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डीकांचल पर्वत से हुई होलिका दहन की शुरुआत

डीकांचल पर्वत से हुई होलिका दहन की शुरुआत नई दिल्ली: होली जीवन में उमंग और उत्साह भरने वाला त्योहार है। ऐसा माना जाता है कि रंगों के इस पर्व की शुरुआत बुंदेलखंड की उस पहाड़ी से हुई, जिसे डीकांचल पर्वत कहा जाता है। इस पर्वत पर भक्त प्रह्वलाद को जलाने की कोशिश में बुआ होलिका स्वयं जल गई थी। बाद में लोगों ने रंग-अबीर उड़ाकर खुशियां मनाईं, तभी से फाल्गुन की पूर्णिमा पर पूरे देश में होलिका दहन की परंपरा चली आ रही है।

डीकांचल पर्वत बेतवा नदी के किनारे स्थित है। यह झांसी जिले के एरच कस्बे के डिकौली गांव की हद में आता है। यह वह इलाका है, जो राजा हिरण्यकश्यप के राज्य की राजधानी हुआ करता था। हिरण्यकश्यप खुद को भगवान मानता था। उसे यह पसंद नहीं था कि उसके राज्य में किसी और की पूजा-अर्चना की जाए।

हिरण्यकश्यप को एक बेटा था, जिसका नाम प्रह्वलाद था। वह भगवान विष्णु का परम भक्त था। नरसिंह पुराण व वामन पुराण के अनुसार, हिरण्यकश्यप ने कई बार प्रह्वलाद को मारने की कोशिश की, लेकिन उसे सफलता नहीं मिली। बाद में उसने बेटे को मारने के लिए अपनी बहन होलिका की मदद लेने का फैसला लिया। होलिका को आग में न जलने का वरदान प्राप्त था।

बुंदेखलखंड के सांस्कृतिक व धार्मिक विषयों के जानकार हरगोविंद कुशवाहा ने आईएएनएस को धार्मिक ग्रंथों का हवाला देते हुए बताया कि एरच कस्बे के डिकौली गांव के डीकांचल पर्वत पर हिरण्यकश्यप ने एक समारोह रखा था। तय रणनीति के अनुसार, होलिका ने अपने भतीजे प्रह्वलाद को गोद में उठाया और जलती आग में जा बैठी, लेकिन उस आग में वह स्वयं जल गई और प्रह्वलाद बच गया।

इसके बाद हिरण्यकश्यप का गुस्सा सातवें आसमान पर पहुंच गया और उसने प्रह्वलाद को खंभे से बांध दिया। उसने खंभे पर तलवार से प्रहार किए, जिस पर भगवान नरसिंह प्रकट हुए और उन्होंने हिरण्यकश्यप का वध कर दिया।

हिरण्यकश्यप के वध के लिए भगवान विष्णु को नरसिंह का रूप धारण करना पड़ा था, क्योंकि हिरण्यकश्यप को वरदान था कि उसे न तो आदमी मार सकता है और न ही जानवर। हिरण्यकश्यप के वध के बाद प्रह्वलाद को राजगद्दी सौंपी गई, लेकिन दत्यों ने उसे राजा नहीं माना।

ऐसी मान्यता है कि प्रह्वलाद के आग्रह पर दैत्यों और देवताओं की डीकांचल पर्वत के नीचे एक पंचायत बुलाई गई। इस पंचायत में भगवान विष्णु ने भक्त प्रह्वलाद को अपना बेटा करार दिया। उसके बाद दोनों की बीच समझौता हुआ और सभी ने एक दूसरे को गुलाल लगाया। वह पूर्णिमा का दिन था। उस दिन के बाद से पूर्णिमा पर होलिका दहन होने लगा।
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