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वंचित बच्चों की जिंदगी का सहारा 'ब्रेड'

वंचित बच्चों की जिंदगी का सहारा 'ब्रेड' नई दिल्लीः अमन चार साल पहले अपने मदारी पिता के साथ दिन भर घूम-घूम कर करतब दिखाता था, और परिवार के लिए रोटी जुटाता था। जिसके लिए पूरा दिन उसे खपाना पड़ता था. ऐसा जीवन सिर्फ अमन ही नहीं, देश में न जाने कितने वंचित बच्चों का नसीब बना हुआ है, लेकिन आज अमन (बदला हुआ नाम) गिनतियां गिनता है, नोट गिन सकता है, किताबें पढ़ सकता है। वह मदारी का काम छोड़कर स्कूल जाने लगा है।

मिल रही है मुफ्त में शिक्षा

गाजियाबाद के डासना मसूरी में मदारियों की बस्ती में अमन (लगभग 10 वर्ष) जैसे कई सारे बच्चे हैं, जो अब स्कूल जाने लगे हैं। इसके पीछे सबसे बड़ी वजह यह है कि उन्हें स्कूल जाने के एवज में मिलता है भरपेट भोजन, जो उन्हें दिनभर मदारी का काम कर के भी नहीं मिल पाता था। उन्हें शिक्षा भी मिल रही है, वह भी मुफ्त। और यह काम कर रही है गैर सरकारी संस्था ब्रेड, यानी बोर्ड फॉर रिसर्च एजुकेशन एंड डेवलपमेंट।

नोएडा स्थित यह संस्था आज देशभर में कोई 25,000 ऐसे वंचित बच्चों को मुफ्त भोजन और शिक्षा मुहैया करा रही है।

संस्था के संस्थापक और समन्वयक फादर जोसन थारकन जॉन कहते हैं कि जो बच्चे कभी स्कूल जाना नहीं चाहते थे, वे अब दूसरे बच्चों के लिए प्रेरणा बन रहे हैं।

अमन कहता है, “पहले गिनती नहीं आती थी, मैं नोट देखकर छूकर पहचानता था कि यह कितने का है। लेकिन अब मुझे गिनती आती है, किताबें पढ़ता हूं।”

अमन अकेला नहीं है। गाजियाबाद में ही विजयनगर की जोया (11) कहती है,”पांच बहनें और एक भाई। पिता मजदूर और मां, भाई सभी मजदूरी करते हैं। ब्रेड की वजह से मैं पिछले चार साल से स्कूल में पढ़ रही हूं। स्कूल आने से पहले मुझे सर्दी-जुकाम जैसी समस्याएं रहती थीं। लेकिन अच्छे खाने की वजह से अब मेरा स्वास्थ्य ठीक है।”

गाजियाबाद के ही चरण सिंह कॉलोनी के श्याम (13) ने कहा,”मेरे पिताजी नहीं थे। तीन भाई और एक बहन में मैं सबसे बड़ा। मां घरों में काम करती है। घर में सिर्फ एक बार खाना बनता था। अब हम दोनों वक्त खाना खाते हैं, स्कूल भी जाते हैं।”

जोसन कहते हैं कि इन बच्चों के साथ इनके परिवार में शिक्षा का बीजा रोपण हुआ है और यह बीच आने वाली पीढ़ियों में वृक्ष बनेगा। उन्होंने कहा, “हमने उन्हें भोजन दिया तो वे मदारी का काम छोड़कर पढ़ाई के लिए प्रेरित हुए हैं। हमारा मकसद सिर्फ इन बच्चों तक सीमित नहीं है, बल्कि आने वाली पीढ़ी बदले, हम यह चाहते हैं।”

बनना था वकील, बन गए पादरी

जोसन ने वकील की पढ़ाई की है। वह वकालत के माध्यम से गरीबों और वंचितों की मदद करना चाहते थे। लेकिन उनकी दिशा वंचित बच्चों को भोजन और शिक्षा की तरफ मुड़ गई। उन्होंने बताया कि, “बचपन में वकील बनने का शौक था। लेकिन ईसाई पादरी बन गया। बाद में मैंने वकील की पढ़ाई की। दिल्ली बार काउंसिल में पंजीकरण कराया।”

उन्होंने कहा,”गरीबों की सेवा के लिए वकील बना था। इस दौरान बहुत जगह लोगों को सलाह देने जाता था। मुरादाबाद में एक कानूनी शिविर में, दहेज के बारे में बताया। वहां पता चला कि ज्यादातर लोग अशिक्षित हैं। बहुत हैरानी हुई। इसके पीछे उन्होंने गरीबी को कारण बताया।” बच्चों सहित पूरा परिवार पेट की रोटी जुटाने में दिनभर व्यस्त रहता था।

