हमारा संविधान इन मामलों में है दुनिया में सबसे निराला
जनता जनार्दन डेस्क ,
Jan 26, 2016, 13:18 pm IST
Keywords: Constitution Fundamental rights Welfare Right to information संविधान मौलिक अधिकार जनकल्याणकारी सूचना का अधिकार
नई दिल्ली: गणतंत्र दिवस पर हम इस संविधान से पिछले करीब सात दशकों से एक राष्ट्र और एक नागरिक के रूप में इससे मिलाने वाले लाभ का आंकलन करते हैं। भारतीय संविधान न केवल लोकोपयोगी साबित हुआ है, बल्कि यह लोकोन्मुखी भी है। आइए जानते हैं संविधान विशेषज्ञ सुभाष कश्यप से लाइवहिन्दुस्तान की बातचीत पर आधारित संविधान की वो 5 खासियतें, जो हर भारतीय को दुनिया के अन्य देशों के मुकाबले तरक्की-अभिव्यक्ति का बेहतर मौका देती हैं।
1. भारत की जमीन पर ही विकसित हुए हैं हमारे मौलिक अधिकार अमेरिकी संविधान के 'बिल ऑफ राइट्स' की तरह भारत के संविधान में अनुच्छेद 14 से 32 तक लोगों के मौलिक अधिकारों का प्रावधान है। लेकिन, संविधान विशेषज्ञ सुभाष कश्यप के अनुसार, "भारत के संविधान में उल्लखित मौलिक अधिकार इस मायने में खास और गर्व करने लायक हैं क्योंकि इनका उद्भव और विकास भारत की सरजमी पर ही हुआ। हमने इन्हें किसी अन्य संविधान से आयातित नहीं किया है। भारतीय जरूरतों और यहां की समस्याओं के परिप्रेक्ष्य में इन अधिकारों का विकास हुआ। इसलिए इन अधिकारों में भारतीय मौलिकता है। एक ठोस रूप में इनका जिक्र तो 1928 के नेहरु रिपोर्ट में ही हुआ था। फिर 1931 में कॉग्रेस के कराची अधिवेशन ने भी इनका अनुमोदन किया। इसके बाद संविधान सभा में मौलिक अधिकारों को लेकर सरदार बल्लभभाई पटेल के नेतृत्व में एक समिति और आचार्य कृपलानी के नेतृत्व में उपसमिति ने इन्हें अंतिम रूप दिया जिसे संविधान सभा ने स्वीकार किया।" 2. संविधान की मूल भावना है जनकल्याणकारी कल्याणकारी राज्य की अवधारणा भारत के संविधान का अहम हिस्सा है, जिसे संविधान के भाग चार में 'राज्य के नीति निर्देशक तत्व' के रूप में शामिल किया गया है। संविधान विशेषज्ञ सुभाष कश्यप के अनुसार,"मौलिक अधिकार जहां एक ओर राज्य की सत्ता की निरंकुशता को रोकने का लोगों के पास एक व्यक्तिगत अधिकार हैं, वहीं संविधान में वर्णित नीति निर्देशक तत्व लोगों को सामाजिक और आर्थिक अधिकार देते हैं। लेकिन ये मौलिक अधिकारों की तरह बाध्यकारी न होकर केवल एक आदर्श के रूप में इसलिए रखे गए। क्योंकि स्वतंत्रता प्रप्ति के समय में हमारे पास इन्हें बाध्यकारी बनाने के लिए पर्याप्त आर्थिक संसाधन नहीं थे। लेकिन जैसे-जैसे हम संपन्न होते गए, सरकारों पर सामाजिक और आर्थिक विकास करने के साथ-साथ विधि और प्रशासनिक सुधार करने का दबाव बढ़ता गया। इसमें इस संवैधानिक प्रावधान की प्रमुख भूमिका रही है। आयरलैंड की प्रेरणा से लिए गए इन प्रावधानों में गांधी के सिद्धांतों को भी शामिल किया गया।" 