सलमान का हिट एंड रन और इंसाफ
जनता जनार्दन डेस्क ,
Dec 15, 2015, 12:39 pm IST
Keywords: Bombay High Court Hit-and-run case Salman Khan Salman punished बॉम्बे हाईकोर्ट हिट एंड रन मामले सलमान खान सलमान को सजा
मुंबई: किसी दीवार पर लिखा था- ‘बुरे कानूनों के खिलाफ गदर छेड़ने वालों को सत्ता हमेशा से गद्दार कहती आई है..’ शुरू में तो मैंने इसका भावार्थ समझने की खूब कोशिश की, लेकिन जब कुछ समझ न आया तो अक्ल से समझौता कर बैठा और दिमाग में आ रही ‘असहिष्णुता’ पर सोचना छोड़ दिया।
एकाएक सारे के सारे न्यूज चैनलों में ब्रेकिंग न्यूज गूंजने लगी- ‘हिट एंड रन मामले में सलमान खान बरी हुए, गैर इरादतन कत्ल के जुर्म से बरी हुए। बॉम्बे हाईकोर्ट ने माना कि सलमान को सजा देने के लिए अदालत में पेश किए गए सबूत काफी नहीं हैं। यह भी साबित नहीं हो पाया कि सलमान ड्राइविंग सीट पर बैठे थे और गाड़ी चला रहे थे, उन्होंने शराब भी पी रखी थी। सारा कुछ साबित करने के लिए कोई सबूत ही नहीं। लोगों की भीड़ से बचने के लिए वो भागे (वरना शायद वहीं खड़े रहते और पुलिस का इंतजार करते), लोगों के गुस्से के कारण पीड़ितों को मदद नहीं कर पाए (पीड़ित परिवार की माली हालत और टीवी पर लगातार गुहारों के बावजूद अब भी इन 13 वर्षो तक)। रवींद्र पाटील अकेला चश्मदीद गवाह था और उसका बयान संदेहास्पद है (हलफनामे के बाद कोई सुरक्षा नहीं दी गई। कई दिनों तक लापता भी रहा, कोई खोज खबर नहीं ली गई, जबकि वह हाईप्रोफाइल मामले का अहम और इकलौता गवाह था। इन्हीं हालात में उसकी नौकरी चली गई। पत्नी घर छोड़ गई, परिवार ने उसे छोड़ दिया। भिखारियों से बदतर हालत में उसकी मौत हुई। क्या इन सब बातों की जांच भी जरूरी थी और अब भी है या नहीं?) दुर्घटना के समय सलमान के साथ गायक कमाल खान भी थे, जिनसे पूछताछ नहीं की गई। कहा गया कि वह मिल नहीं रहे, इसलिए उनकी गवाही लेना जरूरी नहीं। जबकि सेशन कोर्ट ने हाइकोर्ट द्वारा नकारे गए सबूतों की बिनाह पर ही सलमान को दोषी मानते हुए 5 साल की सजा सुनाई थी। अब कानूनविदों को सरसरी तौर पर दोनों ही फैसलों में खामियां प्रतीत हो रही हैं। जहां सेशन कोर्ट ने अभियोजन पक्ष के सारे सबूतों को माना, वहीं बॉम्बे हाईकोर्ट ने इन्हीं सबूतों को नकारते हुए सलमान को बरी कर दिया। कुछ मानते हैं कि मामले में साक्ष्य अधिनियम की अनदेखी हुई तो कुछ आपराधिक न्याय-व्यवस्था यानी क्रिमिनल जस्टिस सिस्टम की धज्जियां उड़ाना बताते हैं। दोनों ही फैसलों में यदि खामियां हैं तो इन्हें निकालना और सुधारना ही होगा, ताकि न्याय प्रणाली पर लोगों का विश्वास कायम रहे। इसका एकमात्र रास्ता सुप्रीम कोर्ट ही बचता है। इसके लिए महाराष्ट्र सरकार को अपील करनी होगी। इसी मामले में सेशन कोर्ट के फैसले पर चार घंटे में ही रोक लगा दी गई थी और तीन महीनों में फैसला पलट गया। वह भी तब, जब दुर्घटना में मारे गए व्यक्ति का मृत्युपूर्व बयान है कि एक्सीडेंट करने वाली गाड़ी सलमान चला रहे थे (उल्लेखनीय है कि सलमान खान के पिता ने कहा है कि मुकदमेबाजी और सारी प्रक्रियाओं में 20 से 25 करोड़ रुपये खर्च करने पड़े)। ऐसे मामलों में मृत्युपूर्व बयानों को महत्वपूर्ण माना जाता है। अब क्या इस फैसले के दृष्टांत से मृत्युपूर्व बयान के आधार पर चल रहे ढेरों मामले भी प्रभावित होंगे? इस प्रकरण में साक्ष्य अधिनियम की धारा 14 के तहत विशेषज्ञों से परामर्श भी नहीं लिया गया। वहीं रासायनिक परीक्षण में सलमान के रक्त में शराब पाई गई जो तय मात्रा से ज्यादा थी। कुछ का मानना है कि सलमान का अंगरक्षक रवींद्र पाटील ने पहले इसे महज दुर्घटना बताया, बाद में अदालत में हलफनामा देकर कहा कि सलमान ने शराब पी रखी थी और गाड़ी वही चला रहे थे। काबिलेगौर यह है कि यह बयान मजिस्ट्रेट के सामने दिया गया था जो महत्वपूर्ण होता है। इसके अलावा प्राकृतिक न्याय की ²ष्टि से भी देखा जाए तो हर बात एफआईआर के समय याद नहीं होती जो रिपोर्टकर्ता और गवाहों की मानसिक स्थिति पर भी निर्भर होता है। इस मामले में विशेष यह भी कि कोर्ट में जब रवींद्र पाटील ने बयान दिया, तब तक सलमान की मेडिकल रिपोर्ट भी आ चुकी थी, जिसमें तय मात्रा से ज्यादा शराब पीने की बात थी। अहम यह भी कि कमाल खान खास गवाह थे, उन्हें दोनों कोर्ट यानी सेशन और हाईकोर्ट को बुलाना चाहिए था, जो नहीं हुआ। सलमान के मामले में इसी मार्च में उस वक्त यू-टर्न आ गया था, जब प्रकरण अंतिम चरण में था और अशोक सिंह ने खुद को सलमान का ड्राइवर बताते हुए कोर्ट में उपस्थित होकर कहा कि 13 साल पहले दुर्घटना के वक्त गाड़ी सलमान नहीं, वह (अशोक सिंह) चला रहा था। अब इसको लेकर असमंजस और कयासों का सिलसिला चल पड़ा है कि क्या जो मुकदमा सलमान खान पर चला, अब अशोक सिंह पर चलेगा? जनमानस में ये भी सवाल उठ रहे हैं कि क्या एक सेलेब्रिटी होने से सुनवाई में तेजी आ जाती है? ऐसा नहीं तो सलमान की अपील समय से पहले क्यों सुनी गई? जबकि ऐसे ही मामलों में दूसरे मुजरिम अभी भी सजा काट रहे हैं। यकीनन, अब राज्य सरकार को तत्काल ही सुप्रीम कोर्ट में अपील दाखिल करनी चाहिए, क्योंकि देश जानना चाहता है कि हादसे वाली रात गाड़ी कौन चला रहा था? सलमान या अशोक सिंह? या फिर फुटपाथ पर सो रहे बेगुनाह नुरुल्लाह शरीफ का असली कातिल है कौन? यदि सलमान के कर्मो से गरीब की मौत नहीं हुई तो वह कैसे मर गया? खासकर उस स्थिति में जब आपराधिक विधि ‘रेस इप्सा लोक्यूटर’ (स्वयं प्रमाण का सिद्धांत) और अपराधी को अपनी ‘निर्दोषिता’ साबित करने की दरकार हो। जो कानूनी खामियां विवेचना और विचारण में रह गईं, उन्हें दूर करके सम्यक न्याय के लिए प्रकरण को निचली अदालत में प्रत्यावर्तित किया जाता। यह भी आश्चर्य के साथ देश ने देखा कि सजा सुनाने के एक दिन पहले ही प्रकरण सिद्ध न होने संबंधी अदालती टिप्पणियां सार्वजनिक हो गईं। न्याय व्यवस्था और पुलिस जांच की सच्चाई के साथ दो अदालतों के अलग-अलग निर्णयों का वह सर्वमान्य आधार भी जानना लोगों का हक है, ताकि भविष्य में ये नजीर कानून की रोशनी में इंसाफ की उम्मीदों को जिंदा रख सके। सबकी निगाहें अब महाराष्ट्र सरकार और सुप्रीम कोर्ट पर टिकी हुई हैं। |
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