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पटना विस्फोट के वक्त किए वादे भूल गए प्रधानमंत्री मोदी?

जनता जनार्दन संवाददाता , Oct 29, 2016, 8:33 am IST
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पटना विस्फोट के वक्त किए वादे भूल गए प्रधानमंत्री मोदी? पटनाः 'कस्मे वादे प्यार वफा सब बातें हैं बातों का क्या..!' जब भी नेताओं के वादों की याद आती है, तो यह गाना बरबस ही लोगों की जुबां पर आ जाता है। फिल्म 'उपकार' के इस गीत की पहली पंक्ति लोकतंत्र में चल रहे वादों के खेल को समझने की प्रेरणा देती है।

लोकसभा चुनाव से पहले पटना के गांधी मैदान में गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी की रैली के दौरान हुए बम विस्फोटों में प्राण गंवाने वाले छह लोगों के परिजनों की जुबां पर आजकल यही गीत बार-बार आता है।

गांधी मैदान में 27 अक्टूबर, 2013 को मोदी की रैली से कुछ ही देर पहले हुए बम विस्फोटों में छह लोगों की जान चली गई थी। भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी ने उस वक्त मृतकों को परिजनों को नौकरी व अन्य सुविधाएं देने की घोषणा की थी। मोदी प्रधानमंत्री बन गए। देखते-देखते हादसे के तीन साल गुजर गए। मगर वह घोषणा जमीन पर नहीं उतरी।

मृतकों के परिजन निराश हैं। इन तीन वर्षो के दौरान न तो भाजपा के किसी नेता ने उनकी सुध ली और न ही प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) ने कभी उनसे संपर्क किया।

विस्फोट में जान गंवाने वाले विकास कुमार की विधवा वीना देवी ने आईएएनएस से कहा, "हमें भाजपा व प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर अब विश्वास नहीं रहा। उन्होंने मुझे नौकरी देने का वादा किया था।"

वीना ने नवंबर, 2013 के पहले सप्ताह के दिनों को याद करते हुए कहा कि मोदी खुद कैमूर जिला स्थित उनके गांव निशिझा उनसे मिलने आए थे और गुजरात सरकार की तरफ से उसे उसी के गांव में नौकरी देने का वादा किया था। उन्होंने उसके दोनों नाबालिग बच्चों- साक्षी व ऋषभ को सैनिक स्कूल में मुफ्त में पढ़ाने का वादा भी किया था।

पति की मौत के बाद बच्चों व खुद की रोजी-रोटी के लिए संघर्ष कर रही वीना ने कहा, "लेकिन आज की तारीख तक कुछ भी नहीं हुआ।"

वीना ही क्यों? विस्फोट में मारे गए एक और व्यक्ति भरत रजक के बेटे शंकर रजक ने कहा, "मोदी और भाजपा नेताओं ने मुझसे और मेरे परिवार से वादे किए थे। उन वादों के बारे में बात करना ही बेकार है। वे वादे कर भूल जाते हैं।"

शंकर रजक ने आईएएनएस से कहा, "मुझे पूरा भरोसा था कि मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद मुझे नौकरी जरूर मिल जाएगी। लेकिन उनके कार्यालय से एक कॉल का इंतजार करते हुए तीन साल बीत चुके हैं।"

कुछ इसी तरह की कहानी राजनारायण सिंह, राजेश कुमार, बिंदेश्वर चौधरी और मुन्ना श्रीवास्तव के परिजनों ने बयां की।

परिवार के एक सदस्य मुन्ना ने कहा, "भाजपा और मोदी हमसे किए वादों को भूल चुके हैं। अब इस बारे में बात करने से क्या फायदा। हम तो निराश हो चुके हैं।"

इस बीच, बिहार में सत्तारूढ़ जनता दल (युनाइटेड) के प्रवक्ता नीरज कुमार ने मोदी द्वारा किए उन वादों को कालाधन वापस लाने के वादे की तरह ही एक 'जुमला' करार दिया।

कुमार ने आईएएनएस से कहा, "मोदी अपनी रैली के दौरान बम विस्फोट में मारे गए छह लोगों के परिजनों को नौकरी देने में विफल रहे हैं। एक बार फिर उनके खोखले वादों की पोल खुल गई है।"

बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के बेहद नजदीकी माने जाने वाले नीरज कुमार ने कहा कि भाजपा व मोदी को विस्फोट में मारे गए लोगों के परिजनों से किए गए वादों पर जवाब देना चाहिए।

उन्होंने कहा, "भाजपा व मोदी इस मुद्दे पर चुप्पी क्यों साधे हुए हैं? क्या लोगों से किए वादों को वह भूल चुके हैं? नौकरी देने में विफल रहे मोदी को पीड़ित परिजनों से माफी मांगनी चाहिए।"

उन्होंने कहा कि भाजपा व मोदी ने साल 2014 में हुए लोकसभा चुनाव में वोट लेने के लिए सीरियल विस्फोटों का राजनीतिकरण किया और अब वादों को पूरा करने की शायद उनकी कोई इच्छा नहीं है।

वहीं, भाजपा नेता नंद किशोर यादव ने फिर वादा किया। उन्होंने कहा, "विस्फोट पीड़ित परिजनों को नौकरी मिलेगी। इसके लिए प्रक्रिया शुरू कर दी गई है। हम वादा पूरा करेंगे।"

भाजपा के एक अन्य नेता प्रेम कुमार ने कहा कि पार्टी सीरियल विस्फोट में मारे गए लोगों के परिजनों को नहीं भूली है। उन्होंने कहा, "उनसे जो भी वादे किए गए हैं, जल्द या थोड़े दिनों में पूरे कर दिए जाएंगे।"

पीड़ित परिजनों के साथ मुलाकात और टेलीफोन पर हुई बातचीत में मोदी ने कथित तौर पर नौकरी और बच्चों को मुफ्त शिक्षा दिलाने का वादा किया था। उन्होंने प्रत्येक मृतक के परिजनों को व्यक्तिगत तौर पर पांच लाख रुपये का चेक दिया था, जबकि दो अन्य के परिजनों को पैसे बाद में दिए गए थे।

उल्लेखनीय है कि पटना के गांधी मैदान में मोदी की रैली से ठीक पहले लगभग आधा दर्जन विस्फोट हुए थे, जिसमें छह लोग मारे गए थे और 80 से ज्यादा लोग घायल हुए थे। मृतकों में ज्यादातर भाजपा समर्थक और कार्यकर्ता ही तो थे।
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