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इसरोः बैलगाड़ी से विश्वरिकॉर्ड तक कि वे उपलब्धियां, जिन्होंने दुनिया में बनाई भारत की पहचान

जनता जनार्दन संवाददाता , Feb 15, 2017, 13:41 pm IST
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इसरोः बैलगाड़ी से विश्वरिकॉर्ड तक कि वे उपलब्धियां, जिन्होंने दुनिया में  बनाई भारत की पहचान नई दिल्ली: डॉ. विक्रम साराभाई ने 15 अगस्त 1969 को इसरो की स्थापना की थी. आपको जानकर हैरत होगी की हमारे वैज्ञानिक आसमान मुट्ठी करने के सफर पर साइकिल और बैलगाड़ी के जरिए निकले थे. वैज्ञानिकों ने पहले रॉकेट को साइकिल पर लादकर प्रक्षेपण स्थल पर ले गए थे. इस मिशन का दूसरा रॉकेट काफी बड़ा और भारी था, जिसे बैलगाड़ी के सहारे प्रक्षेपण स्थल पर ले जाया गया था.

इससे भी ज्यादा रोमांचकारी बात यह है कि भारत ने पहले रॉकेट के लिए नारियल के पेड़ों को लांचिंग पैड बनाया था. हमारे वैज्ञानिकों के पास अपना दफ्तर नहीं था, वे कैथोलिक चर्च सेंट मैरी मुख्य कार्यालय में बैठकर सारी प्लानिंग करते थे. पूरे भारत में इसरो के 13 सेंटर हैं.

इन्हीं मुश्किलों में हमारे वैज्ञानिकों ने पहला स्वदेशी उपग्रह एसएलवी-3 लांच किया था. यह 18 जुलाई 1980 को लांच किया गया था. दिलचस्प बात यह है कि इस प्रोजेक्ट का डायरेक्टर तब की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने युवक वैज्ञानिक डॉक्टर अब्दुल कलाम को बनाया था, जो बाद में भारत के राष्ट्रपति बने और देश जिन्हें मिसाइल मैन के नाम से जानता है. इस लांचर के माध्यम से रोहिणी उपग्रह को कक्षा में स्थापित किया गया.

पिछले कुछ सालों में इसरो ने विज्ञान के क्षेत्र में राष्ट्रीय- अंतरराष्ट्रीय स्तर पर काफी कामयाबी दर्ज की है. एसएलवी-3 भारत का पहला स्वदेशी सैटेलाइट लॉन्च वेहिकल था. इस प्रोजेक्ट के डायरेक्टर पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम थे.

इसरो के मार्स मिशन को सबसे सस्ता बताया जाता है. इस पर करीब 450 करोड़ रुपये खर्च हुए, जिसे पीएम मोदी ने हॉलीवुड फिल्म ग्रेवेटी के खर्चे से भी कम बताया था.

1975 में देश का पहला उपग्रह आर्यभट्ट अंतरिक्ष में भेजा गया. इसका नाम महान भारतीय खगोलशास्त्रीके नाम पर रखा गया था.

इस सेटेलाइट को कॉसमॉस-3एम प्रक्षेपण वाहन के जरिए कास्पुतिन यान से प्रक्षेपित किया गया था. सबसे खास बात यह थी कि इस उपग्रह का निर्माण पूरी तरह से भारत में ही हुआ था.

इसरो ने बनाया विश्व रिकॉर्ड, एक साथ 104 सैटेलाइट भेजे
एक रॉकेट से प्रक्षेपित किए 104 सैटेलाइट: इसरो ने अपने सबसे सफल रॉकेट पीएसएलवी की मदद से 104 सैटेलाइट को प्रक्षेपित किया. इसमें 101 विदेश सैटेलाइट हैं. इनमें भारत और अमेरिका के अलावा इजरायल, हॉलैंड, यूएई, स्विट्जरलैंड और कजाकिस्तान के छोटे आकार के सैटेलाइट शामिल हैं. ऐसा करने वाला भारत दुनिया का पहला देश बन गया.

