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दास्तान तालिबानी नर्क से रिहाई की

जनता जनार्दन संवाददाता , Aug 08, 2011, 11:02 am IST
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दास्तान तालिबानी नर्क से रिहाई की ढाका: अफगानिस्तान में तालिबान के कब्जे में साढ़े सात महीने तक रहने के बाद पांच बांग्लादेशी कर्मचारी रविवार को स्वदेश लौट आए। स्वयं को परिजनों के बीच पाकर अत्यंत खुशी का अनुभव कर रहे कर्मचारियों का कहना है कि उनकी रिहाई एक पुनर्जन्म से कम नहीं है।

वेबसाइट 'बीडीन्यूज24 डॉट काम' के मुताबिक रिहा हुए पांचों बांग्लादेशी नागरिक अफगानिस्तान में एक दक्षिण कोरियाई निर्माण कम्पनी में काम करने गए थे। पिछले साल 17 दिसम्बर को एक सशस्त्र समूह ने दो अन्य बांग्लादेशी नागरिकों के साथ इनका मजार-ए-शरीफ शहर से अपहरण कर लिया। अपहरण के दो दिनों बाद समूह ने दो नागरिकों को छोड़ दिया। अफगानिस्तान पुलिस ने इस घटना के लिए तालिबान को जिम्मेदार ठहराया था।

रिहाई के बाद अपनों के बीच पहुंचे नागरिकों का कहना है कि आतंकवादी उन्हें रात-दिन भूखे रखते थे। वे भाग न सकें इसलिए रात के समय उन्हें बेड़ियां पहना दी जाती थीं और जिन स्थानों पर उन्हें रखा जाता था वहां काफी अंधेरा होता था।

हजरत शाहजलाल अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे पर रविवार को पहुंचे पांचों नागरिकों में से महबूब अली ने कहा, "हमें शारीरिक रूप से प्रताड़ित नहीं किया गया लेकिन जिन स्थानों पर वे हमें बेड़ियां डालकर रखते थे वे स्थान काफी डरावने थे।"

बांग्लादेशी अधिकारियों ने हालांकि यह पुष्टि नहीं की है कि तालिबान ने इनका अपहण किया था लेकिन रिहा हुए नागरिकों का कहना है कि वे तालिबान आतंकवादी थे।

नागरिकों के हवाई अड्डे पर पहुंचने की खबर पाकर उनके परिजन सुबह ही हवाई अड्डे पहुंच गए थे। परिजनों की आंखों में आंसू और उन्हें देखने की बेताबी झलक रही थी। इस मौके पर हवाई अड्डे पर मीडिया का भी भारी जमावड़ा था।

महबूब ने बताया कि उन्हें कभी सोचा नहीं कि उनकी वापसी हो पाएगी। उन्होंने कहा, "मैं खुश हूं। मैं अपनी भावनाओं को बता नहीं सकता। बंधन के दौरान मैं चीखा करता था और हर समय अल्लाह को याद किया।"

रिहा हुए दूसरे नागरिक इमामुद्दीन ने कहा कि वह कभी भी अफगानिस्तान नहीं जाएंगे। उन्होंने कहा, "वे हमसे कहा करते थे कि हम काफिरों के लिए काम क्यों करते हैं? जिस सड़क का हम निर्माण कर रहे थे वे नहीं चाहते थे कि वह बने।"

अमीनुल इस्लाम ने बताया कि उन्हें खाने के लिए केवल रोटी दी जाती थी। उन्होंने कहा, "आतंकवादी हमें दिन भर के लिए केवल 10 लीटर पानी देते थे।"

जिस रात उनका अपहरण हुआ उसे याद करते हुए लावेलू रहमान ने बताया कि वह एक भयानक रात थी। उन्होंने बताया, "करीब 22 सशस्त्र लोगों ने पहले बाहर गोलीबारी की और उसके बाद हमें उठा ले गए। जहां तक मुझे याद है उन्होंने हमें चार स्थानों गुफाओं और सुदूर गांवों में रखा। इन स्थानों पर अंधेरा होता था। रात में हमें बेड़ियां पहना दी जाती थीं। अल्लाह ने हमें बचा लिया।"

विदेश मंत्रालय के अनुसार उज्बेकिस्तान में बांग्लादेश के राजदूत मोहम्मद इमरान ने रिहा नागरिकों को बांग्लादेश भेजने के लिए सारी औपचारिकताएं पूरी कीं क्योंकि अफगानिस्तान में बांग्लादेश का दूतावास नहीं है।

विदेश मंत्री दीपू मोनी ने नागरिकों की स्वदेश वापसी में मदद के लिए अफगानिस्तान के राष्ट्रपति हामिद करजई को धन्यवाद दिया है। मोनी ने कहा कि उनका देश शीघ्र ही अफगानिस्तान में अपना दूतावास खोलेगा।
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