राष्ट्रपति ने संगीत नाटक अकादमी के 'अकादमी रत्न' और 'अकादमी पुरस्कार' से कलाकारों को किया सम्मानित
अजय पुंज ,
Jan 17, 2018, 20:31 pm IST
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नई दिल्लीः भारत के राष्ट्रपति राम नाथ कोविन्द ने आज राष्ट्रपति भवन में आयोजित एक भव्य समारोह में साल 2016 के लिए संगीत नाटक अकादमी की ओर से चयनित किए गए कलाकारों को 'अकादमी रत्न' और 'अकादमी पुरस्कार' से सम्मानित किया.
इस अवसर पर राष्ट्रपति ने जो कहा, वह मूल रूप में प्रस्तुत है. संगीत नाटक अकादमी के समारोह में राष्ट्रपति का सम्बोधन नई दिल्ली, 17 जनवरी, 2018 1. आज ‘अकादमी रत्न’ और ‘अकादमी पुरस्कार’ से सम्मानित किए गए सभी कलाकारों को मैं हार्दिक बधाई देता हूं। 2. इस समारोह में उपस्थित कलाकारों के रूप में, भारत की बहुरंगी संस्कृति के सर्वश्रेष्ठ प्रतिनिधि यहां एक साथ बैठे हुए हैं। 3. जैसा कि कला जगत से जुड़े सभी लोग जानते हैं, कि ‘संगीत नाटक अकादमी’ की स्थापना, भारत के संगीत, नृत्य और रंगमंच जैसे परफ़ार्मिंग-आर्ट्स की परंपराओं को जारी रखने और आगे बढ़ाने के लिये की गयी थी। 4. भारत की परंपरा में, कला को भी एक साधना माना गया है। कलाकारों को हमारे समाज में एक विशेष सम्मान दिया जाता रहा है। 5. सच्चे कलाकार, कला के जरिये, अपने-अपने ढंग से, सत्य, शिव और सुंदर की खोज करते रहते हैं। प्रत्येक कला में बहुत ऊर्जा होती है। इसीलिए, सभी कलाकार अपनी साधना में निरंतर लगे रहते हैं जो सच्चाई पर आधारित, और कल्याण-कारी तथा मंगलकारी होती है तथा अंत में सौन्दर्य-बोध को परिलक्षित करती है। 6. गायन और संगीत की ऊर्जा, एक साधारण से तथ्य में देखी जा सकती है। हर देश का अपना एक ‘राष्ट्र-गीत’ होता है। राष्ट्र-गीत द्वारा देश के गौरव से जुड़ी भावना को गायन के जरिए व्यक्त किया जाता है। इसे सुनकर हर देशवासी के अंदर देश-प्रेम की भावना जाग उठती है। अंतर्राष्ट्रीय खेल प्रतियोगिताओं में अपने-अपने देश के राष्ट्र-गीतों को सुनकर सभी खिलाड़ी अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करने के लिए प्रेरित हो जाते हैं। राष्ट्र-गीत को गाते या सुनते समय हर देशवासी निजी आकांक्षाओं से ऊपर उठ जाता है। कला की इसी शक्ति का प्रयोग, कलाकारों द्वारा, समाज और देश के हित में किया जाना चाहिए। 7. हिन्दी रंगमंच के जनक के रूप में सम्मानित, भारतेन्दु हरिश्चंद्र के ‘भारत दुर्दशा’ और ‘अंधेर नगरी’ जैसे लोकप्रिय नाटकों में, आपसी भेदभाव और फूट, तथा अंग्रेजी हुकूमत के शोषण के कारण हुई भारत की दशा को, बहुत प्रभावी रूप से प्रस्तुत किया जाता था। इससे, भारत-वासियों में सामाजिक और राजनैतिक चेतना का विकास करने में मदद मिलती थी। संवेदनशील मुद्दों पर करुणा जगाने, या जन-जागरण पैदा करने में रंगमंच का महत्वपूर्ण योगदान रहा है। इस प्रकार, एक सच्चा रंगकर्मी या कलाकार, समाज-शिल्पी और राष्ट्र-निर्माता भी होता है। 8. ‘कला, कला के लिए है’ या ‘कला, समाज के लिए है’ ऐसे विवाद तो चलते रहेंगे। लेकिन इस बात पर कोई विवाद नहीं है कि, सच्ची कला सबके मन को आकर्षित करती है। इस प्रकार कला, लोगों को संस्कृति से जोड़ती है। इसी तरह कला, लोगों को आपस में भी जोड़ती है। लोक-कला इसका सबसे अच्छा उदाहरण है। नौटंकी या कठपुतली के प्रदर्शन को देखते हुए, लोग संवेदना और भावना के एक सूत्र में बंध जाते हैं। 9. संगीत नाटक अकादमी द्वारा जन-जातीय संगीत, नृत्य, रंगमंच तथा पारंपरिक लोक-कलाओं के क्षेत्र में योगदान देने वाले कलाकारों को पुरस्कार दिये जाते हैं, यह एक सराहनीय कदम है। जमीन से जुड़ी इन लोक-कलाओं ने हमारे देश की परंपराओं जीवित रखा है। 10. इस समारोह में उपस्थित, विशिष्ट कलाकारों को, मैं एक बार फिर बधाई देता हूं। और आप सबसे, यह आशा करता हूं, कि आप हमारे देश में, कलाकारों की अगली पीढ़ी को तैयार करने में, अपना योगदान देते रहेंगे। आपके इस योगदान से, भारत के परफ़ार्मिंग-आर्ट्स की परंपरा जीवंत बनी रहेगी और उसे प्रोत्साहित करने का कार्य सदैव आगे बढ़ता रहेगा। धन्यवाद जय हिन्द! |
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