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हिंसा का उत्सव ?

अनंत विजय , Jul 05, 2015, 11:35 am IST
Keywords: Bihar   Nawada   Constitution   Justice   Community   Intolerance   बिहार   नवादा   संविधान   इंसाफ   समाज   असहिष्णुता  
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हिंसा का उत्सव ? नई दिल्ली: बिहार के नवादा में एक निजी स्कूल के निदेशक को सरेआम पीट-पीटकर मार डाला गया, देखने में ये स्थनीय लोगों के गुस्से की अभिव्यक्ति प्रतीत होता है । उस स्कूल के दो बच्चों के गायब होने की खबर और फिर उनकी लाश मिलने के बाद लोगों का गुस्सा भड़का और स्कूल के निदेशक उस गुस्से की ज्वाला में भस्म हो गए । दो मासूमों की लाश मिलने पर गुस्सा स्वाभाविक है लेकिन गुस्से में सरेआम पीट-पीटकर हत्या की वारदात को अंजाम देना बिल्कुल भी स्वाभाविक नहीं है ।

आपको याद होगा कि चंद महीने पहले नगालैंड में बालात्कार के आरोपी को जेल से निकालकर भीड़ ने बेरहमी से कत्ल कर दिया। नालंदा और सुदूर नगालैंड में हुई इस घटना में एक साझा सूत्र दिखाई देता है । भीड़ जब हत्या पर उतारू थी तो कुछ लोग पूरी वारदात का वीडियो बनाने में जुटे थे, तस्वीरें उतार रहे थे । जिसे बाद में सोशल मीडिया पर साझा किया गया ।

हमारे संविधान में भीड़ के इंसाफ की कोई जगह नहीं है किसी को भी किसी की जान लेने का हक नहीं है । गुनाह चाहे जितना भी बड़ा हो फैसला अदालतें करती हैं । यह समाज में बढ़ते असहिष्णुता का परिणाम है या फिर लोगों का कानून से भरोसा उठते जाने का । इसकी गंभीर समाजशास्त्रीय व्याख्या की आवश्यकता है ।

जिस तरह से नवादा के स्कूल में बच्चों की लाश मिली उसिी तरह से रहस्यमय परिस्थितियों में अहमदाबाद के आसाराम के आश्रम में भी बच्चों की लाशें मिली थी । उस वक्त काफी हो हल्ला मचा था, जांच आयोग का गठन हुआ था । लगभग सात साल बाद भी उस केस के मुजरिमों को सजा नहीं हो पाई है।

उसी तरह से  निर्भया बलात्कार कांड में फास्ट ट्रैक कोर्ट आदि से गुजर कर पूरा केस सुप्रीम कोर्ट में लटका है । जनता को लगता है कि बड़े देशव्यापी आंदोलन और सरकार और पुलिस की तमाम कोशिशों को बावजूद अपराधियों को सजा नहीं मिल पाती है या देर से मिलती है । देरी से मिला न्याय, न्यायिक व्यवस्था को कठघरे में तो खड़ा करता ही है ।

न्याय के बारे में कहा भी गया है कि न्याय होने से ज्यादा जरूरी है न्याय होते दिखना । न्यायिक प्रक्रिया में हो रही देरी से भारत का असहिष्णु समाज बेसब्र होने लगा है । नतीजे में भीड़ का इस तरह का तालिबानी इंसाफ की संख्या बढ़ने लगी है ।

इन दोनों घटनाओं को साधारण समझ कर नजरअंदाज नहीं किया जा सकता । इसके बेहद खतरनाक और दूरगामी परिणाम संभव है जो हमारी मजबूत होती लोकतंत्र को कमजोर कर सकती है । वक्त रहते समाज को, सरकार को इसपर ध्यान देना होगा।

एक और खतरनाक प्रवृत्ति इन दोनों घटनाओं में देखने को मिली है वो है वीडियो और फोटो का व्हाट्सएप, फेसबुक और ट्विटर पर वायरल होना । गांधी का देश जिसने अहिंसा से ब्रिटिश शासकों को हिला दिया था उसी समाज में हिंसा का उत्सव समझ से परे हैं । हत्या और बलात्कार के वीडियो और फोटो को साझा करके हम हासिल क्या करना चाहते हैं , इस मानसिकता को समझने की जरूरत है । ज्यादा दिन नहीं बीते हैं जब व्हाट्सएप पर रेप की वारदात का एक वीडियो वायरल हुआ था।

मामला सुप्रीम कोर्ट तक जा पहुंचा था । दरअसल इस तरह के मामलों में अदालतें, पुलिस , सरकार से ज्यादा दायित्व समाज का है जहां इस तरह के कृत्यों को हतोत्साहित किया जाना चाहिए । किसी हत्या या बलात्कार के वीडियो का शेयर होना हमारे समाज के बुनियादी उसूलों से हटने के संकेत दे रहा है । इन संकेतों को समझकर फौरन आवश्यक कदम उठाने होंगे ताकि हमारा देश, हमारा समाज बचा रह सके । और बची रह सके उसकी आत्मा भी।
अनंत  विजय
अनंत  विजय लेखक अनंत विजय वरिष्ठ समालोचक, स्तंभकार व पत्रकार हैं, और देश भर की तमाम पत्र-पत्रिकाओं में अनवरत छपते रहते हैं। फिलहाल समाचार चैनल आई बी एन 7 से जुड़े हैं।

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