बेहतर हो रही है पाकिस्तानी महिलाओं की स्थिति: कंजा जावेद
जनता जनार्दन डेस्क ,
Apr 06, 2016, 13:03 pm IST
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नई दिल्ली: पाकिस्तान की नई नारी देश का चेहरा बदल रही है और उसके रुतबे में बहुत सकारात्मक बदलाव आ रहा है। यह कहना है 24 वर्षीय लेखिका कंजा जावेद का, जिन्होंने हाल ही में राजधानी में अपनी मशहूर किताब ‘ऐशज, वाइन एंड डस्ट’ को जारी किया।
लाहौर और वॉशिंगटन की पृष्ठभूमि पर आधारित किताब में नायिका मरियम अमीन की जिंदगी के तीन चरणों को पेश किया गया है। कंजा की यह किताब मातृसत्तात्मक समाज की तस्वीर पेश करती है। कंजा ने साक्षात्कार में कहा, पाकिस्तान की नई नारी हमारे लिए नई संस्कृति लाई है। यहां महिलाओं की स्थिति बेहतर हो रही है। एनजीओ और अन्य पेशों समेत विभिन्न क्षेत्रों में महिलाएं, पुरुषों से बेहतर काम कर रही हैं। हमें हमारा पहला ऑस्कर दिलाने वाली भी एक महिला ही है।” ‘तिबोर जोन्स साउथ एशिया’ पुरस्कार के लिए नामांकित किए जाने के बाद कंजा की किताब चर्चा में आई। वह इस पुरस्कार के लिए नामित की जाने वाली पहली और सबसे युवा पाकिस्तानी हैं। पिछले साल अक्टूबर में वह खबरों में छा गई थीं, जब कुमाऊं साहित्य समारोह के दौरान वीजा न मिलने पर उन्होंने भारत में स्काइप पर अपनी पहली किताब का विमोचन किया था। अब दूसरी बार दिल्ली में अपनी किताब का विमोचन करने के बाद उन्होंने कहा, यह सामान्य सी बात है क्योंकि दोनों देशों के बीच तनाव है। इस पर हायतौबा क्यों मचाना? कुमाऊं साहित्य समारोह में स्काइप पर अपनी किताब का विमोचन करने के बाद अब मैने दिल्ली में किताब का विमोचन किया है। इस प्रकार मैने भारत में दो बार इसका विमोचन किया। कंजा ने कहा कि उनकी किताब शहर और उसमें बदलती जिंदगी और लोगों को समर्पित है। उन्होंने कहा, “किताब में दो लाहौर हैं, जिनसे मैं परिचित हूं। पहला जहां मेरे माता-पिता और मेरे दादा-दादी रहे और दूसरा नया शहर जो ज्यादा कास्मोपोलिटन है। उनमें मेल हो रहा है, लेकिन अब आप इससे जुड़ाव महसूस नहीं करते। अब यह सांस्कृतिक स्थान नहीं रहा। कई लोगों के लिए यह भयावह जगह है।” कंजा ने कहा कि उन्हें अपने परिवार की मजबूत महिलाओं से अपने चरित्र गढ़ने में प्रेरणा मिली है। कंजा ने कहा, “मेरा परिवार मातृसत्तात्मक है। मेरे उपन्यास में एक दादी हैं, जिनकी कामकाजी न होने के बावजूद अपनी एक पहचान है। एक घरेलू सहायिका है, जो अपनी मां के पास रहने के लिए अपने पति को छोड़ देती है।” लेखिका ने कहा कि उनके उपन्यास की नायिका मरियम पितृसत्तात्मक समाज की परंपराओं और नियमों को चुनौती देती है। लेखिका ने कहा कि उन्होंने लोगों के हिंसा के बाद के जीवन को छुआ है। वह राजनीति के बारे में बात करने से बचती हैं। कंजा ने कहा, “मैं राजनीति के बारे में बात नहीं करती। मैं उन लोगों की बात करती हूं जो हिंसा से प्रभावित हुए हैं। अपनी किताब में मैने एक महिला की जिंदगी में झांकने की कोशिश की है, जिसके पति की एक विस्फोट में मौत हो गई थी।” लेखिका ने कहा, “पाकिस्तान में आप किसी भी व्यक्ति को राजनीति से अलग नहीं कर सकते। पाकिस्तान में हर व्यक्ति राजनीतिज्ञ है। हर व्यक्ति हर समय इसके बारे में बात करता है।” कंजा को पाकिस्तान के बेहतरीन युवा लेखकों में गिना जाता है। उनका कहना है कि उनकी किताब उनकी जिदंगी के अनुभवों से प्रेरित है। उन्होंने कहा, “मुझसे अकसर यह सवाल किया जाता है कि यह किताब त्रासदीपूर्ण क्यों है? बचपन में मैं समाज से विस्थापित थी और मैं घरेलू सेविकाओं, दर्जियों और आयाओं से बातचीत किया करती थी जिनके पास भावुक कहानियां होती थीं। फिर अमेरिका में मैने दक्षिण एशियाई प्रवासियों की भयानक कहानियां सुनीं। मेरा व्यक्तित्व इन्हीं सब कहानियों से मिलजुल कर बना है। लाहौर की स्मृतियां उनके लेखन को प्रेरित करती हैं। कंजा ने कहा, “मैं जब अमेरिका में थी, तब मुझे इस बात का डर था कि लाहौर मेरी स्मृति से मिट जाएगा। मुझे डर था कि अगर मैं लाहौर को भूल गई तो में क्या लिखूंगी। अगर मुझे ऑटोरिक्शाओं की आवाजें नहीं सुनाई देंगी, अगर मुझे चाय की खुशबू नहीं आएगी तो मैं उन्हें भूल जाऊंगी। मैं इन सब के बिना क्या हूं? लेखिका के भारत में कई दोस्त और प्रशसंक हैं। उनका मानना है कि प्यार दोनों देशों के बीच फर्क को मिटा देगा। |
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