समकालीन हिंदी लेखन व पौराणिक बनाम मिथ आख्यान, बहसः भाग-1
जनता जनार्दन संवाददाता ,
May 22, 2017, 18:22 pm IST
Keywords: Litarary Debate Sahitya Group Contemporary Hindi Writing Myths Mythological Narration समकालीन हिंदी लेखन पौराणिक लेखन मिथ आख्यान हिंदी साहित्य अनंत विजय अमिष त्रिपाठी नरेंद्र कोहली
नई दिल्लीः यों तो व्हाट्सएप पर 'साहित्य' नामक समूह का सृजन हिंदी के नामचीन युवा आलोचक अनंत विजय ने साहित्य से जुड़े विषयों पर ही चर्चा के लिए किया था, पर अपने दिग्गज सदस्यों के चलते इस समूह ने पिछले दिनों एक ऐसे ज्वलंत विषय को छेड़ दिया, जिस पर काफी पहले बात हो जानी चाहिए थी.
हुआ यह कि अनंत विजय के दैनिक जागरण के राष्ट्रीय संस्करण में प्रकाशित लेख 'हिंदी में मिथकों से परहेज क्यों?' की छायाप्रति लेखिका रश्मि ने समूह में चिपका दी. फिर क्या, बधाइयों से शुरु हुआ सिलसिला भारत, भारतीयता, संस्कृति, धर्म, अध्यात्म, परंपरा, पुराण और पौराणिक पात्रों का भारतीय समकालीन लेखन-साहित्य में स्थान से होता हुआ इस कदर सारगर्भित हो गया कि...हम उसके चुनिंदा अंशों को यहां दिए बिना रह नहीं सके. पहली कड़ी, अनंत विजय का वह लेख, जिसे उनके ब्लॉग हाहाकार से लिया गया है. हिंदी में मिथकों से परहेज क्यों? साहित्य जगत में इन दिनों अमिष त्रिपाठी की किताब ‘सीता, द वॉरियर ऑफ मिथिला’, को लेकर उत्सुकता का माहौल है। सोशल मीडिया पर भी इस किताब को लेकर लगातार चर्चा हो रही है। पहले केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी ने लेखक अमिष त्रिपाठी के साथ घंटेभर की बातचीत इस किताब को केंद्र में रखकर की। दोनों की इस बातचीत को फेसबुक पर हजारों लोगों ने देखा। अमिष लगातार अपने पाठकों से सोशल मीडिया से लेकर हर उपलब्ध मंच पर चर्चा कर रहे हैं। कुछ दिनों पहले किताब का ट्रेलर जारी किया गया जिसमें सीता को योद्धा के रूप में दिखाया गया है। ट्रेलर देखकर और पुस्तक के शीर्षक को एक साथ मिलाकर देखने से अमी। ने सीता का जो चित्रण किया होगा उसके बारे में अंदाज लगाया जा सकता है । इन बातों की चर्चा सिर्फ इस वजह से कि लेखक अपनी किताब को लेकर बेहद सक्रिय हैं। हर तरह के माध्यम का उपयोग करके वो अपने विशाल पाठक वर्ग तक इसको पहुंचाने के यत्न में लगे हैं। अमिष को मालूम है कि इस वक्त हमारे देश में खासकर अंग्रेजी के पाठकों के बीच मिथकीय चरित्रों के बारे में जानने पढ़ने की खासी उत्सकुता है। अंग्रेजी के पाठकों में मिथकों को लेकर जो उत्सकुता है उसने लेखकों के लिए अवसर का आकाश सामने रख दिया है। इस वक्त अंग्रेजी के कई लेखक अलग अलग मिथकीय चरित्रों पर लिख रहे हैं और तकरीबन सबकी किताबों की जमकर बिक्री हो रही है। अमिष की ही सीता पर आनेवाली किताब से पहले जब ‘इममॉरटल ऑफ मेलुहा’, ‘नागा’ और ‘वायुपुत्र’ प्रकाशित हुई थी तो उसने बिक्री के सारे रिकॉर्ड तोड़ दिए थे। ‘इममॉरटल ऑफ मेलुहा’ के प्रकाशन को लेकर भी बेहद दिलचस्प कहानी है । दो हजार दस में जब ये किताब पहली बार प्रकाशित हुई थी तो उसके पहले प्रकाशकों ने इसको करीब डेढ दर्जन बार छापने से मना कर दिया था। तमाम संघर्षों को बाद जब यह किताब छपकर आई तो इसने बिक्री के सारे रिकॉर्ड तोड़ दिए और इतिहास रच दिया। अमिष त्रिपाठी की इन किताबों के पाठक अब भी बाजार में हैं और उनकी लगातार