प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के लुभावने वादों के बीच गरीब बुंदेलखंड
जनता जनार्दन डेस्क ,
Oct 27, 2016, 8:42 am IST
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प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी भी 24 अक्टूबर को महोबा में आए. महोबा की जनता देश के प्रधानमंत्री को सुनने के लिए बड़ी संख्या में जुटी, लेकिन सुरक्षा कारणों से काफी लोग उनके सम्बोधन को सुन नहीं पाए.
इन लोगों में से एक 60 वर्षीय संतराम गुस्से में कहते हैं, "हम पहाड़ पर चढ़कर, खूब पसीना बहाकर यहां तक आए पर पुलिस ने हमें यहां से चुपचाप लौटने को कह दिया. अब, ये क्या बात हुई भला? आप हमारी जांच कर लीजिए पर मोदी की सभा तो सुनने दें." लोगों को उम्मीद थी कि प्रधानमंत्री उनकी समस्याएं दूर करने के लिए कुछ घोषणाएं करेंगे, लेकिन मोदी केवल प्रदेश की सत्तारुढ़ और विपक्षी पार्टी को ही कोसते रहे. उन्होंने माना कि उत्तर प्रदेश में युवाओं के लिए रोजगार नहीं है, पर रोजगार के अवसर देने के बारे में उन्होंने कुछ नहीं बोला. मोदी को सुनने आए 25 वर्षीय पंकज अनुरागी ने कहा, "हमें मोदी जी रोजगार दें, क्योंकि उत्तर प्रदेश तो वैसे ही बेरोजगारों का प्रदेश है. यहां स्नातक और परास्नातक नौजवान भी पांच हजार की नौकरी कर रहे हैं." जबकि 50 वर्षीय महेन्द्र चौरसिया को इस इलाके में पानी चाहिए. वह कहते हैं, "पानी के लिए मोदी ने कुछ न कुछ तो बोला ही और अगर पानी आ गया तो विकास यहां हो ही जाएगा." बुंदेलखंड की प्यासी मिट्टी को पानी देने के लिए मोदी ने 'केन-बेतवा के गठजोड़' की बात तो दोहराई, लेकिन यह उन्होंने पहली बार बोला हो, ऐसा नहीं था. सबसे जरूरी मुद्दों में रोजगार और गैर कानूनी खनन पर मोदी ने कुछ नहीं बोला, जबकि ये जगजाहिर है कि उत्तर प्रदेश के इस सबसे गरीब हिस्से को रोजगार की सबसे ज्यादा दरकार है. पानी की कमी के चलते यहां खेती कभी भी लोगों को दो वक्त की रोटी नहीं दे पाई है और न ही गैर कानूनी खनन को प्रशासन की पूरी शह मिलने के कारण रोक पाई है. बुंदेलखंड के इन सभी जरूरी मसलों को छोड़ मोदी सिर्फ विरोधी दलों को ही घेरने में लगे हुए थे. अब देखना ये है कि वे पूरे चुनाव में इस एक मुद्दे पर ही रहते हैं या आगे चुनावी रणनीति के हिसाब से इसमें फेरबदल भी करते हैं. खैर, इस चुनाव में सभी दलों के चुनावी मुद्दों की लड़ाई ही उन्हें उत्तर प्रदेश में फतह दिला सकती है. |
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