Thursday, 21 November 2024  |   जनता जनार्दन को बुकमार्क बनाएं
आपका स्वागत [लॉग इन ] / [पंजीकरण]   
 

सैनेटरी नैपकिन पर जीएसटी, आखिर इरादा क्या है?

जनता जनार्दन डेस्क , Jul 14, 2017, 19:32 pm IST
Keywords: GST   GST on sanitary pads   Indian women   GST on women goods   Sanitary napkin shop   Sanitary napkin   जीएसटी   सैनेटरी नैपकिन   सैनेटरी नैपकिन पर जीएसटी   जीएसटी दर   
फ़ॉन्ट साइज :
सैनेटरी नैपकिन पर जीएसटी, आखिर इरादा क्या है? नई दिल्लीः केंद्र सरकार ने वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) के व्यापारियों द्वारा विरोध के बावजूद इसे ऐतिहासिक बताकर लागू कर दिया, लेकिन विरोध अभी थमा नहीं है। उधर, महिलाएं भी जीएसटी को लेकर एक अलग तरह की लड़ाई लड़ रही हैं। उनकी लड़ाई मगर अधिकार और स्वच्छता से जुड़ी है। देश का दुर्भाग्य है कि बिंदी, सिंदूर, सूरमा और यहां तक कि कंडोम को जीएसटी के दायरे से बाहर रखा गया है, लेकिन सैनेटरी नैपकिन पर 12 फीसदी कर लगाया गया है। महिला संगठनों से लेकर विभिन्न दलों ने सरकार की मंशा पर प्रश्नचिह्न लगा दिया है कि क्या बिंदी और सिंदूर, सैनेटरी नैपकिन से ज्यादा जरूरी हैं? या फिर सरकार के दृष्टिकोण में महिला स्वच्छता की तुलना में श्रृंगार का अधिक महत्व है?

मगर सरकार का कहना है कि जीएसटी की दरें स्थायी नहीं हैं, इसमें संशोधन होता रहेगा और भविष्य में सैनेटरी नैपकिन को जीएसटी के दायरे से बाहर भी रखा जा सकता है, लेकिन अभी तो टैक्स देना ही होगा। सरकार पिछले तीन वर्षो से बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ और स्वस्थ भारत जैसे अभियानों का जोर-शोर से डंका बजा रही है, लेकिन महिलाओं के मुद्दे पर वह इतनी असंवेदनशील कैसे हो गई? यह जानकर अचरज होगा कि देश में 35.5 करोड़ महिलाओं में से सिर्फ 12 फीसदी आबादी ही सैनेटरी पैड का इस्तेमाल करती हैं। वजह है इनकी ऊंची कीमतें। इस मुद्दे को जोर-शोर से उठाने वाली संस्था शी सेज ने हैशटैग लहू का लगान नाम से सोशल मीडिया पर एक मुहिम शुरू की थी।

संस्था से जुड़ी सदस्या नेहा बताती हैं, हमने अप्रैल में इस मुहिम की शुरुआत की थी, मकसद था कि हम अपने ही लहू का लगान क्यों दें? माहवारी एक प्राकृतिक प्रक्रिया है, जिससे हर महिला को जूझना पड़ता है। सैनेटरी नैपकिन की कीमत ज्यादा होने से यह एक बड़ी आबादी की पहुंच से बाहर भी है। सरकार को इसे कर मुक्त करना चाहिए, और ग्रामीण स्तरों पर तो इसका निशुल्क वितरण करना चाहिए।

दिल्ली के झंडेवालान स्थित एनजीओ दास फाउंडेशन की संस्थापक एवं महिला कार्यकर्ता योगिता ने बताया, यह सरकार का बेवकूफी भरा कदम है। इस फैसले से महिलाओं के प्रति सरकार का गैरजिम्मेदाराना रवैया झलकता है। इन्होंने महिलाओं को सिर्फ साजो-श्रृंगार तक ही सीमित रखा है और यह फैसला उसका प्रमाण है। उन्होंने कहा, सैनेटरी पैड का इस्तेमाल नहीं करने से महिलाओं में तरह-तरह की बीमारियां घर कर लेती हैं। सरकार को चाहिए कि गांवों से लेकर दूर-दराज के इलाकों तक सैनेटरी पैड को निशुल्क बांटा जाए, क्योंकि गरीब तबके की महिलाएं इन्हें नहीं खरीद सकतीं। लेकिन इसके विपरीत सरकार उस पर टैक्स लगा रही है। इससे बड़ा असंवेदनशीलता का उदाहरण और कहां देखने को मिलेगा!

कांग्रेस प्रवक्ता एवं महिलाओं के मुद्दों को जोर-शोर से उठाने वाली प्रियंका चतुर्वेदी ने कहा, सरकार एक तरफ तो महिला सशक्तीकरण की बात करती है, तो दूसरी तरफ इस तरह के कदम उठाकर महिलाओं को लेकर अपनी असंवेदनशीलता का परिचय भी देती है। यह सीधे तौर पर महिलाओं के स्वास्थ्य से जुड़ा मुद्दा है। सरकार को बिंदी, सिंदूर महंगा होने की चिंता है, मगर उन्हें महिलाओं के स्वास्थ्य से जुड़े मुद्दों से कोई सरोकार नहीं है। 85 फीसदी से अधिक महिलाओं की सैनेटरी पैड तक पहुंच नहीं है। इसे लेकर सरकार ने अब तक क्या किया? इस मुद्दे पर महिलाओं के रोष और सरकार की नीयत पर उठे सवालों को खारिज करते हुए दिल्ली महिला आयोग की पूर्व अध्यक्ष एवं भाजपा नेता बरखा शुल्का सिंह कहती हैं, जीएसटी की दरें हमेशा के लिए निर्धारित नहीं की गई हैं।
वोट दें

क्या आप कोरोना संकट में केंद्र व राज्य सरकारों की कोशिशों से संतुष्ट हैं?

हां
नहीं
बताना मुश्किल