हजारों की भीड़ में क्यों हिचकोले खा गई बिहार प्रशासन की नाव
जनता जनार्दन डेस्क ,
Jan 16, 2017, 8:43 am IST
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पटनाः बिहार सरकार ने अभी 10 दिन पहले ही प्रकाश पर्व पर लाखों श्रद्धालुओं के जुटने पर भीड़ प्रबंधन का शानदार उदाहरण पेश किया था. बेहतर व्यवस्था का गुणगान देश-विदेश में भी हुआ. ऐसे में सवाल उठता है कि मकर संक्रांति के मौके पर पतंग उत्सव के मौके पर मात्र कुछ हजारों की भीड़ को संभालने में प्रशासन की नाव क्यों हिचकोले खा गई.
मकर संक्रांति के मौके पर पटना के दियारा क्षेत्र में गंगा तट पर पतंग महोत्सव में पतजंगबाजी के दौरान पतंग की डोर संभालने गए 24 लोगों की जिंदगी की डोर ही टूट गई. पतंग उत्सव से शनिवार को लौटने के क्रम में गंगा नदी में नाव पलट जाने से 24 लोगों की मौत हो गई. माना जा रहा है कि प्रशासनिक चूक और अधिकारियों की लापरवाही के कारण इतने लोगों की मौत हो गई. प्रत्येक वर्ष की भांति इस वर्ष भी बिहार राज्य पर्यटन विकास निगम द्वारा मकर संक्रांति के अवसर पर गंगा के सबलपुर दियारा क्षेत्र में पतंग उत्सव का आयोजन किया गया था. इस दौरान दियारा से लोगों को लेकर लौट रही एक नाव गंगा नदी में पलट गई. कहा जा रहा है कि इस नाव में क्षमता से अधिक लोग बैठे थे. दुर्घटनाग्रस्त नाव में सवार और तैरकर अपनी जान बचाने वाले नीरज का कहना है कि नाव पर कुल 60 से 70 लोग सवाार थे। जैसे ही नाव बीच धार में डूबने लगी वह कूद पड़ा और तैरकर बाहर निकल आया. उन्होंने बताया कि नाव में 30 से ज्यादा लोगों के बैठने की क्षमता नहीं थी. नीरज का दावा है कि सरकार की बदइंतजामी के कारण ही इतना बड़ा हादसा हुआ. सत्ताधारी महागठबंधन सरकार में शामिल राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के नेता भी इस हादसे के पीछे बदइंतजामी को कारण बता रहे हैं. राजद के अध्यक्ष लालू प्रसाद कहते हैं, "अगर सरकार ने पतंग उत्सव का आयोजन किया था, तो उसके लिए समुचित तैयारी भी की जानी चाहिए थी। व्यवस्था चाक चौबंद होनी चाहिए. परंतु जैसा सुन रहे हैं कि उत्सव के लिए मुकम्मल व्यवस्था ही नहीं की गई थी." वैसे, एक अधिकारी की मानें तो इस महोत्सव के दौरान सारण और पटना जिला प्रशासन में समन्वय का अभाव दिखा. पटना प्रशासन के अनुसार, पतंगोत्सव के लिए प्रशासनिक जिम्मेदारी छपरा जिला प्रशासन को सौंपी गई थी. सोनपुर अनुमंडल पदाधिकारी (एसडीओ) मदन कुमार बताते हैं कि कार्यक्रम स्थल सबलपुर दियारा के लिए दो दंडाधिकारी तथा चार पुलिस अधिकारी और 64 पुलिसकर्मी की प्रतिनियुक्ति की गई थी. दुर्घटनाग्रस्त नाव पर सवार और तैरकर अपनी जान बचाने वाले खुशनसीब लोगों में पटना के रहने वाले विनोद कुमार भी शामिल हैं. वह कहते हैं कि प्रशासन द्वारा लोगों को लाने के लिए किसी नाव की व्यवस्था नहीं की गई थी. उन्होंने बताया कि गंगा दियारा में पतंग उत्सव से लौटने वाले लोगों को बैठाकर गांधी घाट की ओर जा रही नाव 100 मीटर के बाद ही डूबने लगी थी. वैसे इस हादसे को लेकर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने जांच के अदेश दे दिए हैं. पटना के जिलाधिकारी संजय कुमार अग्रवाल कहते हैं, "जांच के बाद ही घटना के सही कारणों का पता चल सकेगा. जांच में प्रत्यक्षदर्शियों के भी बयान दर्ज किए जाएंगे." बहरहाल सवाल यही है कि 10 दिन पहले ही प्रकाश पर्व पर प्रशासन ने भीड़ प्रबंधन और अतिथि सत्कार का शानदार उदाहरण पेश किया था. लाखों बाहरी श्रद्धालुओं की भीड़ के बावजूद जितनी बेहतर व्यवस्था की गई, उसका गुणगान विदेश तक हुआ. परंतु मकर संक्रांति के मौके पर पतंग उत्सव के मौके पर मात्र कुछ हजारों की भीड़ को संभालने में प्रशासन की नाव क्यों हिचकोले खा गई. सारण के जिलाधिकारी दीपक आनंद कहते हैं कि पर्यटन विभाग ने केवल पतंगबाजी का पत्र भेजा था। पतंगबाजी स्थल पर सुरक्षा मुहैया कराई गई थी. जहां नाव डूबी, वह स्थान कार्यक्रम स्थल से दूर है. अब लोग सवाल कर रहे हैं, प्रकाश पर्व को लेकर मुस्तैद पटना प्रशासन मकर संक्रांति पर पतंगोत्सव में होने वाली भीड़ को लेकर क्यों और कैसे चूक गया?" वैसे यह कोई पहला मौका नहीं है, जब प्रशासन की चूक से हादसा हुआ हो और लोगों को जान गंवानी पड़ी हो. इससे पहले 19 नवंबर 2012 को महापर्व छठ के दिन डूबते सूर्य को पहला अघ्र्य देने के दौरान एक पुल पर मची भगदड़ में 22 लोगों की मौत हो गई थी, जबकि वर्ष 2014 में दशहरा के दिन रावण दहन के दौरान गांधी मैदान में मची भगदड़ में 33 लोगों की जान चली गई थी. |
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