गूगल ने बहुआयामी कमलादेवी चट्टोपाध्याय की 115वीं जयंती पर डूडल बनाकर किया याद
जनता जनार्दन संवाददाता ,
Apr 03, 2018, 12:14 pm IST
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नई दिल्ली: भारतीय समाज सुधारक और स्वतंत्रता सेनानी कमलादेवी चट्टोपाध्याय की 115वीं जयंती पर गूगल ने डूडल बनाकर याद किया है. कमलादेवी चट्टोपाध्याय का जन्म 3 अप्रैल, 1903 को हुआ था. गूगल ने कमलादेवी चट्टोपाध्याय की 115वीं जयंती टाइटल से डूडल बनाया है. डूडल में कमलादेवी चट्टोपाध्याय के किए गए कार्यों की झलक भी साफ मिल जाती है.
कमलादेवी चट्टोपाध्याय ने आजादी के बाद भारतीय हथकरघा और रंगमंच में नई जान फूंकने में अहम भूमिका निभाई. आज भारत में परफॉर्मिंग आर्ट से जुड़े कई संस्थान कमलादेवी के विजन का ही नतीजा हैं. जिसमें नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा, संगीत नाटक एकेडमी, सेंट्रल कॉटेज इंडस्ट्रीज इम्पोरियम और क्राफ्ट काउंसिल ऑफ इंडिया शामिल हैं. कमलादेवी चट्टोपाध्याय का जन्म मंगलोर (कर्नाटक) में हुआ था. इनके पिता मंगलोर के डिस्ट्रिक्ट कलेक्टर थे. कमलादेवी जब सिर्फ सात साल की ही थीं, उसी समय उनके पिता का निधन हो गया था. कमलादेवी की 14 साल की उम्र में ही शादी कर दी गई थी. लेकिन दो साल बाद ही उनके पति कृष्ण राव की मौत हो गई. चेन्नई के क्वीन मेरीज कॉलेज में पढ़ाई के दौरान उनकी मुलाकात सरोजिनी नायडू की छोटी बहन से हुई और उन्होंने उनकी मुलाकात अपने भाई हरेंद्र नाथ चट्टोपाध्याय से कराई और इस तरह उनकी दोस्ती हुई और फिर वे विवाह बंधन में बंध गए. विधवा विवाह और जाति-बिरादरी से अलग विवाह करने की वजह से वे आलोचना की शिकार भी हुईं लेकिन उन्होंने इसकी परवाह नहीं की. कमलादेवी चट्टोपाध्याय ने फिल्मों में भी हाथ आजमाया था. वे दो साइलेंट (मूक) फिल्मों में नजर आई थीं. इसमें से एक कन्नड़ फिल्म इंडस्ट्री की पहली साइलेंट फिल्म थी. इसका नाथ था 'मृच्छकटिका (1931).' लेकिन लंबे समय बाद वे एक बार फिल्मों में नजर आईं. वे 'तानसेन' फिल्म में के.एल. सहगल और खुर्शीद के साथ नजर आईं. उसके बाद कमलादेवी ने 'शंकर पार्वती (1943)' और 'धन्ना भगत (1945)' जैसी फिल्में भी की. कमलादेवी पति हरेंद्रनाथ चट्टोपाध्याय के साथ लंदन चली गई थीं. लेकिन जब 1923 में उन्हें गांधीजी के असहयोग आंदोलन के बारे में पता चला तो वे भारत आ गईं और आजादी के आंदोलन में कूद गईं. उन्होंने गांधीजी के नमक सत्याग्रह में भी हिस्सा लिया था. हालांकि हरेंद्रनाथ से उनका तलाक हो गया था. आजादी के बाद देश का विभाजन हो गया था, और शरणार्थियों को बसाने के लिए जगह की तलाश थी, उस समय कमलादेवी चट्टोपाध्याय ने गांधीजी से अनुमति लेकर टाउनशिप बसाने का जिम्मा लिया और बापू ने कहा था कि तुम्हें सरकार की कोई मदद नहीं लेनी होगी. इस तरह फरीदाबाद सामने आया जहां 50,000 शरणार्थियों को रहने की जगह मिली. इसे सहकारिता की संकल्पना पर स्थापित किया गया था. |
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