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पार्टनर तुम्हारी पॉलिटिक्स क्या है

पार्टनर तुम्हारी पॉलिटिक्स क्या है नई दिल्ली: हिंदी के जादुई यथार्थवादी कहानीकार उदय प्रकाश एक बेहतरीन कथाकार हैं । उनकी कहानियों का मैं जबरदस्त प्रशंसक हूं । उनकी कविताओं को भी पाठकों का एक बड़ा वर्ग पसंद करता है । उदय प्रकाश ने जब भी कोई भी कहानी लिखी उसको साहित्य जगत ने हाथों हाथ लिखा । लेकिन शोहरत के साथ साथ उदय प्रकाश का विवादों से भी गहरा नाता रहा है ।

जब उन्होंने गोरखपुर में गोरक्षपीठ के कर्ताधर्ता और बीजेपी सांसदयोगी आदित्यनाथ के हाथो पहला 'नरेन्द्र स्मृति सम्मान' लिया था तो उस वक्त अच्छा खासा बवाल मचा था । पूरे साहित्यजगत में उदय की जमकर आलोचना हुई थी । दरअसल उदयप्रकाश सार्वजनिक जीवन में कई दशकों से वामपंथी आदर्शों कीदुहाई देते रहे हैं । लेकिन इस सम्मान ग्रहण के बाद उनके चेहरे का लाल रंग धुधंला होकरभगवा हो गया प्रतीत होता है ।

दरअसल उदय को नजदीक से जानने वालों का दावा है किउदय प्रकाश हमेशा से अवसरवादी रहे हैं और जब भी, जहां भी मौका मिला है उन्होंने इसेसाबित भी किया है । परिस्थितियों के अनुसार उदय प्रकाश अपनी प्राथमिकताएं औरप्रतिबद्धताएं तय करते हैं और एक रणनीति के तहत उसपर अमल भी करते हुए उसका लाभ उठाते हैं ।

अगर मेरी स्मृति मेरा साथ दे रही है तो उदय प्रकाश ने अपने कविता संग्रह- सुनो कारीगर-को लगभग दर्जनभर साहित्यकारों को समर्पित किया था, जिसमें नामवर भी थे औरकाशीनाथ सिंह भी और नंदकिशोर नवल भी थे और भारत भारद्वाज भी । जाहिर तौर पर येएक साथ दर्जनभर से ज्यादा साहित्यकारों/आलोचकों को साधने की कोशिश थी ।अपनी रचनाओं को लेकर आलोचकों का ध्यान खीचने की कोशिश भी थी । 

बाद में जबशिवनारायण सिंह संस्कृति मंत्रालय में उच्च पद पर थे तो उनको भी अपना एक कवितासंग्रह समर्पित कर दिया था । यह अजीब संयोग था कि उसी वक्त के आसपास उदय प्रकाश को भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय की फैलोशिप मिल गई । इस बात में कितनी सच्चाई है कि शिवनारायण सिंह ने उदय प्रकाश को फेलोशिप दिलाने में मदद की इसका तो पता नहीं लेकिन उस वक्त दिल्ली के साहित्य जगत के जानकारों दोनों घटनाओं को जोड़ा भी था ।

उदय प्रकाश भारत भवन की पत्रिका पूर्वग्रह से भी जुडे़ रहे हैं, यह उस वक्त की बात थी जब मध्य प्रदेश में साहित्य और संस्कृति की दुनिया में अशोक वाजपेयी का डंका बजा करता था और वो ही साहित्य और संस्कृति के कर्ताधर्ता हुआ करते थे । लेकिन जब किसीवजह से उदय प्रकाश को पूर्वग्रह से बाहर होना पड़ा था तो खबरों के मुताबिक उदय जी ने अशोक वाजपेयी और उनकी मित्रमंडली को 'भारत भवन के अल्सेशियंस' तक कह डाला था।

जाहिर है उसके बाद से अशोक वाजपेयी और उदय प्रकाश साहित्य के दो अलग-अलगछोर पर रहे । लेकिन वर्षों बाद उदय प्रकाश को अशोक वाजपेयी में फिर से संभावना नजर आई और उन्होंने अशोक वाजपेयी जी के जन्मदिन पर उदय ने जिस अंदाज में वाजपेयी को शुभाकमनाएं अर्पित की उसके बाद दोनों के बीच जमी  बर्फ पिघली । रिश्तों में आई गर्माहट के बाद साहित्यक हलके में इस बात की जोरदार चर्चा हुई थी कि अशोक वाजपेयी और उदय प्रकाश के बीच लंबी मुलाकात हुई ।

यहां भी एक संयोग घचित हुआ । उस मुलाकात के बाद  उदय प्रकाश को लखटकिया वैद सम्मान मिला । बार बार उदय प्रकाश के साथ जो संयोग घटित होता है उससे लेखकों को ईर्ष्या होती है लेकिन यही हैं  उदय प्रकाश  की प्राथमिकताएं और प्रतिबद्धता जिसकी वजह से इस तरह के संयोग घटित होते रहे हैं  ।
बीजेपी सांसद और कट्टर हिंदुत्ववाद के स्वयंभू मसीहा योगी आदित्यनाथ के हाथों सम्मानग्रहण करने के बाद जब उदय पर चौतरफा हमले शुरू हुए तो अपने बचाव में उन्होंने बेहदलचर तर्कों का सहारा लिया ।