इस अभियान के बारे में इसरो के चेयरमैन एएस किरण कुमार ने बताया कि एक उपग्रह का वजन 730 किलो का है, जबकि बाक़ी के दो का वजन 19-19 किलो है. इनके अलावा हमारे पास 600 किलो और वजन भेजने की क्षमता थी, इसलिए हमने 101 दूसरे सैटेलाइटों को भी लांच करने का निर्णय लिया.

इसरो प्रमुख किरण कुमार ने कहा था कि उपग्रहों को अंतरिक्ष में छोड़ना एक तरह से पक्षियों को आसमान में उड़ाने जैसा है. इससे अंदाजा लगा सकते हैं कि हमारे इसरो के वैज्ञानिक कितने काबिल हैं, जो अंतरिक्ष के क्षेत्र में सीमित संसाधनों से विकसित देशों को पीछे छोड़ रहे हैं. इसरो में कई ऐसे वैज्ञानिक हुए, जिन्होंने अपना पूरा जीवन संगठन को समर्पित कर दिया. उन्होंने कभी विवाह नहीं किया.

पीएसएलवी: इसरो ने 1990 में ध्रुवीय उपग्रह प्रक्षेपण यान (पीएसएलवी) को विकसित किया था. 1993 में इस यान से पहला उपग्रह ऑर्बिट में भेजा गया, जो भारत के लिए गर्व की बात थी. इससे पहले यह सुविधा केवल रूस के पास थी.

चंद्रयान : 2008 में इसरो ने चंद्रयान बनाकर इतिहास रचा था. 22 अक्टूबर 2008 को स्वदेश निर्मित इस मानव रहित अंतरिक्ष यान को चांद पर भेजा गया था. इससे पहले ऐसा सिर्फ छह देश ही कर पाए थे.

मंगलयान : भारतीय मंगलयान ने इसरो को दुनिया के नक्शे पर चमका दिया. मंगल तक पहुंचने में पहले प्रयास में सफल रहने वाला भारत दुनिया का पहला देश बना. अमेरिका, रूस और यूरोपीय स्पेस एजेंसियों को कई प्रयासों के बाद मंगल ग्रह पहुंचने में सफलता मिली. चंद्रयान की सफलता के बाद ये वह कामयाबी थी जिसके बाद भारत की चर्चा अंतराष्ट्रीय स्तर पर होने लगी.

जीएसएलवी मार्क 2 : जीएसएलवी मार्क 2 का सफल प्रक्षेपण भी भारत के लिए बड़ी कामयाबी थी, क्योंकि इसमें भारत ने अपने ही देश में बनाया हुआ क्रायोजेनिक इंजन लगाया था. इसके बाद भारत को सैटेलाइट लॉन्च करने के लिए दूसरे देशों पर निर्भर नहीं रहना पड़ा.

खुद का नेविगेशन सिस्टम
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संस्थान (इसरो) ने 28 अप्रैल 2016 भारत का सातवां नेविगेशन उपग्रह (इंडियन रीजनल नेविगेशन सैटेलाइट सिस्टम) लॉन्च किया. इसके साथ ही भारत को अमेरिका के जीपीएस सिस्टम के समान अपना खुद का नेविगेशन सिस्टम मिल गया. इससे पहले अमेरिका और रूस ने ही ये उपलब्धी हासिल की थी.

इसरो के लिए 2016 रहा अहम - तकनीकी मोर्चे पर इस एक साथ 20 उपग्रह लॉन्च करने के अलावा इसरो ने अपना नाविक सैटेलाइट नेविगेशन प्रणाली स्थापित किया और दोबारा प्रयोग में आने वाले प्रक्षेपण यान (आरएलवी) और स्क्रैमजेट इंजन का सफल प्रयोग किया.

इस साल इसरो ने कुल 34 उपग्रहों को अंतरिक्ष में उनकी कक्षा में स्थापित किया, जिनमें से 33 उपग्रहों को स्वदेश निर्मित रॉकेट से और एक उपग्रह (जीएसएटी-18) को फ्रांसीसी कंपनी एरियानेस्पेस द्वारा निर्मित रॉकेट से प्रक्षेपित किया. भारतीय रॉकेट से प्रक्षेपित किए गए 33 उपग्रहों में से 22 उपग्रह दूसरे देशों के थे, जबकि शेष 11 उपग्रह इसरो और भारतीय शिक्षण संस्थानों द्वारा निर्मित थे.
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