गुलबर्ग जनसंहार: 14 वर्षो तक लड़ी इंसाफ की लड़ाई
जनता जनार्दन डेस्क ,
Jun 03, 2016, 19:03 pm IST
Keywords: Gujarat Ahmedabad Gulbarga massacre 77-year-old Zakia Jafri गुजरात अहमदाबाद गुलबर्ग जनसंहार 77 वर्षीया जाकिया जाफरी
नई दिल्ली: गुजरात राज्य के अहमदाबाद शहर के चमनपुरा इलाके में अपने हाल पर छोड़ी गई गुलबर्ग सोसाइटी की जर्जर व जली दीवारें उन परिवारों की न्याय की दुखद लड़ाई की मूक गवाह हैं, जिन्होंने 27 फरवरी, 2002 के गोधरा ट्रेन कांड के एक दिन बाद एक जनसंहार में अपना सब कुछ खो दिया।
अहमदाबाद की एक विशेष सत्र अदालत ने जब गुरुवार को गुलबर्ग सोसाइटी जनसंहार मामले में 24 लोगों को दोषी व 36 लोगों को निर्दोष करार दिया, तो न्याय के इंतजार में दिन-रात तिल-तिल कर मर रहे कई परिवार टूट गए। उनका कहना है कि इंसाफ अभी भी नहीं हुआ है। विशेष सत्र अदालत के फैसले से निराश उन लोगों में से एक हैं-77 वर्षीया जाकिया जाफरी, जो पूर्व कांग्रेस सांसद एहसान जाफरी की बेवा हैं। वह मरहूम पति को न्याय दिलाने के लिए 14 सालों से कानूनी लड़ाई लड़ रही हैं। यह भी पढ़े-2002 गुलबर्ग सोसाइटी दंगा मामला: 24 दोषी, 36 आरोपी बरी, 6 जून को आएगा सजा पर फैसला उल्लेखीनय है कि 28 फरवरी, 2002 में अहमदाबाद के मेघानीनगर इलाके में गुलबर्ग हाउसिंग सोसाइटी को हथियारबंद आक्रोशित भीड़ ने दिनदहाड़े आग लगा दी थी, जिसमें एहसान जाफरी सहित 69 लोगों की मौत हो गई थी। सोसाइटी में अल्पसंख्यक समुदाय के लोग रहते थे। जाकिया ने कहा, “पूरा इंसाफ नहीं हुआ है। मैं लड़ाई जारी रखूंगी, इसके लिए जो करना पड़े, वो करूंगी।” जाकिया ने हत्यारों को कानून के कठघरे में लाने और अधिकारियों पर 2002 के गुजरात दंगों के दौरान सप्ताहों तक चली सांप्रदायिक तबाही की अनदेखी करने का आरोप साबित करने की अपनी लड़ाई के दौरान कई उतार-चढ़ाव देखे। 2002 में नरेंद्र मोदी (वर्तमान प्रधानमंत्री) गुजरात के मुख्यमंत्री हुआ करते थे। मोदी ने स्वयं पर लगे आरोपों को झुठला दिया था और उन्हें सर्वोच्च न्यायालय द्वारा नियुक्त पैनलों ने 2011, 2012 व 2013 में दोषमुक्त करार दिया था। गुजरात पुलिस दंगा भड़काने वालों के खिलाफ कार्रवाई करने से इनकार करने की आरोपी है। राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी) ने अपनी 10 जून, 2002 की रिपोर्ट में दाखिल कराई गई चार्जशीट में ‘विश्वसनीयता की कमी’ की ओर संकेत किया है। यह भी पढ़े-गुलबर्ग सोसाइटी केस में आज फैसला सुनाएगा कोर्ट, जिंदा जला दिया गया था लोगों को गुलबर्ग सोसाइटी जनसंहार कांड में बीते वर्षो में 67 लोगों को गिरफ्तार किया गया। इनमें से तीन आरोपी सात सितंबर, 2009 को अदालत की सुनवाई शुरू होने से पहले ही दम तोड़ चुके हैं और छह अन्य की सुनवाई के दौरान मौत हो गई। इस कांड में कुल नौ चार्जशीट में से तीन को ‘त्रुटिपूर्ण या डिफेक्टिव’ पाया गया था और उन्हें सर्वोच्च न्यायालय में सिटीजन्स फॉर जस्टिस एंड पीस (सीजेपी) ने चुनौती दी थी, जो गुजरात दंगे में बाल-बाल बचे लोगों को कानूनी सहायता उपलब्ध कराती है। जाकिया ने पैनल के मोदी को क्लिनचिट देने के खिलाफ एक याचिका दायर की थी। 27 दिसंबर, 2013 को अदालत ने उनकी याचिका खारिज कर दी थी, जिसके बाद जाकिया अगस्त 2015 में मोदी के खिलाफ अपनी लड़ाई गुजरात उच्च न्यायालय ले गई। इस बीच, 22 सितंबर, 2015 को शहर की एक अदालत ने अभियोजन पक्ष के 338 गवाहों से पूछताछ करने के बाद जनसंहार मामले का निष्कर्ष निकाला और अंतिम जिरह खत्म हो गई। इसके नौ महीने बाद यानी दो जून (आज) को 24 आरोपियों को गुलबर्ग सोसाइटी जनसंहार कांड में दोषी करार दिया गया और 36 को बरी कर दिया गया। दोषियों को छह जून को सजा सुनाई जाएगी। लेकिन लगता है कि वृद्धा जाकिया की न्याय की लड़ाई जल्द खत्म होने वाली नहीं है, क्योंकि उन्होंने व अन्य पीड़ितों ने शहर की अदालत के फैसले को चुनौती देने की ठानी है। वहीं, दोषी ठहराए गए लोगों ने भी अदालत के फैसले को चुनौती देने का मन बना लिया है। |
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