'घर की औरतें और चांद': रेणु शाहनवाज़ हुसैन के काव्य संग्रह पर एक चर्चा
विम्मी करण सूद ,
Nov 17, 2017, 11:58 am IST
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नई दिल्लीः ‘जैसे’ और ‘पानी प्यार’ के बाद रेणु शाहनवाज़ हुसैन का अगला काव्य संग्रह आने को तैयार है जिसका नाम है ‘घर की औरतें और चांद’ । हाल ही में रेणु ने ‘द रायसन्स’ में इस संग्रह में से कुछ कविताएं दोस्तों के बीच साझी कीं। चांद यूं तो प्यार, महबूब का प्रतीक है पर रेणु का चांद उस मरकरी की तरह है जो कल्पना के सांचे में ढलकर वही रूप अख्तियार कर लेता है जो घर की औरतें देखना चाहती हैं……कभी वो सूनी कलाई का कंगन बन जाता है तो कभी रोटी। कभी मांग का टीका है तो कभी कटोरी का आब। रेणु की खासियत है कि इनकी कविताएं आम जिंदगी के अनुभवों के ताने-बाने से बुनी गई हैं इसलिए अपनी -सी लगती हैं। रेणु की एक और खूबी है कि उन्हें कविताएं लिखनी नहीं पड़तीं क्योंकि वे सोते की मानिंद उनकी कलम से बह निकलती हैं और आज की पावरफुल औरत की कहानी सुनाती हुई -सी चलती हैं।
रेणु ने कविताएं लिखना तब आरंभ किया था जब बचपन के अल्हड़ दिन अलविदा कहते हुए जीवन के भावी सपनों के लिए रास्ते बना रहे होते हैं। इस दौरान लिखा गया इनका पहला काव्य संग्रह 'पानी प्यार', जिसमें प्यार के वे सभी रंग बिखरे हैं जो एक अल्हड़ लड़की के सपनों में होते हैं। पर उम्र के दौर और अनुभवों की ज़मीन ने कुछ नयी पौध तैयार की और फिर आया अगला काव्य संग्रह 'जैसे' जिसमें रिश्तों और अपनेपन की कविताओं ने जगह बनाई। 'रफूगर', 'अम्मीजान', 'निर्वाण' ऐसी ही कुछ कविताएं हैं। 'रफूगर' में एक मां है जो घर के रिश्तों को सीती है और बांधकर रखती है बिलकुल वैसे ही जैसे कपड़े की खामी को कारीगर बारीकी से दुरस्त कर देता है और देखनेवाले को पता तक नहीं चलता। शायद संयुक्त परिवार की कड़ियां इसमें जुड़ी हैं जो रेणु की सोच को प्रभावित करती हैं। आखिर यूं ही नहीं कहा गया कि कवि जन हृदय का प्रतिनिधि होता है, कुछ अपनी कहता है और कुछ जगबीती। रेणु के आगामी काव्य संग्रह 'घर की औरतें और चांद’ पर चर्चा करते हुए किसी ने पूछा कि ईद का चांद खूबसूरत है या करवाचौथ का तो उन्होंने बेलाग वास्तविकता बोली कि दोनों ही स्थिति में ‘चांद’ से एक स्त्री का व्रत खत्म होता है और घर का चौका संभालकर सबकी थालियां लगाने की ज़िम्मेदारी शुरू होती है। जो वाकई एक सच्चाई है।इन्होंने अपनी एक अन्य कविता 'यशोधरा की पाती' से सबका मन मोह लिया जिसमें शुरू में तो यशोधरा गौतम को उलाहना दे रही है अपनी ज़िम्मेदारियों से भागने का। पर फिर पत्नी भाव जाग्रत हो जाता है और 'बुद्धम शरणम गच्छामि, संघम शरणम गच्छामि' का मंत्र उच्चारित कर अनुगमन के लिए तैयार हैं। इस अवसर पर बेहतरीन सिंगर-कंपोज़र सुमन देवगन ने रेणु की कुछ कविताओं को सुरों में ढालकर समां ही बांध दिया। सोने पर सुहागा जानी-मानी साहित्यकार सुमन केशरी जी भी मौजूद थीं जिन्होंने रेणु की कविसाओं को प्यार के मनकों में फेरता सूफी भाव कहकर सुंदर शबदों से प्रोत्साहन दिया।कार्यक्रम का संचालन अनुभवी पत्रकार विम्मी करण सूद ने बखूबी किया। ‘कफस तीलियों से लेकर शाखें आसमां तक है….मेरी दुनिया यहां तक है मेरी दुनिया वहां तक है’, फिराक का ये शेर रेणु पर सौ फीसदी सही बैठता है क्योंकि जाने-माने राजनेता शाहनवाज़ हुसैन की अर्धांगिनी होने के बावजूद पानी में कमल के पत्ते की मानिंद राजनीति से परे कवयित्री हृदय की स्वामिनी, सामाजिक सरोकारों से जुड़ी और पेशे से शिक्षक - आत्मस्वावलंबी व स्वतंत्र व्यक्तित्व की पहचान हैं। शायद इनके ज़रिए चांद भी महबूब से हटकर अपनी तुलना घर की औरतों से करवाकर खुश हो रहा होगा। |
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