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ट्रंप की वीजा पाबंदी: वैज्ञानिकों ने प्रयोगशालाओं के द्वार खोले

ट्रंप की वीजा पाबंदी: वैज्ञानिकों ने प्रयोगशालाओं के द्वार खोले कोलकाता: अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के कठोर आव्रजन नियमों को लेकर एक तरफ जहां पूरी दुनिया में हड़कंप मचा हुआ है, वहीं दूसरी तरफ इन नियमों के आगे न झुकते हुए भारत सहित दुनिया की वैज्ञानिक बिरादरी ने अमेरिका के बाहर फंसे वैज्ञानिकों की मदद के लिए अपनी प्रयोगशालाओं के दरवाजे खोल दिए हैं.

साइंस सोलिडारिटी लिस्ट (एसएसएल) पहल के तहत 30 से अधिक देशों के वैज्ञानिकों-शोधकर्ताओं ने प्रभावित वैज्ञानिकों की मदद पर सहमति जताई है.

वीजा को मंजूरी मिलने का इंतजार कर रहे प्रतिबंधित देशों के वैज्ञानिकों की मदद के लिए एकाएक सोशल मीडिया पर मदद का हाथ क्या बढ़ाया गया, इसने उन वैज्ञानिकों की मदद के लिए एक मुहिम की शक्ल अख्तियार कर ली.

व्हाइट हाउस के शासकीय आदेश 13769 के कारण अमेरिका आधारित वैज्ञानिकों को मदद मुहैया कराने के लिए यूरोपियन मॉलिक्यूलर बायोलॉजी ऑर्गनाइजेशन (ईएमबीओ) के नेतृत्व में बनी एसएसएल वैज्ञानिकों की एक सूची है, जिनका मकसद उन्हें टेंपररी बेंच या डेस्क स्पेस, लाइब्रेरी एक्सेस तथा जहां तक संभव हो सके प्रयोगशालाओं में शरण प्रदान करना है। 27 जनवरी, 2017 का यह शासकीय आदेश 'राष्ट्र की सुरक्षा के लिए अमेरिका में विदेशी आतंकवादियों के प्रवेश' के शीर्षक से जारी किया गया है.

सिएटल में एक अमेरिकी न्यायाधीश ने सात मुस्लिम बहुल देशों के लोगों की अमेरिका की यात्रा पर पाबंदी लगाने वाले ट्रंप के इस प्रतिबंध पर राष्ट्रव्यापी रोक लगा दी. वहीं व्हाइट हाउस ने कहा कि न्याय विभाग अदालत के इस फैसले को चुनौती देगा. वैज्ञानिकों की मदद के लिए प्रस्तावों के आने का सिलसिला जारी है.अब तक सहायता के लिए 800 से अधिक प्रस्ताव मिल चुके हैं, जबकि हर पांच मिनट पर मदद का एक प्रस्ताव मिल रहा है.

ईएमबीओ की निदेशक मारिया लेप्टिन ने जर्मनी के हैडेलबर्ग से टेलीफोन पर कहा, ''हमने महसूस किया कि हमें कुछ करना है. इससे विज्ञान पर बड़ा प्रभाव पड़ता है. इसका प्रभाव प्रयोगशालाओं के काम पर पड़ता है. उनकी परियोजनाएं पूरी नहीं होंगी, क्योंकि वैज्ञानिक अपने कार्यस्थल पर नहीं हैं. इसका हर किसी पर प्रभाव पड़ेगा.''

उन्होंने कहा, ''हम (वैज्ञानिक) खुद को वैश्विक समुदाय की तरह देखते हैं और हमारे द्वारा किया गया यह काम बिल्कुल स्वाभाविक है।'' ईएमबीओ 1,700 अग्रणी वैज्ञानिकों का एक संगठन है.

इस संगठन के कार्यक्रम तथा गतिविधियों को यूरोपियन मॉलिक्यूलर बायोलॉजी कांफ्रेंस (ईएमबीसी) वित्तपोषित करती है. ईएमबीसी की स्थापना सन् 1969 में हुई थी, जो एक अंतर-सरकारी संगठन है, जिसमें 33 सदस्य तथा भारत सहित साझेदार देश हैं. भारत 2016 में इसका साझेदार बना. सोलिडारिटी लिस्ट में ईएमबीसी तथा गैर-ईएमबीसी दोनों ही देश शामिल हैं.

लेप्टिन इस सूची में सबसे पहले शामिल हुईं, जिन्होंने अमेरिका के बाहर फंसे शोधकर्ताओं को यूनिवर्सिटी ऑफ कोलोन की अपनी प्रयोगशाला में काम करने की सहायता का प्रस्ताव दिया.

मदद की पेशकश करने वाले अधिकांश लोग यूरोप से हैं. सूची में भारत, कनाडा, इजरायल, जापान, सऊदी अरब, मेक्सिको, सिंगापुर, ब्राजील तथा चीन की प्रयोगशालाएं शामिल हैं. वैज्ञानिक बिरादरी की प्रतिक्रिया हैशटैग साइंसशेल्टर्स के नाम से सोशल मीडिया पर ट्रेंड कर रही है.

ट्विटर के माध्यम से सबसे पहले मदद का हाथ ऑस्ट्रिया के पॉपुलेशन जेनेटिक्स मैग्नस नोर्डबोर्ग तथा प्लांट बायोलॉजिस्ट जूरगेन क्लिन-वेन ने बढ़ाया। ट्वीट को देखकर हालात की गंभीरता का अंदाजा लगता है, जहां वैज्ञानिक लगभग शरणार्थी की तरह प्रतीत हो रहे हैं.

भारत के वैज्ञानिकों ने भी फंसे वैज्ञानिकों की तरफ मदद का हाथ बढ़ाया है. चार फरवरी तक देश से सहायता के तीन प्रस्ताव भेजे गए हैं, जिनमें सभी बेंगलुरु के नेशनल सेंटर फॉर बायोलॉजिकल साइंसेज (एनसीबीएस) से हैं.

थ्योरेटिकल फिजिसिस्ट संदीप कृष्णा ने डेस्क स्पेस तथा कंप्यूटर एक्सेस की पेशकश की है, वहीं शशि थुटुपल्लीस लैब भी सहायता के लिए उपलब्ध है, जो प्रयोगात्मक भौतिक जीव विज्ञान से संबंधित है.

एनसीबीएस की आरती रमेश ने अपनी प्रयोगशाला में डेस्क स्पेस, लैब बेंच स्पेस, प्रयोगशाला के उपकरणों तक कंप्यूटरों तक पहुंच की पेशकश की है, जो आरएनए बायोलॉजी पर काम करता है.

कृष्णा ने कहा, ''मैं एक थ्योरेटिकल भौतिक विज्ञानी हूं, जो जीव विज्ञान प्रणाली में आधारभूत प्रक्रियाओं के बारे में नए तरह के सवालों को हल करने के लिए उपकरणों तथा भौतिकी व गणित की अवधारणाओं का इस्तेमाल करता है. इस प्रकार, मैं अमेरिका के बाहर फंसे वैज्ञानिकों को डेस्क स्पेस, कंप्यूटर एक्सेस तथा वैज्ञानिक माहौल मुहैया करा सकता हूं, जहां कम से कम कुछ वक्त तक वे अपना काम जारी रख सकते हैं.'' 'मुसलमानों पर पाबंदी' को लेकर अपना विचार व्यक्त करते हुए कृष्णा ने कहा कि इससे अमेरिका को फायदे से अधिक नुकसान होगा.
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