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सौर ऊर्जा में भारत के लिए सबक है मोरक्को की हॉलीवुड सिटी 'उआरजजाते'

कुशाग्र दीक्षित , Nov 27, 2016, 19:00 pm IST
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सौर ऊर्जा में भारत के लिए सबक है मोरक्को की हॉलीवुड सिटी 'उआरजजाते' माराकेश: दुनिया के मानचित्र पर एक तरफ एटलस पर्वत तथा दूसरी तरफ सहारा रेगिस्तान से घिरा एक शहर उआरजजाते मोरक्को के हॉलीवुड के नाम से जाना जाता है, जहां 'ग्लैडिएटर' जैसी मशहूर हॉलीवुड फिल्म तथा 'गेम ऑफ थ्रोंस' जैसे टीवी सीरिज की शूटिंग हो चुकी है।

मात्र तीन साल के रिकॉर्ड समय में यहां सबसे बड़े सौर ऊर्जा संयंत्र का निर्माण हो चुका है, जो भारत के लिए एक सबक साबित हो सकता है।

दक्षिण-मध्य मोरक्को में 3,000 एकड़ भूमि में फैला नूर सौर संयंत्र 1 पीवी पैनल के बजाय सीएसपी प्रौद्योगिकी का इस्तेमाल करता है और इसका लक्ष्य साल 2017 में पूरी तरह क्रियाशील होने पर सालाना 280,000 टन कार्बन उत्सर्जन को ग्रहण करने का है।

मोरक्कन एजेंसी फॉर सोलर एनर्जी (एमएएसईएन) द्वारा संचालित 160 गीगावाट की क्षमता वाले इस संयंत्र का लक्ष्य साल 2022 तक क्षमता बढ़ाकर 580 गीगावाट तक पहुंचाना है।

क्रियाशील संयंत्रों में से एक नूर1 के निदेशक (निर्माण) रशीद मोहम्मद ने कहा, "साल 2013 में यहां कुछ भी नहीं था। हमने 600 गीगावाट बिजली उत्पन्न करने को लेकर संयंत्र की अवसंरचना की स्थापना के लिए जमीन को समतल किया।"

कुल नौ अरब डॉलर की लागत से बना यह संयंत्र 11 लाख लोगों की बिजली की जरूरतों को पूरी करेगा।

अन्य तीन इकाइयां साल 2017, 2020 तथा 2022 में क्रियाशील होंगीं। सभी इकाइयां नवीनतम कंसंट्रेटिंग सोलर पावर (सीएसपी) का इस्तेमाल करते हैं, जो वाष्प पैदा करने के लिए गर्मी का इस्तेमाल करते हैं, जिससे टर्बाइन चलती है और बिजली पैदा होती है।

एक टेक्निशियन ने कहा, "यहां 555,000 से अधिक आइने लगे हैं। ये आइने सूर्य की रोशनी को फोकस करती हैं और एक कृत्रिम तरल को 400 डिग्री सेल्सियस तक गरम करता है। जब इसमें पानी मिलाया जाता है, तो इस प्रक्रिया से वाष्प पैदा होता है, जो टर्बाइन को चलाता है और इससे बिजली उत्पन्न होती है।"

आम तौर पर इस्तेमाल में आने वाले पीवी पैनल्स की तुलना में संयंत्र को सीएसपी से चलाना बेहद महंगा पड़ता है। सीएसपी की एक खासियत है कि यह रात में और बादल वाले मौसम में भी बिजली संरक्षित करने में सक्षम है।

एक अधिकारी ने कहा, "कीमत काफी कम है। पीक आवर में यह लगभग 14 फीसदी है। नूर1 के लिए कीमतों में 42 फीसदी तक की कमी आ जाती है। हमें उम्मीद है कि इसमें और गिरावट होगी।"

एमएएसईएन के अधिकारियों ने कहा, "इस योजना से मोरक्को को साल 2020 तक कुल मांग की 42 फीसदी तक बिजली मिलेगी, जबकि 2030 तक 52 फीसदी।"

क्लाइमेंट इनवेस्टमेंट फंड (सीआईएफ) ने कहा है कि मोरक्को अपनी बिजली की जरूरतें पूरी करने के लिए 90 फीसदी से अधिक जीवाश्म ईंधनों के आयात पर निर्भर करता है। नूर संयंत्र को मोरक्को का स्वच्छ बिजली के क्षेत्र में एक बड़ी छलांग के तौर पर देखा जा रहा है और यही कारण है कि उसे 22वें कॉफ्रेंस ऑफ द पार्टिज टू द यूएन फ्रेमवर्क कन्वेंशन ऑन क्लाइमेंट चेंज (सीओपी22) की मेजबानी के लिए चुना गया।

क्लाइमेट एक्शन ट्रैकर मोरक्को को उन देशों के साथ रखते हैं, जिनकी योजना नेशनल डिटरमाइंड काट्रिंब्यूशन (एनडीसी) की जरूरतों को पूरा करने के लिए पर्याप्त है।

सीओपी22 के विशेषज्ञों के मुताबिक, नूर परियोजना ऐसे वक्त में सामने आई है, जब मोरक्को में बिजली की मांग सालाना सात फीसदी तक बढ़ी है।

मोरक्को की विद्युत कंपनियों का कहना है कि परियोजना का आसपास के इलाके पर सकरात्मक प्रभाव पड़ेगा। उआरजजाते में रहने वाले लगभग पांच लाख लोगों को उम्मीद है कि स्वच्छ बिजली की बेहतर आपूर्ति से विद्युत आपूर्ति अच्छी होगी और अस्पतालों में उपकरणों को बिजली की समस्या से नहीं जूझना पड़ेगा।

माराकेश में सीओपी22 के दौरान फ्रांस सहित 21 से अधिक देशों ने अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन (आईएसए) पर हस्ताक्षर किए हैं, जिसकी अवधारणा भारत ने दी है।

रिकॉर्ड समय में नूर के क्रियाशील होने तथा उसके द्वारा इस्तेमाल की जा रही प्रौद्योगिकी से भारत सबक ले सकता है। भारत में लगभग 30 करोड़ लोग बिना बिजली के जीने को मजबूर हैं.

द एनर्जी एंड रिसोर्स इंस्टीट्यूट (टेरी) में फेलो करण मंगोत्रा ने यहां सीओपी22 से इतर कहा था, "भारत की अपनी महत्वाकांक्षा है और सौर लक्ष्यों को प्राप्त करने की दिशा में यह अग्रसर है। भंडारण तथा संतुलन में हालांकि चुनौतियां आ सकती हैं."

मंगोत्रा तथा कई अन्य सौर विशेषज्ञों के मुताबिक, भारत का भौगोलिक क्षेत्र व संसाधन अलग है और इसलिए उसकी तुलना मोरक्को से करना सही नहीं होगा, खासकर 2030 तक 52 फीसदी बिजली प्राप्ति के लक्ष्य को लेकर.
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