यहीं जोसन के मन में विचार आया कि यदि इन बच्चों को भोजन दिया जाए, तो वे स्कूल जाने लगेंगे, और इसी के साथ ब्रेड की स्थापना हुई।

जोसन ने कहा,”स्कॉटलैंड में रहने वाले एक दोस्त मैग्नस ने इस योजना में मदद की, जो पहले से मेरी मील नाम से कार्यक्रम चलाते थे। सबसे पहले हरियाणा के एक कस्बे में बच्चों को भोजन देने का काम शुरू हुआ।”

कई प्रदेशों में उपलब्‍ध करा रहे है भोजन और शिक्षा

वर्ष 2004 में शुरू हुई यह संस्था आज उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड, मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़, दिल्ली, आंध्र प्रदेश जैसे राज्यों में लगभग 25,000 गरीब, बेसहारा बच्चों के भोजन और शिक्षा का पर्याय बनी हुई है।

यहीं नहीं 12 वर्षो की इस सेवा के दौरान कई बच्चे बेहतर कॅरियर बनाने में भी सफल हुए हैं। इस बारे में जोसन ने हरियाणा की एक बच्ची का जिक्र किया। उन्होंने कहा, “सोनीपत में झुग्गी-झोपड़ी की टीचर की छोटी बहन को पढ़ाई के लिए आर्थिक रूप से दिक्कत थी, तो मैंने उसे एयरहोस्टेस्ट का प्रशिक्षण दिलाया, उसके बाद वह एयर होस्टेस्ट बनी।”

जोसन बताते हैं कि बच्चों के लिए औपचारिक और अनौपचारिक दोनों तरह से शिक्षा की व्यवस्था कराई जाती है, और सभी को किसी न किसी सरकारी स्कूल में दाखिला दिलाया जाता है। लेकिन कुछ बच्चों को निजी स्कूलों में भी शिक्षा की व्यवस्था की जाती है।

उन्होंने कहा, “जिन बच्चों के अभिभावक कुछ खर्च वहन कर सकते हैं, और बच्चे होनहार हैं, उन्हें संस्था मदर्स केयर कार्यक्रम के तहत मदद करती है, और निजी स्कूलों में उनका दाखिला कराती है।”

मदर्स केयर कार्यक्रम के तहत बच्चों को बैग, यूनीफॉर्म, किताबें, जूते और फीस में थोड़ी मदद की जाती है, लेकिन उन्हें भोजन नहीं दिया जाता।

शिक्षा और भोजन ही नही कौशल प्रशिक्षण की भी सुविधा

ब्रेड की योजना सिर्फ बच्चों तक ही सीमित नहीं है, बल्कि 12वीं पास कर लेने के बाद ब्लॉसम कार्यक्रम के तहत बच्चों के लिए कौशल प्रशिक्षण भी संस्था मुहैया कराती है.

जोसन ने कहा, “बच्चे 12वीं के बाद पूछने आते थे कि अब क्या करें तो हमने इसके लिए ब्लॉसम कार्यक्रम शुरू किया, जिसके तहत बच्चों को कुशल बनाने में मदद की जाती है.” इसके तहत लड़कियों के लिए सिलाई-कढ़ाई जैसे छोटे-मोटे काम सीखाने में मदद की जाती है.

ब्रेड के साथ जुड़ी कार्यकर्ता अंजीला कहती हैं, “गाजियाबाद में शुरुआत में बड़ा खराब माहौल था। झुग्गी के बच्चे पढ़ने नहीं आते थे, फिर हमने उन्हें टॉफी का लालच देकर पढ़ने बुलाया. उन्हें साफ-सफाई का महत्व बताया और पढ़ाई के लिए प्रेरित किए। आज उन बच्चों के छोटे भाई-बहन भी पढ़ने आते हैं. अभी उस्मानपुरी में हमने सफाई-अभियान के लिए रैली निकाली तो उन्होंने बहुत सहयोग किया.”

जोसन ने कहा कि इस काम का और भी विस्तार करना है, लेकिन संसाधन एक बड़ी चुनौती है. वह कहते हैं कि ब्रेड उन लोगों को रोटी और शिक्षा मुहैया कराती है, जिन्हें कहीं से कोई सहारा नहीं होता.
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