3. समय की कसौटी पर खरा और लगातार निखरा है हमारा संविधान हम इस बात पर गर्व करते हैं कि हमारा संविधान दुनिया का सबसे बड़ा लिखित संविधान है। यह न सिर्फ समय की कसौटी पर खरा उतरा है, बल्कि लगातार लोगों की जरूरतों के हिसाब से निखरता भी गया है। संविधान विशेषज्ञ सुभाष कश्यप कहते हैं, "इस संदर्भ में सबसे महत्वपूर्ण है भारतीय संविधान का टिकाऊ होना और इसकी निरंतरता (सरवाइवल पोटेंशियल)। द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद एशिया व अफ्रीका में जितने भी संविधान बने वे या तो खत्म कर दिए गए या उनकी मूल भावना ही बदल दी गई, या फिर उनके स्थान पर मिलिट्री डिक्टेटरशिप आ गईं। अपने पड़ोस में ऐसे उदाहरण हैं। दूसरी ओर भारत का संविधान न केवल कायम है, बल्कि इसने सफलतापूर्वक एक राष्ट्र और एक समाज के रूप में देश को कानूनी और प्रशासनिक तौर पर जोड़ कर रखा है। संविधान की व्याख्या को लेकर विभिन्न गुटों व सियासी दलों में मतभेद तो रहे हैं, लेकिन संविधान की सर्वोच्चता को सबने माना है, और इस रूप में अपना संविधान राष्ट्रीय अखंडता को ताकत देता है। यह गर्व की बात है।" 4. आमलोगों को एकदम से ताकत देता है सूचना का अधिकार सूचना का अधिकार हाल के समय में आमलोगों के हाथों में सबसे बड़े हथियार के रूप में आया है। संविधान विशेषज्ञ सुभाष कश्यप के अनुसार, "सूचना का अधिकार जनता को संविधान द्वारा मिले मौलिक अधिकारों और लोकतंत्र के मूल्य को मजबूती देता है। इस अधिकार से जनता आसानी से जान सकती है कि जिन्हें उन्होंने जिम्मेदारी दी है वे प्रतिदिन किस प्रकार से शासन कर रहे हैं। केवल 10 रुपये की अर्जी देकर हम अपने काम की सूचना प्राप्त कर सकते हैं। इससे पारदर्शिता बढ़ी है और भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने में मदद मिली है। लेकिन चिंता की बात है कि कभी-कभी इसका दुरुपयोग भी हुआ है जिससे हमें बचना चाहिए। 5. संविधान भी कहता है पढ़ोगे तो बढ़ोगे संविधान के 86वें संशोधन द्वारा 21 (क) में प्राथमिक शिक्षा को सब नागरिकों का मूलाधिकार बना दिया गया है। यह 1 अप्रैल 2010 को सम्पूर्ण भारत में लागू हुआ। सुभाष कश्ययप के अनुसार, "पंडित नेहरु ने कहा था कि यदि शिक्षा के मामले हम संपूर्ण नहीं होते हैं तो यह संविधान हमारे लिए एक कागज के टुकड़े से अधिक कुछ नहीं है। यह हमारे लिए बेहद शर्म की बात है कि आजादी के 68 साल बाद भी देश में इतनी निरक्षरता है। 2002 और 2003 में इसका संवैधानिक ढांचा तैयार होने के बाद भी संसद को इस पर कानून बनाने में 7 वर्ष लग गए और यह 1 अप्रैल 2010 में लागू हुआ।" भारत में शिक्षा के अधिकार की खासियत यह है कि यह दुनिया का पहला ऐसा कानून है जो 6 से 14 साल के बच्चों को मुफ्त शिक्षा की जिम्मेदारी, दाखिले से लेकर पूरा होने तक, सरकार के जिम्मे दी गई है, जबकि अमेरिका में यह जिम्मेदारी माता-पिता के ऊपर है। और इस दृष्टिकोण से भारत का कानून अधिक सशक्त है। |
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