कैसे बने 'बच्चों के कल्याण के लिए समग्र वातावरण' पर संगोष्ठी
विम्मी करण सूद ,
Dec 05, 2017, 11:16 am IST
Keywords: Holistic Environment Children's Welfare NGO Naritav Forum BP Koirala Nepal India Foundation Nepal Embassy नारीताव फोरम बीपी कोइराला नेपाल इंडिया फाउंडेशन नेपाल दूतावास बच्चों का कल्याण समग्र वातावरण परिचर्चा
नई दिल्लीः जस्टिस पी सदाशिवम और बीएस चौहान की पीठ ने माननीय सुप्रीम कोर्ट में कहा है कि "बच्चे मानवता के लिए सबसे बड़ा उपहार हैं और इनका यौन शोषण सबसे जघन्य अपराधों में से एक है।"
भारत की आबादी का करीब 40 प्रतिशत हिस्सा 18 वर्ष से कम उम्र के बच्चों का हैं। बच्चे समाज का भविष्य हैं और उनके समग्र विकास के लिए उपयुक्त वातावरण का निर्माण करना समाज और सरकार दोनों की जिम्मेवारी है। पर यह अनुकूल वातावरण कैसे बने और समाज का घटक होने के नाते हमारी क्या ज़िम्मेदारी है- इसके साथ-साथ और भी कई ऐसे महत्वपूर्ण मुद्दों पर चर्चा करने और समाधान तलाशने के लिए प्रसिद्ध स्वंयसेवी संस्था ‘नारीताव फोरम’ ने बीपी कोइराला नेपाल इंडिया फाउंडेशन, नेपाल दूतावास, नई दिल्ली के साथ मिलकर ‘बच्चों के कल्याण के लिए समग्र वातावरण’ नामक एक दिवसीय परिचर्चा का आयोजन किया. इस परिचर्चा के विशेषज्ञ पैनल में अनेक जाने-माने न्यायविद्, शिक्षाविद, विचारक, सामाजिक कार्यकर्ता, मीडिया और छात्र शामिल थे, जिनमें खासतौर से पूर्व न्यायाधीश जी एस सिंघवी, डा० रमेश लाल बिजलानी, आई पी एस विमला मेहरा, डा० देसाई , डा० दीपाली भारद्वाज, रेणु शाहनवाज़ हुसैन व जानी-मानी पत्रकार नलिनी सिंह के नाम उल्लेखनीय हैं। इस परिचर्चा सम्मेलन में यह जानने का प्रयास किया गया कि कैसे बच्चों का भविष्य सुरक्षित रखने के लिए उनको उनकी रचनात्मक क्षमता का एहसास कराया जाए और देश की आर्थिक वृद्धि बनाए रखने और समाज की उन्नति में उनकी भागीदारी को समायोजित किया जाए। इस अवसर पर जाने-माने पूर्व न्यायविद् जी एस सिंघवी ने कहा कि कोई भी बच्चा जन्म से अनाथ कैसे हो सकता है जवकि उसे पैदा करने वाले जनक उसे लाने के निमित्त बने हैं। इसलिए अनाथ और विकलांग जैसे शब्दों का प्रयोग किसी भी बच्चे के लिए करना उचित नहीं है। हमें समाज से जो मिलता है अगर हम वही समाज को बच्चों की शिक्षा के रूप में ही चाहे वापस करें तो भी बच्चों के विकास के निए एक नयी राह निकल सकती है।साथ ही उन्होंने नि:शुल्क और अनिवार्य शिक्षा अधिनियम 2009 को लागू करने, राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम 2013 और बेघरों व ज़रूरतमंदों के लिए मुफ्त स्वास्थ्य सेवाओं पर ज़ोर दिया। वहीं अरबिंदो आश्रम से जुड़े स्प्रिचुअल गुरू व प्रसिद्ध चिकित्सक डा० बिजलानी ने कहा कि सबसे बड़ी त्रासदी है कि बच्चों के साथ वहीं सबसे ज़्यादा अपराध हो रहै हैं जहां पर उनके संरक्षण की उम्मीद है यानी घर और स्कूल।समाज में आज भी बाल मज़दूर, भिक्षावृत्ति, लड़कियों के प्रति भेदभाव जैसी समस्याएं मुंह बाये खड़ी हैं।जिन्हें दूर करना बेहद ज़रूरी है।उन्होंने बच्चों को ‘जाॅय आफ गिविंग’ यानी देने की प्रवृति सिखाने पर भी ज़ोर दिया जिससे कि समाज में प्रेम और सहयोग पनपे। नेपाल की जानी - मानी संस्था ‘बीपी कोईराला फाउंडेशन’ से जुड़ीं श्रीजना ने भी माना कि बच्चों की रक्षा और कल्याण की ज़िम्मेदारी सरकार और समाज की है और इन दोनों के बिना परिवर्तन मुमकिन नहीं।