितने मुँह उतनी बातें.

बहरहाल जो भी हो लेकिन एक सच तो यह भी है कि यह वही अकेला पोखरा है, जहां गांव की एक आधी आबादी का गंदा पानी जा कर जमा होता है. और इस तरह गाँव के लिए यह पोखरा बड़ी राहत की बात है.

अब गाँव में एक हफ्ते से इस बात की बड़ी चर्चा है कि बनारस की किसी पार्टी ने इस पोखरे का पट्टा कर लिया है और अब वह इस पोखरे को मिट्टी से भर रहा है.

गांव के ज़िम्मेदार लोगों सहित आम गाँव वासी समझ नहीं पा रहे हैं कि जब इस पोखरे पर केस चल रहा है या यह सरकारी पोखरा है तो कोई पट्टा कैसे करा सकता है. और चिंता यह भी है कि अगर यह पोखरा किसी के निजी व्यक्ति के कब्जे में चला गया तो गाँव-घर का पानी जाएगा कहाँ? इस तरह तो आने वाले दिनों में पूरे गाँव मे हाहाकार मच जाएगा.

गाँव में यह भी चर्चा है कि कोई क़ब्ज़ा करने के लिए रोज उस पोखरे को मिट्टी से पाट रहा है और गाँव के ज़िम्मेदार, शासन-प्रशासन के लोगों को या तो खबर नहीं है, या है तो फिर वे खामोश क्यों हैं? इस की चर्चा स्थानीय मीडिया तक में भी नहीं है क्यों?

वास्तविकता जो भी हो, गलत क्या है सही क्या है, प्रशासन को इस की खोज खबर तो गाँव के जिम्मेदार लोगों और स्थानीय निवासियों से लेनी ही चाहिए.
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