बिक्री हो रही है। अमिष की इन किताबों का विश्व की कई भाषाओं में अनुवाद भी हो रहा है। अमिष त्रिपाठी देश के सबसे प्रतिष्ठित प्रबंधन संस्थान आई आई एम से पढे हैं और वित्तीय क्षेत्र की नौकरी के बाद लेखन में उतरे। लेखन की दुनिया में इतने रमे कि बस लेखक होकर रह गए। इसके पहले भी अशोक बैंकर ने रामायण पर एक पूरी श्रृंखला लिखी थी जो बेहद लोकप्रिय हुई थी। बहुत प्रामाणिकता के साथ कहना मुश्किल है लेकिन बैंकर को अंग्रेजी में मिथकों पर लोकप्रिय तरीके से योजनाबद्ध तरीके से लिखने की शुरुआत का श्रेय दिया जा सकता है। अंग्रेजी में मिथक लेखन का इतना बड़ा बाजार है इसको सिर्फ अमीष की पुस्तकों की बिक्री से समझना उचित नहीं होगा। अश्विन सांधी ने भी अपने लेखन में मिथकीय चरित्रों को अपने तरीके से व्याख्यायित कर वाहवाही लूटी और देश के बेस्ट सेलर लेखकों की सूची में शामिल हो गए। उनकी कृति ‘सियासकोट सागा’, ‘चाणक्या चैंट्स’ आदि की जमकर बिक्री हुई। पिछले दिनों अश्विन सांघी से मुंबई लिट-ओ-फेस्ट में मुलाकात हुई थी। वहां सांघी ने अपनी पहली किताब छपने की बेहद दिसचस्प कहानी बताई। उन्होंने कहा कि एक दो बार नहीं बल्कि सैंतालीस बार प्रकाशकों ने उनकी किताब को रिजेक्ट किया था और बड़ी मुश्किल से उनकी किताब छप पाई थी। आज अश्विन सांघी अंतराष्ट्रीय स्तर पर मशहूर और प्रतिष्ठित लेखकों के साथ मिलकर लेखन करने में जुटे हैं। ऐसा प्रतीत होता है कि जिस लेखक को प्रकाशक जितना नकारते हैं वह उतना ही हिट होता है। अमिष की तरह की अश्विन सांघी भी कारोबार की दुनिया से ही लेखन की दुनिया में आए। एक और शख्स जो साहित्य की दुनिया की परिधि से बाहर था उसने भी भारतीय मिथकीय चरित्रों पर अंग्रेजी में लिखकर खासी शोहरत हासिल की, उनका नाम है देवदत्त पटनायक। देवदत्त पटनायक कुछ मायनों में अमिष और अश्विन से अलग तरह का लेखन करते हैं । देवदत्त पटनायक लोककथाओं या पूर्व में स्थानीय स्तर पर लोककथाओं के आधार पर जो लेखन हो चुका है, उसको अपने शोध का हिस्सा बनाकर प्रामाणिकता के साथ पेश करने की कोशिश करते हैं। इससे उनके बारे में यह धारणा बनती है कि वो अपनी रचनाओं को लोकेल के ज्यादा करीब ले जाते है लेकिन उनके लेखन पर बहुधा सवाल भी उठते हैं। बावजूद उसके वो लोकप्रिय हैं। देवदत्त पटनायक, अमिष त्रिपाठी, अश्विन सांघी के अलावा भी दर्जनभर से ज्यादा अंग्रेजी के लेखक अलग-अलग मिथकीय चरित्रों पर लिख रहे है। पौराणिक कथाओं को अपने लेखन का आधार बना रहे है। अब हमें इस पर भी विचार करना चाहिए कि अंग्रेजी में पौराणिक कथाओं, मिथकीय चरित्रों और प्राचीन ग्रंथों के पात्रों पर लिखकर लेखकों को प्रसिद्धि, पैसा, पहचान और प्रतिष्ठा मिल रही है लेकिन हिंदी में हालात बिल्कुल अलग हैं। अमिष त्रिपाठी रामचंद्र सीरीज में पहले ‘सियोन ऑफ इच्छवाकु’ लिख चुके हैं और ‘सीता’ उनकी दूसरी किताब है लेकिन उनको कोई रामकथा लेखक नहीं कहता है। ना ही इससे अमिष की प्रतिष्ठा और आय पर कोई असर पड़ा है। इसी तरह से केरल के इंजीनियर आनंद नीलकंठन ने भी रामायण और महाभारत को आधार बनाकर ‘असुर’ से लेकर ‘काली’ तक पर लेखन किया। उनके लेखन को सराहा गया। आनंद की किताबें खूब जमकर बिकीं, देश विदेश की पत्र-पत्रिकाओं ने उनपर उनके लेखन पर लंबे लंबे लेख छापे । लेकिन हिंदी में स्थिति इससे बिल्कुल उलट है। हिंदी