साथ ही उन्होंने नेपाल के साथ-साथ भारत में अभी भी लड़के- लड़कियों में हो रहे भेदभाव पर चिंता जताई। इस अवसर पर आईपीएस विमला मेहरा भी मौजूद थीं। विदेशों में बच्चों के अधिकारों पर बात करते हुए उन्होंने बताया कि वहां सरकार ने बच्चों के अधिकारों का बहुत ध्यान रखा है। इतना कि अगर कोई बच्चा अकेला है तो वह पुलिस को काल करके बुला सकता है। अगर पुलिस महिलाओं और बच्चों के लिए संवेदनशील होगी तभी उनके अधिकारों की रक्षा करेगी। अगर कोई बच्चा दुर्व्यवहार अथवा यौन शोषण की शिकायत करता है तो माता-पिता को तुरंत उस व्यक्ति के खिलाफ सख्त कदम उठाने चाहिए न कि परिवार की झूठी आन-बान के चक्कर में चुप रहना चाहिए। नोएडा का निठारी कांड आज भी लोगों के ज़ेहन में ताजा है जिसमें कितने ही लापता बच्चों के अवशेष मिले थे। इस कांड में शामिल अपराधियों को लोगों के सामने लानेवाली संस्था से जुड़ी ऊषा ठाकुर ने चर्चा को आगे बढ़ाते हुए दिल्ली से जुड़े इलाकों में गायब हो रहे बच्चों की स्थिति पर चिंता जताते हुए कहा कि हर साल देश भर से 15 लाख बच्चे गायब होते हैं। जिन्हें अवैध रूप से तस्करी के ज़रिए बाहर भेजा जाता है। पत्रकार नलिनी सिंह ने बच्चों से जुड़े एक अन्य मुद्दे गोद देने पर चिंता जताई। उन्होंने अपने पत्रकारिता के दौरान हुए वास्तविक अनुभवों को साझा करते हुए कहा कि मां-बाप बिना जाने अंजान व्यक्ति को अपना बच्चा सौंप देते हैं और जब वही बच्चा बड़ा होता है तो उसके लिए उस स्थिति को स्वीकारना बड़ा मुश्किल हो जाता है। इसलिए ज़रूरत है इस क्षेत्र में कुछ विशेष करने की ताकि बच्चों का भविष्य सुरक्षित रहे और समाज में वे आगे चलकर एक ज़िम्मेदार नागरिक बन सकें। बाल अधिकार संरक्षण आयोग की पूर्व सदस्य सुश्री ममता सहाय ने बच्चों के अधिकारों की सुरक्षा के लिए कुछ नई मशीनरी और कानूनों के गठन और परिवर्तनों पर ध्यान दिलाया। हालांकि उन्होंने इस तरह की व्यवस्थाओं और कानूनों के बारे में आम जनता की गैर-जागरूकता पर अपनी चिंता व्यक्त की लेकिन उनका मानना है कि समाज एक प्रमुख कारक है जो कानूनों और गैर-उत्तरदायी प्रणालियों के कार्यान्वयन का नेतृत्व करता है। बच्चों के मनोवैज्ञानिक पक्ष पर विचार रखते हुए इबहास (IBHAS) के प्रसिद्ध चिकित्सक डॉ० देसाई ने सुझाव दिया कि हमें महिलाओं और बच्चों की सुरक्षा को सुनिश्चित करने के लिए अपराध या अभियुक्त के मूल कारण और मनोविज्ञान को समझना चाहिए। एक और महत्वपूर्ण बात उन्होंने कही कि केवल 5% मामलों की सूचना मिली है जहां बच्चों के साथ अपराध किशोर अपराधियों ने किया है वरन् ज़्यादातर मामलों में मध्यम आयु वर्ग या वयस्क व्यक्ति अपराधी निकलते हैं जिन पर बच्चा या परिवार सबसे अधिक विश्वास करता है। डा० देसाई ने पारिवारिक जीवन प्रशिक्षण,जीवन कौशल प्रशिक्षण और समय -समय पर सही परामर्श की आवश्यकता पर बल दिया। डॉ० देसाई और डॉ० बिजलानी ने विद्यालयों में यौन शिक्षा पर बल दिया ताकि बच्चों के लिए सेक्स हौव्वा न बने और उनका शोषण भी न हो सके। जानी -मानी समाज सेविका रेणु शाहनवाज़ हुसैन ने स्कूली स्तर पर ही बच्चों में संस्कार भरे जाने की आवश्यकता को समझाया। सरकारी स्कूलों की स्थिति पर विचार रखते हुए उन्होंने बताया कि कोई ऐसा सिस्टम होना चाहिए कि बच्चों को मां की बीमारी पर उसकी सब्ज़ी बेचने के लिए छुट्टी न करनी पड़े। इस परिचर्चा का आयोजन करने के पीछे ‘नारीताव’ का उद्देश्य बताते हुए संस्था की फांउडर व निदेशक कैप्टन प्रीति सिंह ने बताया कि हम समाज के विभिन्न क्षेत्र के लोगों को एक मंच पर लाकर बच्चों के समग्र विकास और कल्याण का मार्ग तलाशना चाहते हैं ताकि उनके लिए सही दिशा में काम कर सकें जिससे कि वे एक ज़िम्मेदार नागरिक बनें। इस अवसर पर एडवोकेट गीतांजलि कपूर ने भी पावर पाइंट के ज़रिए मौजूदा सिस्टम और कानूनी ढांचे में खामियों और सुधार की आवश्यकता पर ज़ोर दिया और राष्ट्रपति भवन से जुड़ीं डा० दीपाली ने बच्चों के लिए खुशनुमा वातावरण बनाने की बात कही। अगर परिचर्चा में उठाए गए मुद्दों पर समाज गंभीरता से विचार करे तो बच्चों की स्थिति में परिवर्तन आना नामुमकिन नहीं। |
क्या आप कोरोना संकट में केंद्र व राज्य सरकारों की कोशिशों से संतुष्ट हैं? |
|
हां
|
|
नहीं
|
|
बताना मुश्किल
|
|
|