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विश्व पर्यावरण दिवस पर विशेष: स्वास्थ्य, स्वच्छता के लिए हानिकारक हैं डिस्पोजेबल सैनिटरी नैपकिन
जनता जनार्दन डेस्क ,
Jun 05, 2017, 13:36 pm IST
Keywords: World Environment Day Cloth pads Disposable sanitary napkins Non-compostable sanitary pads Sewerage systems Landfills Water bodies Environmental risk Health risks डिस्पोजेबल सैनिटरी नैपकिन मासिक धर्म सैनिटरी नैपकिन मासिक धर्म से जुड़ी भ्रांतिया अंधविश्वास सैनिटरी पैड
![]() सुरक्षित तरीके निपटारा होना है बड़ी चुनौती भारत में महिलाओं की मासिक धर्म से जुड़ी भ्रांतिया व अंधविश्वास के साथ इस्तेमाल होने वाले सैनिटरी पैड का सुरक्षित तरीके निपटारा होना बड़ी चुनौती बन चुकी है. भारत सरकार जहां सभी महिलाओं व लड़कियों को, खासकर ग्रामीण क्षेत्रों में, सैनिटरी नैपकिन उपलब्ध कराना सुनिश्चित कर रही है, वहीं आईएएनएस से बातचीत में विशेषज्ञों ने सैनिटरी पैड के निस्तारण के मुद्दे पर खास ध्यान दिया, जो हर साल करीब 113,000 टन निकलता है. शायद इस समस्या को महसूस करने के बाद नरेंद्र मोदी की सरकार पिछले साल नए ठोस अपशिष्ट प्रबंधन (एसडब्लयूएम) नियम को ले आई, लेकिन यह पर्याप्त नहीं है. अमेरिका के उत्तरी कैरोलिना में स्थित गैर-लाभकारी संगठन आरटीआई इंटरनेशनल के वरिष्ठ निदेशक माइल्स एलेज ने कहा, "कुछ भारतीय राज्य और शहरों ने ठोस कचरा निस्तारण या प्रबंधन पर ध्यान दिया है और विद्यालयों तथा संस्थानों में इस तरह के कचरा निस्तारण के लिए भट्ठियां लगाई हैं, लेकिन ऐसा बड़े पैमाने पर नहीं है." भारत सैनिटरी कचरे के निपटारे में है बहुत पीछे एलेज ने बताया, 'मासिक धर्म से संबंधित कचरे के निस्तारण के मुद्दे पर ज्यादा ध्यान देने की जरूरत है. मासिक धर्म स्वच्छता प्रबंधन (एमएचएम) एक उपेक्षित मुद्दा है और डिस्पोजल इसके संदर्भ में शायद सबसे उपेक्षित विषय है.'केरल स्थित सस्टेनेबल मेन्स्ट्रएशन केरल कलेक्टिव एनजीओ की सक्रिय कार्यकर्ता श्रद्धा श्रीजया बायो-डिग्रेडेबल और टॉक्सिन फ्री सैनिटरी उत्पाद का प्रचार करती हैं. उनका (श्रीजया) मानना है कि भारत सैनिटरी कचरे के निपटारे में बहुत पीछे है और उन्होंने नए नियमों को बहुत कमजोर बताया. जल क्षेत्रों में साफ-सफाई और स्वच्छता संबंधी काम करने वाली अंतर्राष्ट्रीय चैरिटी वाटरऐड इंडिया में नीति -प्रबंधक (स्वास्थ्य व पोषण में सफाई, विद्यालयों में सफाई) अरुंधती मुरलीधरन का कहना है कि भारत में बहुत बड़ी मात्रा में मासिक धर्म अपशिष्ट निकलता है और भारत सरकार इसके प्रबंधन के बारे में सोच रही है. उन्होंने कहा, 'अगर हम इस मुद्दे से निपटना नहीं शुरू करते हैं तो हमारे पास बहुत सारा नॉन-बायोजीग्रेडेबल (नष्ट न होने योग्य) कचरा जमा हो जाएगा, जिसे नष्ट करने में सैकड़ों साल लग जाएंगे.' सर्वे के अनुसार सीवर में डाले जाते हैं नॉन-कमपोस्टेबल पैड एक सर्वेक्षण के मुताबिक, भारत में करीब 33.6 करोड़ लड़कियां और महिलाएं मासिक धर्म से गुजरती हैं, जिसका मतलब है कि उनमें से करीब 12.1 करोड़ डिस्पोजेबल सैनिटरी नैपकिन का इस्तेमाल करती हैं. पाथ कंपनी द्वारा कराए गए सर्वेक्षण के अनुसार, एक अरब से ज्यादा नॉन-कमपोस्टेबल पैड कचरा वाले क्षेत्रों और सीवर में डाले जाते हैं. विशेषज्ञों का कहना है कि बड़े शहरों की अधिकांश महिलाएं कॉर्मशियल डिस्पोजेबल सैनिटरी नैपकिन का इस्तेमाल करती हैं, उन्हें यहा नहीं मालूम होता कि ये उत्पाद कुछ रासायनिक पदार्थो (डायोक्सिन, फ्यूरन, पेस्टिसाइड और अन्य विघटनकारी) की मौजूदगी के कारण स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होते हैं. इसके निस्तारण की जानकारी के अभाव में अधिकांश महिलाए इसे कचरे के डिब्बे में फेंक देती हैं, जो अन्य प्रकार के सूखे व गीले कचरे के साथ मिल जाता है. कचरा उठाने वाले के स्वास्थ्य के लिए हो सकते हानिकारक इसे रिसाइकिल नहीं किया जा सकता और खुले में सैनिटरी नैपकिन कचरा उठाने वाले के स्वास्थ्य के लिए हानिकारक साबित हो सकते हैं. भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में अधिकांश महिलाएं व लड़कियां कपड़े का इस्तेमाल करती हैं, जो उचित प्रकार से धूप में नहीं सूखा होने के कारण उनके लिए कई प्रकार की स्वास्थ्य संबंधी समस्या पैदा कर सकता है. पर्यावरण के समर्थक दोबारा इस्तेमाल में लाए जा सकने वाले कपड़े के पैड, बायोडिग्रेडेबल पैड और कप सहित पर्यावरण के अनुकूल सैनिटरी पैड के इस्तेमाल पर जोर दे रहे हैं. शी कप कंपनी के सह-संस्थापक मनीष मलानी के मुताबिक, उन्हें गरदन के कैंसर से ग्रस्त मरीजों के लिए नैदानिक किट की तलाश के दौरान मासिक धर्म संबंधी कप के बारे में पता चला. उन्होंने कहा, 'अच्छा मासिक धर्म स्वच्छता पद्धति शरीर को स्वस्थ रखता है, जिससे संक्रमण या बीमारी होने की कम संभावना होती है.'एलेज ने बताया कि वह कचरा के निस्तारण संबंधी प्रणाली को डिजाइन करने पर काम कर रहे हैं. |
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