हिंदी में रामकथा लेखक, अंग्रेज़ी में सुपरस्टारः समकालीन हिंदी लेखन व पौराणिक आख्यान, बहसः भाग-2
जनता जनार्दन संवाददाता ,
May 29, 2017, 17:06 pm IST
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नई दिल्लीः पिछली कड़ी में हमने हिंदी के युवा और बहुचर्चित आलोचक अनंत विजय के दैनिक जागरण में छपे लेख 'हिंदी में मिथकों से परहेज क्यों?' का संदर्भ देते हुए व्हाट्सएप के लब्धप्रतिष्ठित 'साहित्य' समूह में चली चर्चा का जिक्र किया था. इस समूह में देश के सर्वाधिक प्रतिष्ठित विद्वतजनों की अच्छीखासी तादाद है. यह वे लोग हैं, जो देश में ज्ञान और विचारधारा की दिशा तय करने में अपनी महत्तर भूमिका निभाते हैं. इस समूह में साहित्यकार, संपादक, पत्रकार, लेखक, प्राध्यापक, निर्देशक, समीक्षक सभी शामिल हैं.
इसीलिए इन सभी के विचार क्रमवार देने से पहले हमारी टिप्पणी थीः यों तो व्हाट्सएप पर 'साहित्य' नामक समूह का सृजन हिंदी के नामचीन युवा आलोचक अनंत विजय ने साहित्य से जुड़े विषयों पर ही चर्चा के लिए किया था, पर अपने दिग्गज सदस्यों के चलते इस समूह ने पिछले दिनों एक ऐसे ज्वलंत विषय को छेड़ दिया, जिस पर काफी पहले बात हो जानी चाहिए थी. हुआ यह कि अनंत विजय के दैनिक जागरण के राष्ट्रीय संस्करण में प्रकाशित लेख 'हिंदी में मिथकों से परहेज क्यों?' की छायाप्रति लेखिका रश्मि ने समूह में चिपका दी. फिर क्या, बधाइयों से शुरु हुआ सिलसिला भारत, भारतीयता, संस्कृति, धर्म, अध्यात्म, परंपरा, पुराण और पौराणिक पात्रों का भारतीय समकालीन लेखन-साहित्य में स्थान से होता हुआ इस कदर सारगर्भित हो गया कि...हम उसके चुनिंदा अंशों को यहां दिए बिना रह नहीं सके. पहली कड़ी में हमने अनंत विजय जी का वह लेख, उनके ब्लॉग हाहाकार से लिया था. आज दूसरी कड़ी में, उस लेख पर दिग्गजों के विचार शब्दशः विनोद अग्निहोत्री: वैसे हिंदी में मिथक लेखन पहले भी हुआ है। आचार्य चतुरसेन शास्त्री का वयं रक्षामः के एल मुंशी की महाभारत के पात्रों और मनु शर्मा की कृष्ण कथा की रचनाएं उल्लेखनीय हैं। नरेंद्र कोहली का जिक्र अनंत कर ही चुके हैं। अनंत विजय: मिथक लेखन पहले भी हुआ है, इससे किसे इंकार। चतुरसेन शास्त्री ने कई अन्य रचनाएँ दी हैं साहित्य को। इसके अलावा दिनकर निराला आदि ने भी लिखा है। पर जिस तरह से कोहली जी को रामकथा लेखक कहकर ख़ारिज किया गया, मेरी रुचि उस सवाल से मुठभेड़ की है. ममता कालिया: देखा जाय तो यह सब एक प्रकार का पुनरलेखन है अनंत विजय: ममता जी क्या रश्मि रथी या राम की शक्तिपूजा के बारे में आपकी यही राय है? आशुतोष: लेकिन निराला और नरेंद्र कोहली की तुलना शायद ठीक नहीं। शक्ति पूजा इसलिए बड़ी कृति नहीं कि वह मिथक को केंद्र में रखती है। उसकी महाप्राण ध्वनियाँ, उसका ओज, आवेग, राम का एक निरीह प्रेमी बतौर चित्रण, जो अपनी 'प्रिया' के लिए संघर्ष कर रहा है, इत्यादि गुण इस कविता को ऊँचा दर्जा दिलाते हैं। मोहन राकेश ने भी कालिदास के मिथक का बेहतरीन इस्तेमाल आषाढ़ का एक दिन में किया था। एक रचनाकार का यह भी दायित्व होता है कि वह अपने पूर्वजों को नई रौशनी में परखे। Coetzee तो दोस्तोयेव्स्की पर पूरा उपन्यास लिखते हैं - मास्टर ऑफ़ पीटर्सबर्ग। कोहली लेकिन राम कथा में हस्तक्षेप नहीं करते दिखाई देते। उस कथा के तंतुओं को अपने कालानुसार झिंझोड़ते नहीं नजर आते। अनंत विजय: दिक़्क़त यही है आशुतोष जी कि हमें विदेशी लेखकों पर ज़्यादा भरोसा है। कोहली लगातार राम कथा में हस्तक्षेप करते हैं, महाभारत को भी। चलिए निराला की वर दे वीणा वादिनी या फिर कल्याण के भक्ति अंक में उनके लेख क्या पुनर्लेखन हैं। आग्रह ये है कि कोहली जी को फिर पढ़ा जाए, पूर्वग्रह से मुक्त होकर. उनमें जो निरंतरता है वो अप्रतिम है। महाभारत के चरित्र पढ़ते वक़्त गड्डमड्ड हो जाते हैं लिखना तो दूर की बात है । इसके अलावा मेरी मूल आपत्ति कोहली जी को रामकथा लेखक के कोष्ठक में डालने को लेकर है जिससे अमिष बाहर है. आशुतोष: मैंने खुद ही कहा कि राकेश ने कालिदास के मिथक को अद्भुत रूप दिया है। मेरा आग्रह सिर्फ इतना की शक्ति पूजा कोहली जी के लेखन से बड़े पाये की रचना है। मैं एकदम सहमत हूँ कि उनको ही नहीं, हरेक उस लेखक को फिर से पढ़ा जाना चाहिए जिसके बारे में यह शुबहा हो कि वह उपेक्षित रहा है। अनंत विजय: शक्ति पूजा भी मेरी समझ से ओवर रेटेड है, मुक्तिबोध के अंधेरे में की तरह. निराला के कल्याण पत्रिका में लिखे लेखों को क्यों कर पाठकों की नज़र से ओझल कर उनका आंकलन किया गया? क्यों नहीं उनके लेख उनकी रचनावली में हैं? क्यों नहीं निराला के प्रेमियों ने उनके इन लेखों को ढूँढने की कोशिश की। मुझे तो ये एक डिज़ाइन का हिस्सा लगता है. चित्रा देसाई: उनमें जो निरंतरता है वो अप्रतिम है। महाभारत के चरित्र पढ़ते वक़्त गड्डमड्ड हो जाते हैं लिखना तो दूर की बात है । इसके अलावा मेरी मूल आपत्ति कोहली जी को रामकथा लेखक के कोष्ठक में डालने को लेकर है जिससे अमिष बाहर है. मुख्य मुद्दा यही है। डॉ विनय कुमार: मिथक पर लिखना कठिन होता है क्योंकि अनुस्यूत संदर्भों और रूढ़ हो चुकी अर्थवत्ता का अतिक्रमण और नए अर्थबोध का संधान आसान नहीं। इसके लिए नवोन्मेषी प्रतिभा और लीक छोड़कर चलने की रचनात्मक ज़िद चाहिए। प्रचलित विमर्शों के के कैबिन में बैठकर यह चमत्कार सम्भव नहीं। ममता कालिया: मिथक पात्र की संभावनाओं का अतिक्रमण वहीं हो सकता है जहां रचनाकार के अंदर भी वे क्षमताएं हों।मेरा सोचना था कि एक बने बनाये फ्रेम पर कसीदाकारी करना कहीं आसान होता है बजाय एक समकालीनता में खड़े हुए सामान्य पात्र को जीवन देने के। अनंत विजय: समकालीनता का फ़्रेम भी बहुत पुराना हो चुका है जिसकी फार्मूलाबद्ध रचनाएँ सामने आ रही हैं. ममता कालिया: फिर भी वह तत्कालीन फ्रेम से अधिक प्राणवान है और रहेगा। विनोद अग्निहोत्री: कोहली जी ने खुद अपनी श्रृंखला को रामकथा का नाम दिया। दूसरे उन्होंने संघ से अपने वैचारिक जुड़ाव को कभी छिपाया नहीं। कुछ संकीर्ण वामपंथी विद्वानों को छोड़कर सम्पूर्ण समाज जिसमे अनेक गैर संघी गैर हिंदुत्ववादी शामिल हैं ने नरेंद्र कोहली की रामायण और महाभारत के मिथकीय पात्रों पर केंद्रित रचनाओं को हाथों हाथ लिया है। ये अलग बात है कि खुद संघ विचारधारा की मौजूदा केंद्र सरकार ने अभी तक कोहली जी किसी सम्मान के लायक नहीं समझा। आगे पता नहीं। अनंत विजय: विनोद सर आप इस बहस को राजनीति की ओर ले जाना चाहते हैं पर मेरी रुचि शुद्ध रचानात्मकता में है। संघ से अपने वैचारिक जुड़ाव को कोहली जी ने कहाँ प्रकट किया? ज़रा इसपर प्रकाश डालें। अनंत विजय: आपकी राय का सम्मान है पर सहमति नहीं अनंत विजय: ज़रूरी हस्तक्षेप है सर अनंत विजय: मुद्दे पर बात हो - हिंदी में रामकथा लेखक और अंग्रेज़ी में सुपरस्टार । विनोद अग्निहोत्री: अनंत जी कोहली जी को अपने लेखन में संघ से वैचारिक जुड़ाव को प्रकट करने की ज़रूरत नहीं थी। वो बाकायदा दिल्ली विश्वविद्यालय की शिक्षक राजनीति में सूर्यकांत बाली देवेंद्र स्वरूप आदि मित्रों के साथ भाजपा से जुड़े शिक्षक संगठन से जुड़े थे। वो लगातार संघ संगठनों के कार्यक्रमो में शामिल होते रहे । लेकिन इससे उनकी लेखन क्षमता हिंदी में उनका योगदान कमतर नही हो जाता। जहां तक राजनीति का प्रश्न है तो मित्र किस कालखंड में साहित्य राजनीति और राजनीतिक विचार से परे या निरपेक्ष रहा है मित्र? अनंत विजय: विनोद सर सही कह रहे हैं आप। पर मौजूदा सरकार पर कोहली जी को सम्मानित नहीं करने की चुटकी लेने जैसी राजनीति कभी साहित्य का हिस्सा रहा हो याद नहीं पड़ता। वैसे कोहली जी को पद्म सम्मान इसी सरकार ने दिया. क्रमशः.... |
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