जया प्रदा की पहली कमाई 10 रुपये
जनता जनार्दन डेस्क ,
Apr 03, 2016, 13:17 pm IST
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नई दिल्ली: सन् 1980-1990 के दशक की मशहूर फिल्म अदाकारा और राजनीतिज्ञ जया प्रदा मनोरंजन-जगत का जाना माना नाम हैं। वह बॉलीवुड की उन गिनी-चुनी अभिनेत्रियों में शुमार हैं, जिनमें सौंदर्य और अभिनय का अनूठा मेल-जोल है। उन्होंने तमिल, हिंदी, कन्नड़, मलयालम, बांग्ला और मराठी फिल्मों में अपने बेहतरीन अभिनय की प्रस्तुति दी।
जया प्रदा का जन्म आंध्रप्रदेश के एक छोटे से गांव राजामुंदरी में 3 अप्रैल, 1962 को एक मध्यवर्गीय परिवार में हुआ। बचपन से ही जया का रुझान नृत्य में था। चौदह वर्ष की उम्र में उन्होंने अपने स्कूल के वार्षिक समारोह में एक नृत्य प्रस्तुति दी थी। समारोह में दर्शकों के बीच एक फिल्म निर्देशक भी उपस्थित थे। उन्होंने जया प्रदा से तेलुगू फिल्म 'भूमिकोसम' में तीन मिनट के नृत्य की पेशकश की। जया थोड़ा डरीं, लेकिन उनके परिवार ने उन्हें प्रस्ताव स्वीकार करने के लिए प्रोत्साहित किया। उन्हें इस फिल्म में काम के लिए सिर्फ 10 रुपये दिए गए। यही उनकी पहली कमाई थी। जब इस फिल्म में उनका नृत्य देखा गया तो उनके पास प्रस्तावों की झड़ी लग गई। इसके बाद उन्हें कई बड़े मौके मिले। जया प्रदा के पिता कृष्णा तेलुगू फिल्मों के वितरक थे। उनकी मां नीलावनी ने नृत्य के प्रति बेटी के बढ़ते रुझान को देख उन्हें नृत्य सीखने के लिए एक डांस स्कूल में दाखिला दिला दिया। वर्ष 1976 जया प्रदा के लिए काफी महत्वपूर्ण साबित हुआ। इस वर्ष उन्होंने के. बालचंद्रन की 'अंथुलेनी कथा', के. विश्वनाथ की 'श्री श्री मुवा' और एक धार्मिक फिल्म 'सीता कल्याणम' में सीता की भूमिका मिली थी। इन फिल्मों की सफलता के बाद जयाप्रदा दक्षिण भारत में अभिनेत्री के रूप में अपनी पहचान बनाने में कामयाब हो गईं। जया प्रदा और सह-अभिनेता एन.टी. रामराव पर 'आरेसुकोबोई पारेसुकुन्नानु' नामक गीत फिल्माया गया, जो काफी हिट साबित हुआ। उन्होंने तेलुगू फिल्मों से बाहर निकल कर, तमिल, मलयालम और कन्नड़ फिल्मों में भी अभिनय किया और इन सब भाषाओं में बनी उनकी फिल्में सफल रहीं। वर्ष 1979 में के. विश्वनाथ की 'श्री श्री मुवा' की हिंदी रीमेक सरगम के जरिए जया प्रदा ने हिंदी फिल्म जगत में कदम रखा। इस फिल्म की सफलता के बाद वह रातोंरात हिंदी सिनेमा जगत में अपनी पहचान बनाने में कामयाब हो गईं और अपने दमदार अभिनय के लिए सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री के फिल्म फेयर पुरस्कार के लिए नामांकित की गईं। 'सरगम' की सफलता के बाद जया प्रदा ने कई फिल्मों में काम किया, लेकिन कोई फिल्म टिकट खिड़की पर सफल नहीं हुई। जया ने इस बीच दक्षिण भारतीय फिल्मों में काम करना जारी रखा। वर्ष 1982 में के.विश्वनाथ ने जया प्रदा को अपनी फिल्म 'कामचोर' के जरिए दूसरी बार हिंदी फिल्मों की दुनिया में उतारा। इस फिल्म की सफलता के बाद वह एक बार फिर से हिंदी फिल्मों में अपनी खोई हुई पहचान बनाने में कामयाब रहीं और यह साबित कर दिया कि वह अब हिंदी बोलने में भी पूरी तरह सक्षम हैं। वर्ष 1984 में उनकी फिल्म 'शराबी' रिलीज हुई, जो दर्शकों के बीच काफी हिट साबित रही। इसमें उन्होंने अमिताभ बच्चन के साथ काम किया। हिंदी फिल्मों में सफल होने के बावजूद, जया प्रदा दक्षिण भारतीय सिनेमा से भी जुड़ी रहीं। 1986 में उन्होंने फिल्म निर्माता श्रीकांत नाहटा के साथ विवाह के बंधन में बंध गईं। इस शादी ने काफी विवादों को जन्म दिया। नाहटा पहले से ही चंद्रा के साथ विवाहित थे और उनके तीन बच्चे थे। नाहटा ने अपनी पहली पत्नी को तलाक नहीं दिया था और जया प्रदा से शादी के बाद भी उनके पहली पत्नी से बच्चा हुआ। बाद में जयाप्रदा और चंद्रा स्नेहपूर्ण तरीके से पति साझा करने को सहमत हुईं। वर्ष 1996 में उन्हें आंध्रप्रदेश का प्रतिनिधित्व करने के लिए राज्यसभा में मनोनीत किया गया। तेलुगू देशम पार्टी की कमान जब चंद्रबाबू नायडू के हाथ में आई तो उनसे मतभेद के बाद वह समाजवादी पार्टी में शामिल हो गईं तथा वर्ष 2004 के आम चुनाव में वह रामपुर संसदीय क्षेत्र से चुनाव जीतीं। उन्होंने 1985 की फिल्म 'संजोग', 1984 की 'शराबी' 1979 की 'सरगम' के लिए सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री और 2007 में लाइफटाइम एचीवमेंट अवार्ड जीता। इसके अलावा भी उन्होंने कई उपलब्धियां हासिल की हैं। |
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