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बह रही धार
मनोज पाठक ,
Oct 02, 2016, 18:47 pm IST
Keywords: Hindi Poetry Bah rahi dhar Manoj Pathak Manoj Pathak poetry मनोज पाठक मनोज पाठक की कविताएं बह रही धार
पार्थो दा
साम गान के सुर और तान स्पंदित प्रति पल ! लय होते हम और आप ! भावित होती भावना हम में आपमें । जीवित हो उठते प्राण बार बार अनेक बार प्राणों के सुर से तरंगित तन उमंगित मन स्पंदन में लय होते बार बार अनेक बार ! लय वही प्राण वही सुर वही पर गीत नये बार बार अर्थ नए बार बार बह रही धार २ अंतःसलिला धार फूट पड़ी फोड़ कर पाषाण ! अनादि अजस्र स्रोत ! बन जाए गान ! डूबता है तन उतराता है मन प्राणों के गीत पर हृदय के ताल पर ! गा सकते हैं गाइए ना सही , मुस्काइए ! घाट तो बनाइए ! घाट ही बनाइए ! घाट जो बनेगा तो घट ये भरेगा ! घट जो भरेगा तो तन मुसकेगा मन उमगेगा ! घाट तो बनाइए घाट भी बनाइए ! - मनोज पाठक |
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