बदले हालात में शिक्षा के प्रति उत्साहित हुईं मुस्लिम लड़कियां
अबु जफर ,
Nov 12, 2017, 17:49 pm IST
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कटिहार: बिहार के कटिहार जिले की गृहिणी और दो बेटों की मां गजाला तस्नीम के लिए 31 अक्टूबर का दिन खास था क्योंकि इस दिन उसका सपना साकार हुआ था। तीन साल की कड़ी मेहनत के बाद वह बिहार न्यायिक सेवा प्रतियोगिता परीक्षा में 65वें स्थान के साथ उसका चयनित हुई थीं। जज की कुर्सी पर बैठने का उसका ख्वाब पूरा था।
गजाला अपनी इस कामयाबी के लिए खुद को अल्लाह का शुक्रगुजार मानती हैं। वह कहती हैं, “पति और परिवार के अन्य सदस्यों की ओर से मिले सहयोग और प्रेरणा की बदौलत आखिरकार वह मनचाही कामयाबी हासिल कर सकीं।”ं आज भी यह धारण बनी हुई है कि मुस्लिम महिलाएं विरले ही उच्च शिक्षा या प्रतियोगिता परीक्षा के प्रति मुखातिब होती है। शादी और बच्चे होने के बाद महिलाओं के लिए सामाजिक समस्याएं और भी बढ़ जाती हैं। लेकिन तस्नीम जैसी महिलाएं इस रूढ़िवादी धारणा को तोड़ रही हैं। इंडोनेशिया के बाद दुनिया में सबसे ज्यादा मुसलमान भारत में ही बसते हैं। देश की कुल आबादी एक अरब 34 करोड़ में 14.2 फीसदी मुसलमान हैं और 2011 की जनगणना के मुताबिक मुस्लिम महिलाओं की आधी आबादी निरक्षर है। लेकिन तस्नीम जैसी महिलाओं का मानना है कि स्थिति तेजी से बदल रही है और शिक्षा के प्रति समुदाय की बालिकाएं अब ज्यादा उत्साहित दिखने लगी हैं। तस्नीम कहती हैं, “कानून व न्याय के क्षेत्र में मुस्लिम महिलाओं व लड़कियों की संख्या अभी भी बहुत कम है। लेकिन हालात बदल रहे हैं और अब भारी तादाद में मुस्लिम समुदाय की लड़कियां स्कूल जाने लगी हैं।” अलीगढ़ मुस्लिक विश्वविद्यालय के शिक्षा विभाग की एसोसिएट प्रोफेसर जेबुन निसा खान का कहना है कि स्थिति में बदलाव आ चुका है। उन्होंने कहा, “चलन नहीं बदल रहा, बल्कि यह बदल चुका है। पिछले कुछ वर्षो में स्कूलों में मुस्लिम समुदाय की लड़कियों की संख्या काफी बढ़ी है। उत्तर प्रदेश में मुस्लिम महिलाओं की साक्षरता दर में वृद्धि हो रही है, लेकिन बिहार और पश्चिम बंगाल जैसे प्रदेशों में और सुधार की जरूरत है। मुंबई स्थित महाराष्ट्र कॉलेज ऑफ आर्ट्स, साइंस एंड कॉमर्स में फिजिक्स यानी भौतिकी पढ़ाने वाली मूनिशा बुशरा आबिदी कहती हैं कि लड़कियों को पढ़ाने के प्रति मुस्लिम समुदाय का रुझान बढ़ा है, इसका एक कारण है कि समुदाय की लड़कियों ने अपनी कामयाबी से समुदाय के लोगों को प्रेरित किया है और अब माता-पिता अपनी बेटियों को उच्च शिक्षा दिलवाने के प्रति उत्साहित दिखने लगे हैं। आबिदी कहती हैं, “1990 के दशक की शुरुआत में जब वह मुंबई विश्वविद्यालय से एमएससी कर रही थीं, तब विश्वविद्यालय में वह अकेली लड़की थी जो हिजाब पहनती थी, लेकिन आज कई संस्थानों में हिजाब पहने बहुत सारी लड़कियां दिखती हैं।” उन्होंने बताया कि जब वह पढ़ती थी तो उसी कॉलेज में लड़कों के चार डिवीजन थे, जबकि लड़कियों का एक डिवीजन। आज स्थिति ठीक विपरीत है। लड़कियों के चार डिवीजन हैं जबकि लड़कों का एक। उधर, ताइवान स्थित नेशनल चुंग सिंग यूनिवर्सिटी से अंतर्राष्ट्रीय संबंध में पीएचडी कर रहीं सादिया रहमान का मानना है कि गरीबी और वित्तीय संकट जैसी समस्याएं मुस्लिम समुदाय की लड़कियों की शिक्षा की राह में बाधक है, जिसके चलते वे आधुनिक शिक्षा महरूम रह जाती हैं। इस्लामिक शिक्षा प्रणाली में छात्र व छात्राओं के लिए अलग-अलग कक्षाएं लगनी चाहिए और कई लोगों का मानना है कि मुस्लिम महिलाओं की निम्न साक्षरता दर की एक वजह यह भी है। उत्तर प्रदेश के आजमगढ़ जिले में एक कॉलेज के संचालक नियाज अहमद दाउदी कहते हैं कि उन्होंने लड़कियों के लिए गांव में कॉलेज इसलिए खोला है क्योंकि लड़के दूर जा सकते हैं वे दूर नहीं जा सकती हैं। उनका मानना है कि आसपास में स्कूलों व कॉलेजों का नहीं होना भी एक बड़ा मसला है जिसके कारण लड़कियां पढ़ नहीं पाती हैं। उत्तर प्रदेश में सबसे ज्यादा मुस्लिम महिला साक्षरता दर आजमगढ़ जिले में 73.01 फीसदी है, लेकिन छोटी जगह होने के कारण उच्च शिक्षा प्राप्त करना यहां की लड़कियों के लिए कठिन हो जाता है। # यह फीचर आईएएनएस और फ्रैंक इस्लाम फाउंडेशन के सहयोग से विविध, प्रगतिशील व समावेशी भारत को प्रदर्शित करने के लिए शुरू की गई विशेष श्रृंखला का हिस्सा है. |
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