उदय प्रकाश ने कहा कि- एक नियोजित तरीके से मुझ परआक्रमण करके बदनाम करने की घृणित जातिवादी राजनीति की जा रही है.....दरअसल इसहिंदू जातिवादी समाज में विचारधाराओं से लेकर राजनीति और साहित्य का जैसा छद्म औरचतुर खेल खेला गया है, उसके हम सब शिकार हैं । मेरे परिवार में यह सच है कि कि कोईभी एक सदस्य ऐसा नहीं है ( इनमें मेरी पत्नी, बच्ची, बहू और पोता तक शामिल हैं औरमेरे मित्र तथा पाठक भी ) जो किसी एक धर्म, क्षेत्र, जाति, नस्ल आदि से जुडे़ हों ।

लेकिनहिंदी साहित्य और ब्लॉगिंग में सक्रिय सवर्ण हिंदू उसी कट्टर वर्णाश्रम -व्यवस्थावदीमाइंडसेट से प्रभावित पूर्व आधुनिक सामंती, अनपढ़ और घटिया लोग हैं -जिनके भीतर जैन,बौद्ध, नाथ, सिद्ध, ईसाइयत, दलित, इस्लाम आदि तमाम आस्थाओं और आइडेंटिटीज़ केप्रति घृणा और द्वेष है इसे वे भरसक ऊपर-ऊपर छिपाए रखने की चतुराई करते रहते हैं ।मैंने जीवनभर इनका दंश और जहर झेला है और अभी भी झेल रहा हूं ।

अपनी लंबी सफाईके आखिर में धमकाने के अंदाज में सवर्ण लुटेरों के साम्राज्य को ध्वस्त करने का दावा भीकरते हैं । उदय पर पहले भी जब-जब उनकी व्यक्तिवादी कहानियों को लेकर उंगली उठी थीतो किसी को मथुरा का पंडा, तो किसी को घनघोर अनपढ़ घोषित किया तो किसी को अफसर होकर साहित्य की दुनिया में अनाधिकार प्रवेश के लिए लताड़ा ।

इसके पहले जब वर्तमान साहित्य के मई दो हजार एक के अंक में उपेन्द्र कुमार की कहानी'झूठ का मूठ' छपी थी तो अच्छा खास विवाद खड़ा हो गया था । साहित्य जगत में यह चर्चा जोर पकड़ी थी कि उक्त कहानी के केंद्र में उदय प्रकाश हैं । अब इस बात की तस्दीक तो कहानीकार उपेन्द्र कुमार ही कर सकते हैं कि उनकी कहानी झूठ का मूठ का लेखक कौन था । लेकिन जब उस कहानी पर साहित्य में विवाद हुआ था तो  उस वक्त भी सफाई देतेहुए उदय प्रकाश ने कहा था कि- दरअसल ऐसा है कि दिल्ली में गृह मंत्रालय के भ्रष्टअधिकारियों का एक क्लब है जो नाइट पार्टी का आयोजन करता है । इसमें शराब पी जातीहै और अश्लील चर्चा होती है ।

जो इसमें शामिल नहीं होता है, ये लोग उसपर हमला करते हैं। ये साहित्येतर लोग हैं जो अमेरिकी साम्राज्यवाद का विरोध तो करते हैं मगर गली-मोहल्लेके मवालियों के साथ बैठकर शराब पीते हैं ।' उनका इशारा किन लोगों की ओर था उसे भी अगर खुलकर कहते तो गृह मंत्रालय के भ्रष्ट अधिकारियों से साहित्य जगत का परिचय होता। दरअसल उदय प्रकाश की दिक्कत यही है कि जब भी उनकी आलोचना होती है तो वो अपना आपा खो देते है और साहित्यक मर्यादा भूलकर अपने विरोधियों पर बिलो द बेल्ट हमला करते हैं ।

रविभूषण ने जब इनकी कहानियों पर विदेशी लेखकों की छाया की बातकी थी तो मामला कानूनी दांव-पेंच में भी उलझा था । बीजेपी सांसद के हाथों सम्मानित होने के बाद साहित्य में उदय प्रकाश की जमकर आलोचना हुई थी ।  उदय की सफाई के बाद हिंदी के दो दर्जन से ज्यादा महत्वपूर्णसाहित्यकारों ने अपने हस्ताक्षर से एक बयान जारी कर उदय की
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अनंत  विजय
अनंत  विजय लेखक अनंत विजय वरिष्ठ समालोचक, स्तंभकार व पत्रकार हैं, और देश भर की तमाम पत्र-पत्रिकाओं में अनवरत छपते रहते हैं। फिलहाल समाचार चैनल आई बी एन 7 से जुड़े हैं।