में राम पर विपुल लेखन करनेवाले नरेन्द्र कोहली को विचारधारा विशेष के लेखकों और आलोचकों ने ‘रामकथा लेखक’ कहकर हाशिए पर डालने की कोशिश की। ये तो नरेन्द्र कोहली के लेखन की ताकत और निरंतरता थी कि उन्होंने अपना एक पाठकवर्ग बनाया जिसे विचारधारा से कोई मतलब नहीं था । नरेन्द्र कोहली को कभी भी तथाकथित मुख्यधारा का लेखक नहीं माना गया क्योंकि वो धर्म पर लिख रहे थे और किसी लेखक को मुख्यधारा का मानने या ना मानने का काम जिनके जिम्मे था वो धर्म को अफीम मानते रहे थे । कोहली जी को कभी भी साहित्य अकादमी पुरस्कार के योग्य ही नहीं माना गया। एक कार्यक्रम में जब मैंने यह सवाल उठाया तो वहां एक मार्क्सवादी आलोचक ने कहा कि अब यही दिन देखने को रह गए हैं कि कोहली जैसे लेखकों को साहित्य अकादमी मिलेगा। सवाल यही उठता है कि रामायण, महाभारत, विवेकानंद आदि पर विपुल लेखन करनेवाले नरेन्द्र कोहली को अकादमी पुरस्कार के योग्य क्यों नहीं माना गया, इसपर विमर्श होना चाहिए। साहित्य अकादमी के पास भूल सुधार का मौका है। नरेन्द्र कोहली जैसे बड़े लेखक को रामकथा लेखक कहने से हिंदी का नुकसान हुआ क्योंकि मिथकीय चरित्रों और पात्रों पर लिखने का काम हिंदी में कम हुआ। उऩ परिस्थितियों और उन लोगों को चिन्हित किया जाना चाहिए जिन्होंने हिंदी का नुकसान किया। नतीजा यह हुआ कि नए लेखकों ने विचारधारा के खौफ में उधर यानी मिथकीय लेखन का रुख ही नहीं किया। भगवान सिंह ने ‘अपने अपने राम’ लिखा पर उस कृति पर भी अच्छा खासा विवाद हुआ था। रमेश कुंतल मेघ ने ‘विश्व मिथक सागर’ जैसे ग्रंथ की रचना की है । रमेश कुंतल मेघ ने इस किताब को लिखने में कितनी मेहनत की होगी इसका अंदाज लगाना कठिन है। इस किताब पर हिंदी में ठीक से विचार नहीं हुआ है, आगे होगा इसमे मुझे संदेह है क्योंकि अकादमियों आदि में अब भी उसी विचारधारा वालों का बोलबाला है। फासीवाद-फासीवाद का हल्ला मचाकर वो अपने से अलग विचार रखनेवालों को बैकफुट पर रखते है। यह उनकी रणऩीति है जिसको समझने की जरूरत है। फासीवाद का हौवा खड़ा करके सामनेवाले को रक्षात्मक मुद्रा में लाकर अपना उल्लू सीधा करने की चाल बहुत पुरानी है, लेकिन जानते बूझते भी उसको रोकने का काम नहीं किया जाना भी दुर्भाग्यपूर्ण है। मिथकीय और पौराणिक चरित्रों पर लेखन करने से रोकने की प्रवृत्ति को समझना इसलिए भी आवश्यक है कि इस प्रवृत्ति से हिंदी का, हमारी पारंपरिक चिंतन पद्धति का विकास अवरुद्ध हो गया है। जो काम अंग्रेजी में या जो काम मलयालम में या तमिल में हो सकता है और वहां उसको प्रतिष्ठा मिल सकती है वो हिंदी में क्यों नहीं हो सकता है। हिंदी को अपनी परंपरा से अपनी विरासत से अपने समृद्ध लेखन से दूर करनेवालों ने साहित्य के साथ आपराधिक कृत्य किया है। इस कृत्य को करनेवालो को अगर समय रहते चिन्हित कर उनसे सवाल नहीं पूछे गए तो वह दिन दूर नहीं जब हिंदी के पाठक अपनी विरासत को जानने समझने के लिए दूसरी भाषा का रुख करने लगेंगे। वह स्थिति हिंदी के लिए बहुत विकट होगी और जो नुकसान होगा फिर उसको रोक पाना मुमकिन हो पाएगा, इसमें संदेह है। ( यह चर्चा जारी है. ...इस लेख पर आयी प्रतिक्रियाएं क्रमशः आपके सामने आती रहेंगी.) |
क्या आप कोरोना संकट में केंद्र व राज्य सरकारों की कोशिशों से संतुष्ट हैं? |
|
हां
|
|
नहीं
|
|
बताना मुश्किल
|
|
|