सावन पूर्णिमा 2017 एक दशक योग यात्रा संदेश: प्राण द्वारा तानिये तन, साधिये मन, पाइये अखंड आनन्द
मनोज पाठक ,
Aug 07, 2017, 19:12 pm IST
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आज सात अगस्त २०१७ है।
आज रक्षा बंधन यानि सावन पूर्णिमा है। वर्ष २००७ में आज यानि पूर्णिमा तिथि से ही मैंने योग के साथ अपने प्रयोग की शुरुआत की थी। योग जो अब मेरे जीवन का अविभाज्य हिस्सा है। सावन शुक्ल द्वादशी से मुस्कान मेल सेवा बंद है। मोबाइल इस्तेमाल भी लगभग बंद है। स्मार्ट फोन का उपयोग पूर्णतः बंद है। मौन व्रत का समापन कल हो गया । मुस्कान मेल कब से पुनः शुरु करूंगा खुद नहीं जानता पर शुरु करूंगा अवश्य ये तय है। दरअसल जीवन में कई घटनायें क्यों होती हैं हम नहीं जानते । बस ये घटित होती हैं। इनका परिणाम हमसे संबंधित सभी पक्षों को भुगतना पड़ता है। यह जीवन क्या है मस्ती है निर्झर ही इसका पानी है सुख दुख के दो राहों से बह रहा राह मनमानी है। पुरानी बचपन की पढ़ी कविता है। पर सुख दुख की अनुभूति समाप्त है अब। या तो असंग हो चुका हूं या निरमम हो चुका हूं जिसमें ना तो सुख की सिहरन है ना दुख की पीड़ा है शेष है तो बस आनन्द जो हर अवस्था में तन और मन को बहाये लिये चला जा रहा है। आनन्द की उपलब्धि सहज नहीं है। तन को स्वस्थ रखने के लिये मनपसंद भोजन और मन को प्रसन्न रखने के लिये अपने पास उपलब्ध क्षण में मनोनुकूल काम हो तो आनन्द ही आनन्द । पर समस्या मन को लेकर होती है। मन जो समझ गये उनके लिये समस्या नहीं है। क्योंकि मनोनुकूल मिलना तभी होता है जो भी मिला पल में वही मन को भा जाये। चेतना को इस धरातल पर लाना ही योग है। दस वर्षों की योगयात्रा ने ये तो दिया है मुझे कि आज तन को समझ सकूं मन को समझ सकूं और तन मन को साथ लेकर आनन्द को हर पल प्राप्त रह सकूं। दो हजार सात में मई जून में एक प्रतिष्ठित टीवी चैनल से साल भर के लिये व्रत और त्यौहारों पर कार्यक्रम बनाने का प्रस्ताव मिला था । व्रत की सत्यता समझने के लिये आज ही की तिथि से अगस्त महीने में व्रत की शुरुआत हुई थी। यदि ठीक से याद करूं तो अंग्रेजी कैलेंडर से तारीख थी २८ अगस्त प्रायः क्योंकि कैलेंडर में इसी तिथि को रक्षा बंधन दिखाया जा रहा है। यदि अपने संकल्प को याद करूं तो पूर्णिमा तिथि और अगस्त महीना याद है। जब व्रत और योग दोनों को एक संकल्प के तहत साधने के लिये मैं चला था। जो परिणाम दैनिक योगयात्रा और दो या तीन पूर्णिमा को व्रत रख कर प्राप्त हुए थे यानि लगभग तीन महीनों तक नियमित रोज योग अभ्यास के बाद उस अनुभव के आधार पर धारावाहिक कार्यक्रम के अनेक एपिसोड बने और प्रसारित हुए । मेरी योग यात्रा जो शुरु हुई ठीक दस वर्ष पहले वह आज तक चल रही है। आनन्द चाहिये तन का मन का तो तन को तानिये मन को साधिये प्राणों के योग द्वारा बिना प्राणों को जाने प्राणों के आवागमन के साथ तन का रमण किये मन को नहीं जाना जा सकता और ना ही तन की सीमाओं का अतिक्रमण किया जा सकता । योग का संकल्प लीजिये व्रत कीजिये हम आपके साथ हैं। आइये हम मिल कर चलें आनन्द लें जीवन का इस पल का अगले पल का पल पल का इति आनन्द गाथा शुभम |
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